नई दिल्ली। राजधानी दिल्ली की सफाई व्यवस्था को लेकर हमेशा से ही दिल्ली सरकार और एमसीडी के बीच में ठनी रही हैं। इसी बीच दिल्ली की सफाई से नाराज दिल्ली उच्च न्यायालय ने तीनों नगर निगमों को आड़े हाथों लेते हुए सड़कों से नियमित रूप से कचरा उठाने को सुनिश्चित करने के लिए सफाई कर्मचारियों की ड्यूटी दुरुस्त करने की हिदायत दी है।
दिल्ली हाई कोर्ट की कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल ने राजधानी की सफाई व्यवस्था पर सुनवाई करते हुए कहा कि तीनों नगर निगमों में “काम करने की इच्छा शक्ति का अभाव है।” सफाई कर्मचारियों को काम पर लगाने के मामले में काफी ढिलाई बरती जा रही है।
पीठ ने कहा कि सफाई कर्मचारियों की हाजिरी के लिए बायोमैट्रिक प्रणाली की शुरुआत की जानी चाहिए। इसके अलावा सफाई कर्मचारियों की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए लगातार संदेश पहुंचाने के तरीके भी अपनाने का सुझाव दिया।
पीठ ने कहा कि निगमों को सफाई कर्मचारियों की उपस्थिति की प्रक्रिया को दुरुस्त करना चाहिए और ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए जिससे क्षेत्र की सफाई में वे कार्यरत रहे। सफाई कर्मचारियों को दिन में दो से तीन बार बायोमैट्रिक प्रणाली के जरिए उपस्थिति लगाने को कहा जाना चाहिए। पीठ ने कहा कि अगर निगम उचित तरीके से काम सुनिश्चित कर रहा हैं तो सड़कों के किनारे कचरे के ढेर क्यों लगे है? पीठ ने सफाई निरीक्षकों को भी निजी रूप से सफाई कर्मचारियों पर निगाह रखने को कहा ताकि वे बेहतर तरीके से अपना काम कर सके।
निगमों की तरफ से न्यायालय में मौजूद अधिवक्ता ने कहा कि अनधिकृत कॉलोनियों में रहने वाले लोग अपना कचरा सड़कों पर फेंक देते हैं। न्यायालय ने कहा कि इस समस्या से निपटे जाने तक अनधिकृत कॉलोनियों को नियमित करने के बारे में अधिकारियों को सोचना चाहिए।
न्यायालय ने सफाई व्यवस्था के समाधान के लिए लोगों को शिक्षित करने के लिए जागरूकता कार्यक्रम भी शुरू करने को कहा। इसी के साथ न्यायालय ने दिल्ली सरकार से तीनों निगमों को दी गई राशि के बारे में जानकारी देने को भी कहा है। वहीं इस मामले की अगली सुनवाई कल दोबारा की जाएगी।