13 January 2024 : आज की मुरली के ये हैं मुख्य विचार

aaj ki murli
Sourec- Nedrick news

13 January ki Murli in Hindi – प्रजापति ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय में रोजाना मुरली ध्यान से आध्यात्मिक संदेश दिया जाता है और यह एक आध्यात्मिक सन्देश है. वहीं इस पोस्ट के जरिये हम आपको 13 जनवरी 2024 (13 January ki Murli) में दिये सन्देश की जानकारी देने जा रहें हैं.

मीठे बच्चे – मनुष्य शरीर की उन्नति का प्रबन्ध रचते, आत्मा की उन्नति वा चढ़ती का साधन बाप ही बतलाते हैं – यह बाप की ही रेसपान्सिबिल्टी है”

प्रश्नः- सदा बच्चों की उन्नति होती रहे उसके लिए बाप कौन-कौन सी श्रीमत देते हैं?
उत्तर:- बच्चे, अपनी उन्नति के लिए 1- सदा याद की यात्रा पर रहो। याद से ही आत्मा की जंक निकलेगी। 2- कभी भी बीती को याद नहीं करो और आगे के लिए कोई आश न रखो। 3- शरीर निर्वाह के लिए कर्म भले करो लेकिन जो भी टाइम मिले वह वेस्ट नहीं करो, बाप की याद में टाइम सफल करो। 4- कम से कम 8 घण्टा ईश्वरीय सेवा करो तो तुम्हारी उन्नति होती रहेगी।

ओम् शान्ति। रूहानी बाप बैठ रूहानी बच्चों को अथवा आत्माओं को समझाते हैं, मनुष्य कहते हैं आत्मा की रेसपान्सिबिल्टी है परमात्मा के ऊपर। वही सब आत्माओं की उन्नति और मन की शान्ति का रास्ता बता सकते हैं। आत्मा रहती है भ्रकुटी में सबसे न्यारी। अक्सर करके रोग होते हैं शरीर में। 13 January ki Murli यहाँ भ्रकुटी में नहीं। भल सिर में दर्द पड़ेगा परन्तु जो आत्मा का तख्त है वहाँ कोई तकलीफ नहीं होगी क्योंकि उस तख्त पर आत्मा विराजमान है। अब आत्मा की उन्नति अथवा शान्ति देने वाला सर्जन तो एक ही परमात्मा है। जब आत्मा की उन्नति हो तब आत्मा को हेल्थ वेल्थ भी मिले। शरीर को तो कितना भी करो उससे कोई उन्नति नहीं होगी। शरीर की कुछ न कुछ खिटपिट तो रहती ही है। आत्मा की उन्नति तो सिवाए बाप के कोई कर न सके। और सब दुनिया में शरीर की उन्नति का प्रबन्ध रचते हैं, बाकी आत्मा की चढ़ती कला वा उन्नति होती नहीं है। वह तो बाप ही सिखलाते हैं। सारा मदार आत्मा पर है। 13 January ki Murli आत्मा ही 16 कला बनती है फिर आत्मा ही बिल्कुल कला रहित हो जाती है। 16 कलायें बनती हैं फिर कला कम कैसे होती है, यह भी बाप ही समझाते हैं। बाप कहते हैं सतयुग में तुमको बहुत सुख था। आत्मा चढ़ती कला में थी और सतसंगों में आत्मा की उन्नति कैसे हो – यह बात नहीं समझाई जाती है। वह जिस्मानी नशे में रहते हैं। देह-अभिमान है, बाप तुमको देही-अभिमानी बनाते हैं। आत्मा जो तमोप्रधान बनी है उनको सतोप्रधान बनाना है। यहाँ सब हैं रूहानी बातें। वहाँ हैं जिस्मानी बातें। सर्जन लोग एक हार्ट निकाल दूसरा डालते हैं। उनका आत्मा से कोई तैलुक नहीं। आत्मा तो भ्रकुटी में रहती है, उनका आपरेशन आदि कुछ नहीं होता।

अच्छा बाप समझाते हैं कि आत्मा की उन्नति तो एक ही बार होती है। आत्मा जब तमोप्रधान हो जाती है तब आत्मा की उन्नति करने वाला बाप आता है। उनके बिगर किसी भी आत्मा की चढ़ती कला हो न सके। बाप कहते हैं यह छी-छी तमोप्रधान आत्मायें मेरे पास आ न सके। 13 January ki Murli तुम्हारे पास जब कोई आते हैं तो कहते हैं शान्ति कैसे मिले अथवा उन्नति कैसे हो? परन्तु यह नहीं जानते कि उन्नति के बाद हम कहाँ जायेंगे, क्या होगा? पुकारते हैं पतित से पावन बनाओ। जीवनमुक्तिधाम में ले जाओ। तो आत्माओं को ही ले जायेंगे ना। शरीर तो यहाँ खत्म हो जायेंगे। परन्तु यह बातें किसकी बुद्धि में नहीं हैं। यह है ईश्वरीय मत। बाकी वह सब हैं मानव मत। ईश्वरीय मत से एकदम आसमान में चढ़ जाते हो – शान्तिधाम, सुखधाम में। फिर ड्रामा अनुसार नीचे भी उतरना ही है। आत्मा की उन्नति के लिए बाप के सिवाए और कोई सर्जन नहीं। सर्जन फिर तुमको आप समान बनाते हैं। कोई तो बहुतों की उन्नति अच्छी करते हैं, कोई मीडियम, कोई थर्ड औरों की उन्नति करते हैं। आत्माओं की उन्नति का जवाबदार है ही एक बाप। दुनिया में यह किसको मालूम नहीं है। बाप कहते हैं इन साधुओं आदि का भी उद्धार करने मैं आता हूँ। पहले जब आत्मा आती है तो पवित्र ही आती है। अब बाप आये हैं सबकी उन्नति करने। नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार तुम्हारी देखो कितनी उन्नति हो जाती है। वहाँ तुमको शरीर भी फर्स्टक्लास मिलता है। बाप है ही अविनाशी सर्जन। वही आकर तुम्हारी उन्नति करते हैं। तो तुम ऊंच ते ऊंच अपने स्वीट होम में चले जायेंगे। वो लोग मून पर जाते हैं। 13 January ki Murli अविनाशी सर्जन तुमको उन्नति प्राप्त कराने लिए कहते हैं मामेकम् याद करो तो विकर्म विनाश होंगे। बाप विश्व के बच्चों को लिबरेट करते हैं। जब तुम स्वर्ग में जायेंगे तब और सब शान्तिधाम में होंगे। बाप कितना वन्डरफुल कार्य करते हैं। कमाल है बाप की! तब कहते हैं तुम्हारी गति मत तुम ही जानो। आत्मा में ही मत है, आत्मा अलग हो जाए तो मत मिल न सके। ईश्वरीय मत से चढ़ती कला, मानव मत से उतरती कला-यह भी ड्रामा में नूँध है। वो लोग समझते हैं अभी स्वर्ग बन गया है। आगे चलकर मालूम पड़ेगा कि यह नर्क है वा स्वर्ग। भाषा के ऊपर कितना हंगामा करते हैं। दु:खी हैं ना। स्वर्ग में दु:ख होता नहीं। अर्थक्वेक भी नहीं होगी। अब पुरानी दुनिया का विनाश होना है फिर स्वर्ग बन जायेगा। फिर आधाकल्प वह भी गुम हो जाता है। कहते हैं द्वारिका सागर के नीचे चली गई। सोने की चीज़ें नीचे दब गई हैं। सो तो जरूर अर्थक्वेक से नीचे जायेंगी। समुद्र को थोड़ेही खोदकर निकालेंगे। धरती को खोदते हैं, वहाँ से माल निकालते हैं।

बाप कहते हैं मैं सबका उपकार करता हूँ। मेरा फिर सब अपकार करते, गाली देते। मैं तो अपकारी का भी उपकार करता हूँ, तो मेरी जरूर महिमा होनी चाहिए। भक्ति मार्ग में देखो कितना मान है। 13 January ki Murli तुम बच्चे भी बाप की कितनी महिमा करते हो। चित्र में 32 गुण दिखाये हैं। अभी तुम भी बाप जैसे गुणवान बन रहे हो तो कितना पुरुषार्थ करना चाहिए। टाइम वेस्ट नहीं करना चाहिए। बहुत हाइएस्ट बाप पढ़ाते हैं तो रोज़ ज़रूर पढ़ना चाहिए। यह अविनाशी बाप भी है, टीचर भी है, पिछाड़ी में आने वाले पुरानों से भी तीखे जा रहे हैं। अब सारी दुनिया की उन्नति हो रही है – बाप द्वारा। श्रीकृष्ण को भी गुणवान बनाने वाला बाप है, सबको देने वाला है। बाकी सब लेते हैं। यह घराना बन रहा है – नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार। बेहद का बाप देखो कितना मीठा और कितना प्यारा है। ऊंचे ते ऊंचे बाप द्वारा अब सबकी उन्नति हो रही है। बाकी तो सबको सीढ़ी उतरनी है। कमाल है बाप की। भल खाओ-पिओ सब कुछ करो सिर्फ बाबा के गुण गाओ। ऐसे नहीं बाबा की याद में रहने से खाना नहीं खा सकते। रात को फुर्सत बहुत मिलती है। 8 घण्टा तो फुर्सत है। बाप कहते हैं कम से कम 8 घण्टा इस गवर्मेन्ट की सर्विस करो। जो भी आये उनको आत्मा की उन्नति के लिए रास्ता बताओ। जीवनमुक्ति माना विश्व का मालिक और मुक्ति माना ब्रह्माण्ड का मालिक। ये समझाना तो सहज है ना। परन्तु तकदीर में नहीं है तो तदबीर क्या कर सकेंगे।

बाप समझाते हैं कि बाप की याद सिवाए आत्मा की जंक निकल नहीं सकती। भल ज्ञान सारा दिन सुनाओ परन्तु आत्मा की उन्नति का उपाय याद के सिवाए और कोई नहीं। 13 January ki Murli बाप बच्चों को बहुत प्यार से रोज़-रोज़ समझाते हैं परन्तु अपनी उन्नति करते हैं वा नहीं करते हैं, वह हर एक खुद समझ सकते हैं। यह सिर्फ तुम नहीं सुनते हो परन्तु सब सेन्टर्स वाले बच्चे सुनते हैं। यह टेप रखी है। यह भी अपने में आवाज़ भरकर जाती है – सर्विस पर। यह बहुत सर्विस देती है। बच्चे समझते हैं शिवबाबा की मुरली हम सुनते हैं। तुम्हारे द्वारा सुनने से इनडायरेक्ट हो जाता है फिर यहाँ आते हैं डायरेक्ट सुनने के लिए। फिर बाबा ब्रह्मा मुख द्वारा सुनाते हैं अथवा मुख द्वारा ज्ञान अमृत देते हैं। इस समय दुनिया तमोप्रधान हो गई है तो उस पर ज्ञान की वर्षा चाहिए। वह पानी की वर्षा तो बहुत होती है। उस पानी से तो कोई पावन बन नहीं सकता। यह है सारी ज्ञान की बात।

बाप कहते हैं अब जागो, मैं तुमको शान्तिधाम ले जाता हूँ। आत्मा की उन्नति भी इसमें है, बाकी सब हैं जिस्मानी बातें। रूहानी बातें सिर्फ तुम ही सुनते हो। पदमपति, भाग्यशाली सिर्फ तुम ही बनते हो। बाप है गरीब निवाज़। गरीब ही सुनते हैं, तब बाप कहते हैं अहिल्याओं, गणिकाओं को भी समझाओ। सतयुग में ऐसी बातें नहीं होती। वह है बेहद का शिवालय। अब है बेहद का वेश्यालय, बिल्कुल ही तमोप्रधान हैं। इससे जास्ती मार्जिन नहीं है। अब इस पतित दुनिया को चेन्ज होना है। भारत में राम राज्य और रावण राज्य होता है। 13 January ki Murli जब अनेक धर्म हो जाते हैं तब अशान्ति हो जाती है। लड़ाई तो लगती ही रहती है। अब तो बहुत ज़ोर से लड़ाई लगेगी। कड़ी लड़ाई लग फिर बन्द हो जायेगी क्योंकि राजाई भी स्थापन हो, कर्मातीत अवस्था भी हो। अभी तो कोई कह न सके। वह अवस्था आयेगी तो पढ़ाई पूरी हो जायेगी। फिर ट्रान्सफर हो जायेंगे – अपने पुरुषार्थ अनुसार। इस भंभोर को आग तो लगनी है। फटाफट विनाश हो जायेगा। उनको खूनी नाहेक खेल कहा जाता है। नाहेक सब मर जायेंगे। रक्त की नदियाँ बहेंगी। फिर घी दूध की नदियाँ बहेंगी। हाहाकार से जयजयकार होगी। बाकी सब अज्ञान निद्रा में सोते-सोते ही खत्म हो जायेंगे। बड़ी युक्ति से स्थापना होती है। विघ्न भी पड़ेंगे, अत्याचार भी होंगे। अब माताओं द्वारा स्वर्ग का द्वार खुलता है। हैं तो पुरुष भी बहुत परन्तु माता जन्म देती है तो उनको पुरुष से इज़ाफा ज्यादा मिलता है। स्वर्ग में तो नम्बरवार सब जायेंगे कोई दो जन्म मेल के भी बन सकते हैं, हिसाब-किताब जो ड्रामा में नूँध है वही होता है। आत्मा की उन्नति होने से कितना फ़र्क पड़ जाता है। कोई तो एकदम हाइएस्ट बन जाता है कोई तो बिल्कुल लोएस्ट। कहाँ राजा तो कहाँ प्रजा।

मीठे-मीठे बच्चों को बाप समझाते हैं अब पुरुषार्थ करो। योग से पवित्र बनो तब धारणा हो। मंज़िल बहुत ऊंची है। अपने को आत्मा समझ बहुत प्यार से बाप को याद करना है। आत्मा का परमात्मा के साथ लॅव है ना। यह है रूहानी लॅव, जिससे आत्मा की उन्नति होती है। जिस्मानी लॅव से गिर पड़ते हैं। तकदीर में नहीं है तो भागन्ती हो जाते हैं। यज्ञ की बड़ी सम्भाल चाहिए। माताओं की पाई-पाई से यज्ञ की सर्विस हो रही है। 13 January ki Murli  यहाँ गरीब ही साहूकार बनते हैं। सारा मदार पढ़ाई पर है। तुम अभी सदा सुहागिन बनती हो-यह सबको फीलिंग आती है। माला का दाना बनने वालों को कितनी अच्छी फीलिंग चाहिए। शिवबाबा को याद करते, सर्विस करते रहो तो बहुत उन्नति हो सकती है। शिवबाबा की सर्विस में शरीर भी न्योछावर करना चाहिए। सारा दिन नशा रहे – यह मासी का घर नहीं है। देखना है हमने अपनी कितनी उन्नति की है। बाबा कहते हैं – बीती को याद न करो। आगे की कोई आश मत रखो। शरीर निर्वाह अर्थ कर्म तो करना है। जो टाइम मिले उसमें बाप को याद करो तो विकर्म विनाश होंगे। बाबा बाँधेलियों को भी समझाते हैं कि तुम्हें पति को बहुत नम्रता प्यार से समझाना है, कोई मारे तो उन पर फूलों की वर्षा करो। अपने को बचाने की बड़ी युक्ति चाहिए। ऑखें बड़ी शीतल चाहिए। कभी हिलें नहीं। इस पर अंगद का भी मिसाल है, बिल्कुल अडोल था। तुम सब महावीर हो, जो कुछ पास्ट हुआ उनको याद नहीं करना है। सदैव हर्षित रहना है। ड्रामा पर अटल रहना है। बाप खुद कहते हैं मैं भी ड्रामा के बंधन में बाँधा हुआ हूँ। बाकी और कोई बात नहीं। श्रीकृष्ण के लिए लिखा है स्वदर्शन चक्र से मारा। यह सब कथायें हैं। बाप तो हिंसा कर न सके। यह तो बाप टीचर है, मारने की बात नहीं है। यह बातें सब इस समय की हैं। एक तऱफ ढेर मनुष्य हैं दूसरे तऱफ तुम हो, जिनको आना होगा आते रहेंगे। कल्प पहले मिसल पद पाते रहेंगे। इसमें चमत्कार की बात नहीं। बाप रहमदिल है, दु:ख हर्ता सुख कर्ता है, फिर दु:ख कैसे देंगे। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

13 January ki Murli धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) कम से कम 8 घण्टा ईश्वरीय गवर्मेंन्ट की सर्विस कर अपना टाइम सफल करना है। बाप जैसा गुणवान बनना है।

2) जो बीता उसे याद नहीं करना है। बीती को बीती कर सदैव हर्षित रहना है। ड्रामा पर अडोल रहना है।

वरदान:- संकल्प, बोल और कर्म के व्यर्थ को समर्थ में परिवर्तन करने वाले होलीहंस भव
होलीहंस का अर्थ है – संकल्प, बोल और कर्म के व्यर्थ को समर्थ में परिवर्तन करने वाले क्योंकि व्यर्थ जैसे पत्थर होता है, पत्थर की वैल्यु नहीं, रत्न की वैल्यु होती है। होलीहंस फौरन परख लेता है कि ये काम की चीज़ नहीं है, ये काम की है। कर्म करते सिर्फ यह स्मृति इमर्ज रहे कि हम राजयोगी नॉलेजफुल आत्मायें रूलिंग और कन्ट्रोलिंग पावर वाली हैं, तो व्यर्थ जा नहीं सकता। यह स्मृति होलीहंस बना देगी।
स्लोगन:- जो स्वयं को इस देह रूपी मकान में मेहमान समझते हैं वही निर्मोही रह सकते हैं।

 

अव्यक्ति साइलेन्स द्वारा डबल लाइट फरिश्ता स्थिति का अनुभव करो

जैसे जब कोई ऐसा दिन होता है तो चलते-फिरते ट्रैफिक को भी रोक कर तीन मिनट साइलेन्स की प्रैक्टिस कराते हैं। चलते हुए सभी कार्यों को स्टॉप कर लेते हैं। ऐसे आप भी कोई कार्य करते हो या बात करते हो तो बीच-बीच में यह संकल्पों की ट्रैफिक को स्टॉप करने का अभ्यास करो। एक मिनट के लिए भी मन के संकल्पों को, चाहे शरीर द्वारा चलते हुए कर्म को बीच में रोक कर अपने फरिश्ते स्वरूप में स्थित हो जाओ।

जानिए कैसे कर सकते हैं श्री प्रेमानंद महाराज जी से मुलाकात.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here