Jagannath Puri Rath Yatra: ओडिशा के पुरी में भगवान जगन्नाथ की ऐतिहासिक रथयात्रा एक बार फिर आस्था का महासागर बन चुकी है। हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी लाखों श्रद्धालु इस पावन उत्सव का हिस्सा बनने के लिए उमड़ पड़े हैं। यह सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि भारतीय सांस्कृतिक एकता और सार्वभौमिक श्रद्धा का प्रतीक बन चुका है, जिसमें धर्म, जाति, वर्ग और भाषा की सीमाएं मिट जाती हैं।
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भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा तीन अलग-अलग रथों पर सवार होकर गुंडिचा मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं। इस यात्रा के दौरान रथ को खींचने की परंपरा है, जिसे श्रद्धालु सौभाग्य और मोक्ष की ओर बढ़ा हुआ कदम मानते हैं।
रथ की रस्सियां: सिर्फ एक माध्यम नहीं, बल्कि आस्था का प्रतीक- Jagannath Puri Rath Yatra
रथ को खींचने वाली रस्सियां इस उत्सव की आत्मा मानी जाती हैं। इन्हें छूना या खींचना भगवान के स्पर्श के समान माना जाता है। इन रस्सियों के विशेष नाम हैं और हर नाम के पीछे गूढ़ पौराणिक कथाएं छिपी हुई हैं।
भगवान जगन्नाथ की रस्सी: शंखचूड़
भगवान जगन्नाथ के रथ की रस्सी का नाम शंखचूड़ है। कथा के अनुसार, एक बार राक्षस शंखचूड़ ने भगवान की अधूरी मूर्ति को देखकर उनका अपहरण करने का प्रयास किया। भगवान बलभद्र ने उसे पराजित कर दिया। मरते समय शंखचूड़ ने प्रार्थना की कि उसे भी भगवान की सेवा का अवसर मिले। बलराम जी ने उसकी नाड़ी और रीढ़ से रस्सी बनाई, जो आज भी भगवान के रथ को खींचने में उपयोग होती है। इस रस्सी को खींचना भक्ति और सेवा का प्रतीक माना जाता है।
भगवान बलभद्र की रस्सी: वासुकि
बलभद्र के रथ की रस्सी को वासुकि कहा जाता है। वासुकि वही पौराणिक नाग हैं जो भगवान शिव के गले में स्थान पाते हैं। मान्यता है कि वासुकि ने शेषनाग से भगवान की सेवा करने की इच्छा जताई थी। शेषनाग ने उन्हें वचन दिया कि जब वह बलराम रूप में पृथ्वी पर आएंगे, तब उन्हें सेवा का अवसर मिलेगा। इसलिए यह रस्सी भाईचारे, समर्पण और निष्ठा का प्रतीक है।
देवी सुभद्रा की रस्सी: स्वर्णचूड़
सुभद्रा के रथ की रस्सी को स्वर्णचूड़ कहा जाता है। यह माया, मोह और बंधन का प्रतीक है। मान्यता है कि इसे खींचने से भक्त आध्यात्मिक मुक्ति की ओर अग्रसर होता है। यह आत्मा और परमात्मा के मिलन का प्रतीक बनती है।
कालसर्प दोष से मुक्ति का उपाय भी
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, यदि किसी की कुंडली में कालसर्प दोष हो, तो रथयात्रा की रस्सी को श्रद्धा से खींचना या छूना इस दोष को शांत करने का उपाय माना जाता है। विशेष रूप से शंखचूड़ रस्सी को छूने से जीवन की बाधाओं से मुक्ति मिलती है।
रथयात्रा का पहला दिन: आस्था का सैलाब
इस बार रथयात्रा के पहले दिन भगवान बलभद्र का रथ लगभग 200 मीटर तक खींचा गया। सूर्यास्त के बाद रथ खींचने की परंपरा नहीं होने के कारण यात्रा को शनिवार के दिन फिर से शुरू किया गया। श्रद्धालुओं के लिए यह सिर्फ एक परंपरा नहीं, बल्कि भगवान से सीधा जुड़ाव है। वे घंटों इंतजार करते हैं बस एक बार रस्सी छूने के लिए, क्योंकि उनके लिए यही मोक्ष, पुण्य और दिव्य अनुभव होता है।
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