Golu Devta Story: उत्तराखंड, जिसे देवभूमि के नाम से जाना जाता है, अपनी ऐतिहासिक और धार्मिक धरोहर के लिए प्रसिद्ध है। यहां के कण-कण में देवी-देवताओं का वास माना जाता है, और इस भूमि को मनीषियों की कर्मभूमि और तपस्थली भी कहा जाता है। उत्तराखंड में अनेक मंदिरों के दर्शन होते हैं, जिनकी प्रसिद्धि केवल भारत ही नहीं, बल्कि विदेशों तक फैली हुई है। कुमाऊं क्षेत्र में स्थित गोलू देवता का मंदिर एक प्रमुख धार्मिक स्थल है। गोलू देवता को न्याय का देवता माना जाता है और उनके भक्तों का विश्वास है कि वे उनकी इच्छाओं को पूरा कर सकते हैं और समस्याओं का समाधान कर सकते हैं।
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गोलू देवता का जन्म और उनका जीवन संघर्ष- Golu Devta Story
गोलू देवता का जन्म राजा झाल राय और उनकी पत्नी कलिंका के पुत्र के रूप में हुआ था। राजा झाल राय कुमाऊं के चंपावत जिले के शासक थे और उनकी दो अन्य पत्नियां थीं, जो उनकी पहली पत्नी कलिंका और उसके बेटे से जलती थीं। उन्होंने गोलू देवता को खत्म करने की साजिश रची और एक दिन, जब कलिंका कहीं दूर थी, गोलू देवता को उनके पालने से उठाकर कपड़े में लपेट दिया और नदी में फेंक दिया। उनकी जगह पत्थर रख दिया गया, ताकि यह दिखाया जा सके कि कुछ हुआ ही नहीं।
हालांकि, गोलू देवता की मृत्यु नहीं हुई। उन्हें एक मछुआरे ने नदी में तैरते हुए पाया और उसे अपने घर ले जाकर अपने बेटे की तरह पाला। यह घटना गोलू देवता के जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ थी। जब गोलू देवता आठ साल के हुए, तो उन्हें एक अजीब सपना आया जिसमें उन्होंने लकड़ी के घोड़े को आसमान में उड़ते हुए देखा। मछुआरे ने उनके असली स्वरूप को पहचानने के बाद, उन्हें चंपावत ले जाने का फैसला किया।
गोलू देवता की वापसी और उनका न्याय
चंपावत में, गोलू देवता ने महल के द्वार पर लकड़ी के घोड़े को देखा और उस पर चढ़कर महल के अंदर पहुंचे। इस दौरान, लकड़ी के घोड़े ने घोषणा की कि गोलू देवता राजा झाल राय के असली बेटे हैं और उन्होंने अपनी सौतेली माताओं के विश्वासघात को उजागर करने का निर्णय लिया। राजा ने जब यह देखा कि पालने में रखे पत्थर को खोलने पर एक बच्चे की जगह कोई और चीज नहीं थी, तो उसे एहसास हुआ कि उसे उसकी पत्नियों ने धोखा दिया है।
राजा ने गोलू देवता को अपना पुत्र और उत्तराधिकारी मान लिया और उनसे अपनी लापरवाही के लिए माफी मांगी। मछुआरे को भी धन्यवाद दिया और उसे उदारतापूर्वक पुरस्कार दिया। इसके बाद, चंपावत के लोग गोलू देवता की वापसी पर खुशी मनाने लगे और उन्हें अपना उद्धारकर्ता मान लिया।
गोलू देवता का शासनकाल
गोलू देवता बड़े होकर एक दयालु और न्यायप्रिय शासक बने। उन्होंने अपने लोगों को न्याय दिया और उनके जीवन में सुधार लाया। गोलू देवता ने कुमाऊं में कई मंदिरों का निर्माण किया, जिनमें उनके चाचा हरिश्चंद देवज्यूं और सेम देवज्यूं के सम्मान में बने मंदिर भी शामिल हैं। चितई में उनका प्रमुख मंदिर भी बना, जहां उनकी मूर्ति स्थापित की गई, और उन्हें न्याय के देवता के रूप में पूजा जाने लगा।
गोलू देवता के भक्त और उनकी पूजा
गोलू देवता को कुमाऊं के विभिन्न क्षेत्रों में पूजा जाता है। उनका मुख्य मंदिर चितई, अल्मोड़ा में स्थित है, जहां भक्त उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए घंटियां और पत्र चढ़ाते हैं। माना जाता है कि गोलू देवता हर प्रार्थना को सुनते हैं और अपने भक्तों की इच्छाओं को पूरा करते हैं। लोग यहां आकर अपनी समस्याओं को हल करने के लिए पत्र लिखकर उन्हें चढ़ाते हैं, और जब उनकी मनोकामना पूरी होती है, तो वे मंदिर में आकर घंटियां चढ़ाते हैं।
गोलू देवता की धार्मिक महिमा
गोलू देवता को कुमाऊं में न्याय, शांति और समृद्धि के देवता के रूप में पूजा जाता है। उनका प्रभाव केवल कुमाऊं तक ही सीमित नहीं है, बल्कि विभिन्न त्योहारों जैसे नंदा अष्टमी, गोलू जयंती और गोलू देवता मेले में उन्हें श्रद्धा और भक्ति से मनाया जाता है। गोलू देवता की पूजा कई परिवारों, व्यवसायों और समुदायों के लिए विशेष महत्व रखती है, और वे विभिन्न उद्देश्यों के लिए उनकी कृपा प्राप्त करते हैं, जैसे विवाह, संतानोत्पत्ति, शिक्षा, स्वास्थ्य और धन के लिए।
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