Kashish Murder Case: नवंबर 2014 में पिथौरागढ़ की रहने वाली 7 साल की मासूम बच्ची कशिश अपने परिवार के साथ एक रिश्तेदार की शादी में शामिल होने हल्द्वानी के काठगोदाम आई थी। वहीं से वह अचानक लापता हो गई थी। पांच दिन की तलाश के बाद उसका शव गौला नदी के पास जंगल में मिला। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट और जांच में सामने आया कि बच्ची के साथ पहले दुष्कर्म किया गया और फिर उसकी बेरहमी से हत्या कर दी गई।
मुख्य आरोपी को निचली अदालत और हाईकोर्ट से मिली थी फांसी- Kashish Murder Case
इस जघन्य हत्याकांड में पुलिस ने तीन लोगों को आरोपी बनाया था। जांच के बाद एक आरोपी को बरी कर दिया गया, जबकि दूसरे आरोपी प्रेमपाल को पांच साल की सजा और जुर्माना हुआ। मुख्य आरोपी अख्तर अली को पॉक्सो एक्ट और आईपीसी की धारा 376 के तहत दोषी ठहराते हुए निचली अदालत ने फांसी की सजा सुनाई थी, जिसे बाद में हाईकोर्ट ने भी बरकरार रखा।
सुप्रीम कोर्ट से मिली राहत, टूट गई पीड़िता के परिवार की उम्मीदें
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने सबूतों के अभाव में मुख्य आरोपी अख्तर अली को बरी कर दिया। कोर्ट ने कहा कि उपलब्ध साक्ष्य आरोपी को दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। इस फैसले से न सिर्फ पीड़ित परिवार बल्कि पूरे उत्तराखंड में गुस्से की लहर दौड़ गई है। लोग इसे न्याय व्यवस्था की बड़ी चूक मान रहे हैं।
बुद्ध पार्क से सिटी मजिस्ट्रेट तक उबाल, कलाकार भी हुए शामिल
गुरुवार को हल्द्वानी के बुद्ध पार्क में बड़ी संख्या में स्थानीय लोग, सामाजिक संगठन और उत्तराखंड के लोक कलाकार एकजुट होकर धरना-प्रदर्शन के लिए जुटे। प्रदर्शनकारियों ने हाथों में तख्तियां और बैनर लेकर आरोपी को फांसी देने की मांग की।
इस विरोध में हल्द्वानी विधायक सुमित हृदयेश के साथ-साथ प्रसिद्ध लोक कलाकार श्वेता महरा, इंदर आर्य, प्रियंका मेहरा और गोविंद दिगारी भी शामिल हुए। कलाकारों ने जनता के साथ मिलकर न्याय की मांग करते हुए कहा कि अगर ऐसे फैसले आने लगे तो पीड़ितों को कभी इंसाफ नहीं मिलेगा।
पुलिस से झड़प, राष्ट्रपति को भेजा ज्ञापन
प्रदर्शनकारियों का आक्रोश इतना अधिक था कि वे बुद्ध पार्क से सिटी मजिस्ट्रेट कार्यालय तक मार्च कर गए। रास्ते में पुलिस ने उन्हें रोकने की कोशिश की, लेकिन नाकाम रही। इस दौरान पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच हल्की झड़प भी हुई। बाद में भीड़ ने राष्ट्रपति के नाम एक ज्ञापन सौंपा, जिसमें सुप्रीम कोर्ट से पुनर्विचार याचिका की अपील और आरोपी को फिर से फांसी की सजा देने की मांग की गई।
जनता का सवाल: क्या वाकई सुरक्षित हैं मासूम?
लोगों का कहना है कि अगर इतने जघन्य अपराध के बाद भी आरोपी बरी हो सकता है, तो यह न सिर्फ पीड़िता के लिए अन्याय है बल्कि समाज के लिए भी एक खतरनाक संदेश है। जनता चाहती है कि ऐसे मामलों में जांच और न्यायिक प्रक्रिया इतनी मजबूत हो कि कोई भी दरिंदा कानून से बच न सके।
न्याय की आस अब भी ज़िंदा
सालों की कानूनी लड़ाई और उम्मीदों के बाद जब सुप्रीम कोर्ट से ऐसा फैसला आया, तो परिवार और समाज दोनों को गहरा धक्का लगा है। लेकिन जनता की आवाज़ और विरोध ये साबित करता है कि कशिश को न्याय दिलाने की उम्मीद अब भी ज़िंदा है। प्रदर्शनकारियों ने साफ कहा है कि जब तक इंसाफ नहीं मिलेगा, उनकी लड़ाई जारी रहेगी।
मुख्यमंत्री धामी का आश्वासन – न्याय के लिए सुप्रीम कोर्ट में दायर होगी पुनर्विचार याचिका
मासूम बच्ची के हत्याकांड मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले से आहत परिजनों को अब राज्य सरकार का साथ मिला है। रविवार को भाजपा का एक शिष्टमंडल पिथौरागढ़ स्थित पीड़ित परिवार से मुलाकात के लिए उनके घर पहुंचा। इस दौरान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी दूरभाष के माध्यम से मासूम के पिता से बात की और भरोसा दिलाया कि सरकार इस मामले में परिवार के साथ पूरी मजबूती से खड़ी है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि मामले की गंभीरता को देखते हुए राज्य सरकार जल्द ही न्याय विभाग और वरिष्ठ कानूनी विशेषज्ञों से राय लेगी, और इस पर मुख्यमंत्री आवास में विस्तृत बैठक की जाएगी। उन्होंने स्पष्ट किया कि सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल करने के लिए सभी जरूरी कानूनी कदम उठाए जाएंगे। सीएम धामी ने कहा कि इस लड़ाई में परिवार को अकेला नहीं छोड़ा जाएगा और उन्हें इंसाफ दिलाने के लिए सरकार हरसंभव प्रयास करेगी।
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