ये हैं गुरु नानक देव जी के सबसे बड़े भक्त, जिन्हें प्राप्त था शुरुआती 6 गुरुओं का आशीर्वाद

Baba Budha Singh
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सिखों के लिए अपनी गुरुओं के स्थान सबसे ऊपर होता है, सिख गुरुओं के बहुत सारे भक्त हुए है लेकिन गुरु नानक देव जी का सबसे बड़ा भक्त बाबा बुड्ढा सिंह थे, इन्होनें गुरु अंगद देव से लेकर गुरु हरगोविंद को तिलक लगाकर गुरुगद्दी का अधिकारी घोषित किया था. बाबा बुड्ढा सिंह बचपन से ही गुरु नानक देव को बहुत मानते थे, इसक एस्थ ही कुछ लोगों का कहना यह भी है की बाबा बुड्ढा सिंह सिख धर्म गुरु, गुरु नानक देव जी के साथ अन्य 5 सिखों गुरुओं के भी साक्षी थे. तो आज हम आपको सिख गुरुओं के सबसे बड़े भक्त के बारे में बताएंगे, की कैसे इनका नाम बाबा बुड्ढा सिंह पड़ा.

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बाबा बुढ़ा सिंह का इतिहास

हम आपको बता दे बाबा बुड्ढा जी का जन्म 1506 में पंजाब के अमृतसर में हुआ था. कुछ समय बाद उनका परिवार करतारपुर साहिब के पास रामदास गावं में आकर बस गया जो वर्तमान में पाकिस्तान का हिस्सा है. बाबा बुड्ढा में उनके पिता में जाने क्या गुण दिखे, जिसकी वजह से उनके पिता ने उनका नाम बुड्डा रखा. कुछ इतिहासकारों की मानें तो जब बाबा बुड्ढा 13 साल के थे, तब सिखों के गुरु, गुरु नानक देव जी सिख धर्म का प्रचार करने उनके गावं आए थे, जब बालक बुड्डा ने गुरु जी की बातें सुनी तो वह उनसे बहुत प्रभावित हुए. जिसके बाद हर दिन बालक बुड्डा अपनी घर से कुछ खाने का सामान लेकर गुरु जी को खिलने चले जाते थे.

एक दिन जब बालक बुड्डा गुरु जी खाना खिलाने गए थे तो उस बालक ने गुरु जी एक सवाल पूछा कि गुरु जी जैसे हमारी शरीर को चलने के लिए पर्याप्त भोजन की आवश्यकता होती है वैसे ही हमारी मन ही तृप्ति कैसे होती है. गुरु जी उस बालक के सवाल को सुनकर चौंक गए, कि इतना छोटा सा बालक और इसकी बातें कितने बड़ी है. गुरु जी बालक से बहुत खुश हुए.

इतिहासकारों के अनुसार बालक बुड्डा ने धीरे -धीरे गुरु जी का मन मोह लिया और बालक बुड्डा ने भी गुरु जी को अपने गुरु के रूप में स्वीकार कर लिया. जिसके बाद उसने गुरु जी की सेवा और उनके आदेश का पालन करना अपना परम उदेश्य बना लिया था.  आगे चलकर बालक बुड्डा के पवित्र बोलों की वजह से ही गुरू साहिब जी ने उसका नाम बाबा बुड्ढा’ के नाम से मशहूर किया.  इसके साथ ही सिख धर्म के इतिहास के अनुसार जब गुरु नानक देव जी ने गुरु अंगद देव जी को सिखी गुरु के रूप म चुना तो बाबा बुड्ढा जी ने ही उन्हें तिलक लगाकर गुरुगद्दी का अधिकारी घोषित किया था. इतिहास के अनुसार यही परम्परा सिखों के छठें गुरु तक चली.

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