UP Raebareli Serial Killer: 9 जून 2001 की रात फुरसतगंज ब्लॉक के सैमसी गांव में सन्नाटा पसरा था। लोग अपने घरों और आंगनों में सो चुके थे। उसी रात गांव के एक कोने में स्थित आटा चक्की से अचानक बंदूक चलने की आवाज आई—“धांय!”
कुछ ही पलों में सन्नाटा फिर लौट आया, लेकिन अगले दिन जब सूरज उगा, तो सैमसी गांव में मातम छा गया। चक्की के अंदर जगदीश प्रसाद की लाश पड़ी थी। पीछे से गोली मारी गई थी। खून से चारपाई भीग चुकी थी और मक्खियाँ भिनभिना रही थीं। किसी ने दरवाजा खटखटाया, भीतर देखा और चिल्ला उठा—“जगदीश मर गया!”
लोग जुटे, अफरा-तफरी मच गई। पुलिस आई, छानबीन हुई, लेकिन न कोई गवाह, न कोई सुराग। बस एक दर्ज केस और रहस्यमय खामोशी। किसी को पता नहीं था कि यह हत्या किसी बड़ी और भयावह कहानी की शुरुआत है।
हर रात ‘धांय’ की आवाज और एक नई लाश- UP Raebareli Serial Killer
अगले कुछ महीनों में आसपास के गांवों सरवन, बाबू का पुरवा, ब्रह्मनी, हिंदू का पुरवा, नहरकोठी, तरौना और किशुनपुर केवई में एक-एक कर लोगों की हत्याएं होने लगीं।
पैटर्न एक जैसा था: रात के अंधेरे में, घर के बाहर सोते किसी बुजुर्ग पर नजदीक से गोली चलती, और हत्यारा गायब। गवाहों ने कहा, “हर बार दो परछाइयां दिखती थीं, एक लंबी, एक छोटी… चेहरा हमेशा ढंका हुआ।”
गांवों में डर का माहौल था। लोग अंधेरा ढलते ही घरों में बंद हो जाते। खेतों की रखवाली बंद, रात की चौपालें थम गईं। बुजुर्ग छत पर ही शौच जाने लगे, बच्चे मां के पल्लू से चिपककर सोते थे।
हर दो-तीन महीने में एक नया मर्डर। पुलिस आती, जांच करती, फाइल में तारीख और वक्त लिखती, और लौट जाती। धीरे-धीरे ये हत्याएं किसी लोककथा की तरह फैल गईं, “रात में गोली चलती है और दो साये खेतों की ओर भागते हैं…”
सीरियल किलर की तलाश और एक साहसी अफसर की एंट्री
2003 में इन लगातार हत्याओं की जांच की जिम्मेदारी ASP वी.पी. श्रीवास्तव को सौंपी गई। उन्होंने पुरानी फाइलें निकालीं—धूल में दबी तारीखें, फोटो, बयान और पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट्स।
कड़ियां जोड़ते-जोड़ते उन्हें एक पैटर्न दिखा—
- सभी हत्याएं रात में,
- टारगेट 50 से 70 साल के पुरुष,
- सिर पर नजदीक से भरवा बंदूक की गोली,
- और ज्यादातर घटनाएं शनिवार, रविवार या सोमवार की रात।
वीपी श्रीवास्तव ने कहा—“यह कोई सामान्य अपराध नहीं, बल्कि सीरियल किलर का काम है।”
उन्होंने नक्शे पर पिन लगाए रायबरेली-सुल्तानपुर रोड के आसपास के पांच-छह गांव सबसे ज्यादा प्रभावित थे। 35 से ज्यादा हत्याएं दर्ज थीं।
फुरसतगंज में खौफ, पुलिस चौकियां और गांवों में पहरा
जांच के बाद पुलिस ने नई रणनीति बनाई।
शनिवार से सोमवार तक विशेष पेट्रोलिंग शुरू हुई। गांवों में अस्थायी चौकियां बनाई गईं। सिपाही ड्रैगन लाइट लेकर रातभर मेड़ों पर घूमते। ग्रामीणों ने भाले और बल्लम उठाकर पहरेदारी शुरू की।
एक महीने तक शांति रही, जैसे किसी ने अंधेरे पर ताला जड़ दिया हो।
लेकिन अपराधी ज्यादा देर नहीं रुका।
8 नवंबर 2004 – जब शिकारी खुद फंस गया
शाम के सात बजे थे। गांव में अलाव जल रहा था। विश्राम साहू अपने घर के बाहर बैठे थे कि अचानक वही पुरानी आवाज गूंजी—“धांय!”
इस बार गोली चूकी नहीं। विश्राम वहीं गिर पड़े। लोग भागे, किसी ने देखा, “वो सफेद कपड़े वाला भाग रहा है!”
गांववाले पीछा करते हुए नहर तक पहुंचे। पानी में छलांग की आवाज आई, “छपाक!”
थोड़ी देर बाद सन्नाटा छा गया। पुलिस पहुंची और पहली बार एक सुराग मिला, नहर किनारे एक जूता।
ASP श्रीवास्तव बोले, “यह उसी का है। अब वो ज्यादा दूर नहीं।”
सदाशिव साहू – ‘भला आदमी’ जो बन गया ‘कातिल’
पूछताछ में एक नाम सामने आया सदाशिव साहू (57), जो फुरसतगंज मार्केट में कपड़े की दुकान चलाता था। लोगों ने कहा, “शांत, पूजा-पाठ करने वाला, किसी से बैर नहीं।”
लेकिन एक बात अजीब थी—कुछ साल पहले उसकी पत्नी अचानक लापता हो गई थी और उसने कभी बताया नहीं कि क्या हुआ।
सदाशिव को थाने बुलाया गया। उसके घर की तलाशी ली गई।
अलमारी से नकली दाढ़ी-मूंछें, नाट्य कपड़े, और एक पुरानी लाइसेंसी बंदूक मिली, जिसकी नली अब भी गीली थी।
ASP श्रीवास्तव ने आंखों में आंखें डालकर पूछा—“कितनों को मारा?”
सदाशिव पहले चुप रहा, फिर बोला—“हम… हमें खून देखने की हूक उठती थी… महीने-दो महीने में किसी को न मारें तो नींद नहीं आती। खून की बूंदें देख लेते, तभी सुकून मिलता।”
उसने बताया कि 22 लोगों की हत्या उसने खुद की थी।
पूछताछ में एक और सच निकला—उसका बेटा जयकरन भी कुछ हत्याओं में साथ था। उसने कहा, “बाबू जब बाहर जाते थे, उसी रात कोई मारा जाता। हमें डराकर साथ ले जाने लगे।”
प्रेस कॉन्फ्रेंस, कुबूलनामा और अदालत की जंग
पुलिस ने प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाकर सबूत पेश किए बंदूक, कपड़े, नकली दाढ़ी और गवाहों के बयान।
ASP श्रीवास्तव ने आठ पन्नों का कबूलनामा पढ़ा, लेकिन तभी सदाशिव चीख पड़ा,“सब झूठ है! पुलिस ने जबरन बयान दिलाया है!”
फिर भी, हत्याएं थम गईं। लोग कहने लगे,“कातिल पकड़ा गया।”
पुलिस ने चार्जशीट दायर की, केस अदालत पहुंचा।
साल दर साल बीतते गए। गवाह मुकरते गए, सबूत कमजोर हुए। कुछ मामलों में वह बरी हुआ, कुछ में सजा मिली।
आखिरकार 22 अप्रैल 2022 को जिला अदालत ने दो मामलों में उम्रकैद की सजा सुनाई।
लेकिन किस्मत ने अलग मोड़ लिया। 2023 में अमेठी जेल में सदाशिव की मौत हो गई। बेटे जयकरन को सबूतों की कमी के कारण बरी कर दिया गया।
एक अंत, जो राहत भी था और सवाल भी
सदाशिव की मौत की खबर एक लाइन में आई और चली गई—“अमेठी जेल में आजीवन कारावास की सजा काट रहे कैदी सदाशिव साहू की मृत्यु।”
बस इतना ही। न कोई चर्चा, न सनसनी।
पर गांव वालों के लिए यह खबर राहत थी।
अब फुरसतगंज की रातें फिर शांत थीं, लोग आंगनों में चारपाई डालकर सोने लगे थे।
लेकिन कई बुजुर्ग अब भी कहते हैं—“कभी-कभी रात के सन्नाटे में वो ‘धांय’ की गूंज आज भी सुनाई देती है…”
