आजाद भारत में विरोध जताने का ये तरीका गलत है। 72 वर्ष बीत गए पर राजनीतिक पार्टियां विरोध जताकर आम जनता का नुकसान कर रही हैं। आजादी के बाद हिंसा, आगजनी, हत्या, तोड़फोड़, ये सब उग्रवाद, नक्सलवाद, आतंकवाद को बढ़ावा देना ही तो है। अपने आप को सत्ता में लाने के लिए सारे असंवैधानिक नियम अपनाती आ रही हैं राजनीतिक पार्टियां। अभी देश बाढ़ से और आतंकवाद से जूझ रहा है। इसमें विपक्ष का बंद और आरक्षण मुद्दा अशोभनीय है। जनता अस्तित्व में नहीं रहेगी तो क्या देश और देश का संविधान बचा रहेगा?
आज की तारीख में जिन लोगों ने भारत बंद का आह्वाहन किया है क्या ये देशहित में है? आने वाले लोकसभा चुनाव में विपक्ष हवा की तरह धूल उड़ाती जमीन पकड़ लेगी। जनता सब देख रही है कि कौन सा नेता क्या कर रहा है। जब सच की रौशनी होती है तो झूठ के पतंगे आपस में लड़कर मर जाते हैं। राज नेता लोग सुधर जाएं, अब की युवा पीढ़ी भेड़ चाल की तरह नहीं चलेगी। आपको हमेशा-हमेशा के लिए उखाड़ फेकेंगी। वो गांधीवादी विचारधारा कॉग्रेस भुल गई क्या?
काली पट्टी के साथ शांति मार्च निकालकर भी तो विरोध जताया जा सकता था। विरोध जताने में जितना नुकसान सरकारी यानी जनता का खर्च हुआ, उतने में देश के बाढ़ पीडि़तों को कुछ राहत मिल जाती। क्या विपक्ष में सभी मूर्ख और सुर्ख बैठे हैं? अगर मूर्ख बैठे हैं तो भारत देश को कैसे चलाएंगे। वे अंबेडकर को माला पहनाकर व दीन दयाल उपाध्याय जी के मस्तिष्क का अध्ययन करें, सच्चाई को जानें, इससे आगे बढ़ने का मौका मिलेगा। ऐसा नहीं हुआ तो जनता का डंडा चलेगा और आप अपने आप को राज नेता कहना भूल जाएंगे। भारत के सुप्रसिद्ध गायक किशोर कुमार ने गाया था,-‘ये पब्लिक है ये सब जानती है, अंदर क्या है बाहर क्या है’।
लेखक- आरके ओझा