Mata Vaishno Devi: भारत में स्थित वैष्णो देवी का मंदिर, जो जम्मू और कश्मीर के कटरा नगर के पास त्रिकुटा पहाड़ियों की ऊंचाइयों पर स्थित है, एक अत्यंत पवित्र और प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। यह मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यहां पर स्थित माता वैष्णो देवी की गुफा में स्वयंभू मूर्तियां विराजमान हैं, जिन्हें लाखों श्रद्धालु हर साल पूजा-अर्चना करने आते हैं। त्रिकुटा की पहाड़ियों पर स्थित इस मंदिर का इतिहास और इसके आसपास की कथाएं अद्वितीय हैं।
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मंदिर का परिचय- Mata Vaishno Devi
वैष्णो देवी का मंदिर 5,200 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यह भारत का दूसरा सबसे अधिक देखा जाने वाला धार्मिक तीर्थ स्थल है, केवल तिरूमला वेंकटेश्वर मंदिर से पीछे। त्रिकुटा पहाड़ियों की गुफा में माता वैष्णो देवी की तीन प्रमुख मूर्तियां – देवी काली (दाएं), देवी सरस्वती (बाएं) और देवी लक्ष्मी (मध्य) – पिण्डी रूप में स्थापित हैं। इन्हीं तीनों पिण्डियों के सम्मिलित रूप को ही वैष्णो देवी माता के रूप में पूजा जाता है। गुफा की लंबाई 98 फीट है, और यहां एक चबूतरा भी बना हुआ है, जहां माता की पूजा की जाती है। इस स्थान को “माता का भवन” कहा जाता है, और यह वही स्थान है जहां देवी ने भैरवनाथ का वध किया था। भैरवनाथ के वध के बाद उनका सिर 3 किलोमीटर दूर भैरों घाटी में गिरा, जो अब एक प्रसिद्ध मंदिर के रूप में जाना जाता है।
पौराणिक कथा
वैष्णो देवी के मंदिर से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं, जो श्रद्धालुओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बनती हैं। एक लोकप्रिय कथा के अनुसार, त्रिकुटा पहाड़ियों पर एक सुंदर कन्या को देखकर भैरवनाथ ने उसका पीछा करना शुरू किया। कन्या ने वायु रूप में बदलकर पहाड़ियों की ओर उड़ान भरी, और भैरवनाथ भी उसके पीछे दौड़ने लगे। इसी समय पवनपुत्र हनुमान जी वहां पहुंचे, और उन्होंने माता की रक्षा की। हनुमान जी की प्यास बुझाने के लिए माता ने धनुष से एक जलधारा निकाली और उस जल में अपने केश धोए। इसके बाद कन्या ने गुफा में प्रवेश किया और नौ माह तक तपस्या की। इस दौरान हनुमान जी ने पहरा दिया।
लेकिन भैरव नाथ नहीं माना और वह गुफा में प्रवेश करने के लिए पहुंच गया। जब माता ने भैरव को देखा, तो हनुमान जी ने भैरवनाथ से युद्ध करने की चुनौती दी। अंत में, माता वैष्णो देवी ने महाकाली का रूप धारण किया और भैरवनाथ का वध कर दिया। हालांकि, भैरवनाथ को अपने किए का पछतावा हुआ और उसने देवी से क्षमा की प्रार्थना की। माता ने उसे मोक्ष प्राप्ति का वरदान दिया और कहा कि उनके दर्शन तब तक अधूरे रहेंगे, जब तक कोई भक्त भैरवनाथ के दर्शन नहीं करेगा।
श्रीधर की कथा और मंदिर की स्थापना
एक और प्रसिद्ध कथा है, जो मंदिर के अस्तित्व से जुड़ी हुई है। यह कथा श्रीधर नामक एक भक्त से संबंधित है, जो हंसाली गांव में रहते थे। श्रीधर बहुत गरीब थे और उन्हें संतान का सुख नहीं था, लेकिन वह हमेशा माता के भंडारे के आयोजन की कल्पना किया करते थे। एक दिन उन्होंने भंडारे का आयोजन किया, लेकिन उनके पास पर्याप्त सामग्री नहीं थी। तब एक छोटी लड़की, जिसका नाम वैष्णवी था, ने उनकी मदद की और सभी को स्वादिष्ट भोजन परोसा। भंडारे के बाद, श्रीधर ने उस लड़की के बारे में जानने की कोशिश की, लेकिन वह अचानक गायब हो गई। कुछ समय बाद श्रीधर को माता का सपना आया, जिसमें वह लड़की वैष्णवी के रूप में उन्हें माता वैष्णो देवी के दर्शन और गुफा के बारे में बताती हैं। तब से, श्रीधर ने गुफा की खोज शुरू की और अंततः माता की गुफा मिल गई। इसके बाद, यह स्थान श्रद्धालुओं के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल बन गया, और यहां पर भक्तों का आना-जाना बढ़ गया।
श्रद्धालुओं का आना-जाना और मंदिर की प्रसिद्धि
वैष्णो देवी का मंदिर भारतीय धार्मिक स्थलों में एक अत्यंत प्रमुख स्थान रखता है। हर साल लाखों श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए आते हैं। कटरा से मंदिर तक पहुंचने के लिए 13 किलोमीटर की पैदल यात्रा करनी होती है। इस यात्रा के दौरान भक्तों को प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेने के साथ-साथ भव्य धार्मिक अनुभव भी प्राप्त होता है। मंदिर में श्रद्धालुओं के लिए कई प्रकार की सेवाएं और सुविधाएं भी प्रदान की जाती हैं। श्रद्धालु यहां अपनी मनोकामनाएं पूरी करने के लिए आते हैं और उनकी आस्था के चलते यह मंदिर और भी ज्यादा प्रसिद्ध होता जा रहा है।
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