Nithari Kand: नोएडा का वो इलाका, जो कभी एक आम रिहायशी बस्ती था, 29 दिसंबर 2006 के बाद से देशभर में खौफ का पर्याय बन गया। सेक्टर 31 का निठारी गांव जहां से इंसानी कंकाल और खोपड़ियां मिली थीं – अब भी उस दर्दनाक याद से उबर नहीं पाया है। करीब दो दशकों बाद, उसी मामले के मुख्य आरोपी सुरेंद्र कोली की रिहाई का रास्ता साफ हो गया है। आईए जानते हैं क्या था ‘निठारी कांड’।
कैसे खुला था निठारी कांड का भयानक सच- Nithari Kand
अक्टूबर 2006 से नोएडा पुलिस को लगातार शिकायतें मिल रही थीं कि निठारी इलाके से गरीब परिवारों के बच्चे रहस्यमय तरीके से गायब हो रहे हैं। पुलिस महीनों तक कोई ठोस सुराग नहीं जुटा पाई। इसी दौरान ‘पायल’ नाम की एक युवती लापता हो गई। जांच के दौरान पुलिस ने पायल का मोबाइल एक रिक्शेवाले के पास से बरामद किया। पूछताछ में उसने बताया कि यह मोबाइल उसे डी-5 कोठी के एक शख्स ने दिया था।
जब पुलिस उस कोठी तक पहुंची, तो वहां जो मिला उसने पूरे देश को हिलाकर रख दिया — नाले के पास बोरियों में भरे 16 मानव खोपड़ियां, कंकाल के टुकड़े और कपड़ों के अवशेष। बाद में कहा गया कि ये उन्हीं लापता बच्चों और युवतियों के अवशेष थे। बंगले के मालिक मोनिंदर सिंह पंढेर और उसके घरेलू सहयोगी सुरेंद्र कोली को गिरफ्तार किया गया। इसके बाद खुलासा हुआ उस कांड का, जिसे आज पूरा देश ‘निठारी हत्याकांड’ के नाम से जानता है।
कदम-दर-कदम बढ़ा मामला, और आती रही सजा पर सजा
2007 में सीबीआई ने जांच अपने हाथ में ली। गाजियाबाद की अदालत ने 2009 में पहले ही मामले में पंढेर और कोली दोनों को मौत की सजा सुनाई। अगले कुछ सालों में कोली को अलग-अलग मामलों में चार और बार फांसी की सजा मिली। वहीं पंढेर कुछ मामलों में बरी होता गया।
2010 से 2021 के बीच कोली को कई मामलों में दोषी ठहराया गया, लेकिन धीरे-धीरे कई अदालती फैसले पलटे। आखिरकार अक्टूबर 2023 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दोनों आरोपियों को बरी कर दिया, यह कहते हुए कि जांच में गंभीर खामियां थीं और सबूत अपर्याप्त थे।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा
सुप्रीम कोर्ट ने 11 नवंबर 2025 को कोली को निठारी हत्याकांड के आखिरी यानी 13वें मामले में भी बरी कर दिया। अदालत ने कहा कि अगर उस पर कोई और केस लंबित नहीं है, तो उसे तुरंत रिहा किया जाए।
न्यायमूर्ति बी.आर. गवई, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति विक्रम नाथ की पीठ ने कहा कि निठारी कांड बेहद जघन्य अपराध था, लेकिन दोषसिद्धि सिर्फ अनुमान या शक के आधार पर नहीं की जा सकती। अदालत ने साफ कहा — “संदेह चाहे कितना भी गंभीर क्यों न हो, वह सबूत का विकल्प नहीं बन सकता।”
पीठ ने इस मामले की जांच पर भी तीखी टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि जांच एजेंसियों की लापरवाही और देरी ने असली अपराधी की पहचान की प्रक्रिया को कमजोर कर दिया।
- स्थल को खुदाई से पहले सुरक्षित नहीं किया गया।
- बयान और रिमांड कागजातों में विरोधाभास थे।
- कोली को बिना चिकित्सकीय जांच के लंबे समय तक पुलिस हिरासत में रखा गया।
- पोस्टमार्टम रिपोर्ट और फॉरेंसिक सबूत सही तरीके से दर्ज नहीं किए गए।
अदालत ने यह भी कहा कि पुलिस ने निठारी के परिवारों और पड़ोसियों से पर्याप्त पूछताछ नहीं की और अंग व्यापार के पहलू की भी गंभीरता से जांच नहीं की गई। हर चूक ने जांच की विश्वसनीयता को कमजोर किया।
जेल से बाहर आने की तैयारी में कोली
आपको बता दें, कोली इस वक्त गौतमबुद्ध नगर की लुक्सर जेल में बंद है। जेल अधीक्षक बृजेश सिंह के अनुसार, करीब दो साल पहले उसे गाजियाबाद जेल से यहां शिफ्ट किया गया था। उसकी पत्नी और बेटा अक्सर मिलने आते रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट का आदेश मंगलवार को मिलने के बाद अब उसकी कॉपी गाजियाबाद जिला न्यायाधीश को भेजी जाएगी, जिसके बाद आदेश लुक्सर जेल पहुंचेगा। उम्मीद है कि बुधवार तक प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी और कोली को रिहा कर दिया जाएगा।
न्यायालय की टिप्पणी – निर्दोषता की धारणा जब तक अपराध साबित न हो
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि “निर्दोष होने की धारणा तब तक बनी रहती है जब तक अपराध साबित न हो जाए, और यह साबित होना चाहिए ठोस और विश्वसनीय साक्ष्य के आधार पर। जब साक्ष्य कमजोर हों, तो सजा रद्द करना ही न्यायसंगत कदम होता है, चाहे अपराध कितना भी भयानक क्यों न हो।”
अदालत ने आगे कहा कि अगर जांच पेशेवर और समय पर की जाती, तो शायद असली अपराधी पकड़ा जा सकता था और कई जानें बचाई जा सकती थीं। यह टिप्पणी सिर्फ एक आरोपी की रिहाई से आगे जाकर, हमारी जांच प्रणाली की कमजोरियों की ओर भी इशारा करती है।
निठारी कांड की प्रमुख घटनाएं (संक्षेप में)
- 29 दिसंबर 2006: डी-5 कोठी के पीछे 16 मानव खोपड़ियां मिलीं।
- 30 दिसंबर 2006: और कंकाल मिले, पांच पुलिसकर्मी निलंबित।
- 11 जनवरी 2007: सीबीआई ने जांच अपने हाथ में ली।
- 2009 से 2010: कोली और पंढेर को कई मामलों में मौत की सजा।
- 2021: 12वें मामले में कोली को फांसी, पंढेर बरी।
- 2023: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दोनों को बरी किया।
- जुलाई 2025: सुप्रीम कोर्ट ने सभी अपीलें खारिज कीं।
- 11 नवंबर 2025: सुप्रीम कोर्ट ने कोली को आखिरी मामले में भी बरी किया।
