वीर बाल दिवस : ये है साहिबज़ादा फतेह सिंह जी के बलिदान की कहानी

Sahibzada Fateh Singh,
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आज हम एक सिख शहीद के बारे में बात करेंगे, जिनकी उम्र महज 6 साल थी जो सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह के चार पुत्रों में सबसे छोटे पुत्र थे. गुरु गोविन्द सिंह जी के घर 12 दिसंबर 1699 आनंदपुर में साहिबजादा फतेह सिंह का जन्म हुआ. इनकी माता का नाम माता सुंदरी जी था. जब मुगलों ने आनंदपुर को घेर लिया था, और गुरु गोबिंद जी का परिवार आनंदपुर छोड़कर जा रहा था तो मुगलों ने अपना वचन तोड़, उनके परिवार का पीछा किया था. उसी समय साहिबजादा फतेह सिंह और उनके बड़े भाई जोरावर सिंह के साथ उनकी दादी, माता गुजरी कौर जी गुरु गोबिंद जी से अलग हो गई थी.

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जिसके बाद वह कुछ समय गुरु के एक अनुयायी के घर रहे और बाद में उन्हें खुद को गुरु का सेवक बताने वाले एक व्यक्ति ने धोखा दिया. जिसके बाद उन्हें मुग़ल सेना द्वारा बंदी बना लिया गया था. उन्हें वज़ीर खान को सौपं दिया गया. वज़ीर खान ने उन्हें ठंडा बुर्ज में नज़रबंद कर दिया था. जहाँ उन्हें एक रात रखा गया और उन्हें पूरी रात आराम भी नहीं करने दिया गया था.

इतिहास में दर्ज सबसे कम उम्र के शहीद

हम आपको बता दें कि फतेह सिंह इतिहास में दर्ज सबसे कम उम्र के शहीद हैं. मुगलों द्वारा 26 दिसंबर 1705 को फतेह सिंह और उनके बड़े भाई जोरावर सिंह सरहिंद को ईंटों और सीमेंट की दीवार के भीतर दफन कर दिया गया था. फतेह सिंह एक ऐसे शहीद है जिन्होंने जानबूझकर 6 साल की उम्र में आपनी जान दे दी थी. सिख धर्म में इन दोनों भाइयों को सबसे पवित शहीद माना जाता है.

सोचने की बात है कि इतनी कम उम्र के बच्चों में मुगलों द्वारा दिए जा रहे कई अच्छे उपहार, राजाओं जैसा जीवन के वादे को मना करने की हिम्मत और बहादुरी कैसे थी. इन सभी चीजों को पाने के लिए उन्हें बस अपना धर्म त्यागना था. जिसका परिणाम ये हुआ की उन छोटे बच्चों को मुगलों द्वारा को ईंटों और सीमेंट की दीवार के भीतर दफन कर दिया गया. इन बच्चों का साहस देख, गुरु जी की याद आ जाती है.

इस बलिदान के बाद पूरी दुन्य इन बहादुर बच्चों को सलाम करती है. जिन्होंने एक बार भी आसन विकल्प नहीं चुना. हर पल अपना धर्म और कर्तव्य याद रहा. आपने शरीर पर इतने अत्याचार के बाद भी अपने इरादे पर अड्डे रहे और एक दर्द भरी मौत को गले लगा लिया.

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