नई दिल्ली। भारत के लिए हमेशा मुसीबत खड़ी करने वाला पाकिस्तान अब चीन को अपने क्षेत्र में सैन्य बेस बनाने की इजाजत देकर भारत को चिंता में डाल सकता है। अमेरिकी रक्षा विभाग पेंटागन की एक रिपोर्ट के मुताबिक ये संभावनाएं जताई जा रही हैं कि अगर चीन ऐसा करता है, तो भारत की सामरिक चुनौतियां बढ़ जाएंगी।
पेंटागन ने अपनी सालाना रिपोर्ट जारी करते हुए ये बात कही। रिपोर्ट के मुताबिक चीन पाकिस्तान के साथ उन सभी देशों में अपनी सैन्य चौकी बना सकता है जिसके साथ उसके अच्छे रिश्ते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन इन दिनों विदेशों में अपने ज्यादा से ज्यादा सैन्य अड्डे बनाने की कोशिश में लगा हुआ है। बता दें कि चीन ने अभी हाल ही में अफ्रीकी देश जिबूती में एक नेवी बेस स्थापित किया है जिससे ये अंदाजा लगाया जा रहा है कि वो आने वाले दिनों में पाकिस्तान में भी अपने सैन्य बेस बना सकता है।
पेंटागन के मुताबिक चीन अपने सैन्य शिविर की स्थापना उन देशों में करना चाहता है जिनके साथ उसके दोस्ताना और समान नागरिक हित जुड़े हुए हैं। जैसे कि पाकिस्तान और ऐसे देश जहां से वो अपने दुश्मनों की सैन्य ताकत पर कड़ी नजर रख सके।
अमेरिकी कांग्रेस में पेश की गई 97 पन्नों की इस सालाना रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन ने अपने रक्षा बजट और खर्चे में भारी बढ़ोतरी की है। उसने साल 2016 में अपने आधिकारिक रक्षा बजट को 140 अरब डॉलर से बढ़ाकर 180 अरब डॉलर से भी ज्यादा कर लिया है। रिपोर्ट के मुताबिक, चीन ने आर्थिक विकास की रफ्तार सुस्त होने के बावजूद भविष्य को ध्यान में रखते हुए अपने रक्षा खर्च में बढ़ोतरी की है।
इस रिपोर्ट में बार-बार चीन के पहले नेवी बेस जिबूती का हवाला दिया गया है, जो कि विदेश में बन रहा चीन का पहला नेवी बेस है। जिबूती सामरिक दृष्टि से काफी अहम है क्योंकि ये लाल सागर के दक्षिण प्रवेश बिंदु पर स्थित है। यहां अमेरिकी ने भी अपने सैन्य बेस बनाए हुए हैं।
जिबूती में चीन की पोजीशन से भारत चिंतित
हिंद महासागर के दक्षिण-पश्चिमी तट पर स्थित जिबूती में चीन की पोजीशन से भारत पहले से ही चिंतित है, क्योंकि यह भी चीन की ‘पर्ल ऑफ स्ट्रिंग’ योजना का ही एक हिस्सा है। इस योजना के तहत महासागर के चारों ओर चीन की मिलिट्री एलायंस और बेस स्थापित करने की योजना है।
गौरतलब है कि चीन बलूचिस्तान में सामरिक रूप से स्थित ग्वादर बंदरगाह का विकास कर रहा है और कई अमेरिकी विशेषज्ञों का कहना है कि चीन ने यह कदम वहां अपनी सैन्य मौजूदगी रखने के मकसद से उठाया है।