Rath Yatra 2025: भगवान जगन्नाथ की लीला और उनके भक्तों की कथाएं अनगिनत हैं। इन कथाओं में कई विशेष और प्रेरणादायक घटनाएं जुड़ी हुई हैं, जो भगवान की कृपा और उनके भक्तों के प्रति समर्पण को दर्शाती हैं। भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा से जुड़ी एक प्रसिद्ध लोककथा में सालबेग का नाम उभरकर आता है। पुरी के गलियों में सालबेग की मजार का नाम बहुत आदर से लिया जाता है और इस मजार के सामने रथ हमेशा रुकता है। यह कहानी भगवान जगन्नाथ के रथयात्रा के दौरान एक घटना से जुड़ी हुई है, जिसमें रथ ने अचानक रुकने के बाद सालबेग के नाम की पुकार पर आगे बढ़ना शुरू किया।
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रथयात्रा की अप्रत्याशित घटना- Rath Yatra 2025
किसी वर्ष की बात है जब भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा पुरी मंदिर से प्रारंभ हुई थी। रथ के पीछे भक्तों का विशाल हुजूम था और पूरा वातावरण जय जगन्नाथ के जयघोष से गूंज रहा था। लेकिन जैसे ही रथ कुछ ही दूरी पर पहुंचा, वह अचानक रुक गया। यह देखकर सभी श्रद्धालु आश्चर्यचकित हो गए। रथ का बिना किसी स्पष्ट कारण के रुकना एक चमत्कारी घटना के रूप में देखा जाने लगा। भक्तों ने पहले तो समझा कि शायद रस्सों को खींचने में किसी ने कमजोरी महसूस की हो, लेकिन रथ अपनी जगह से हिला नहीं। इस स्थिति ने कई तरह के कयास और चर्चा को जन्म दिया।
इसी बीच एक बूढ़ा व्यक्ति लाठी टेकते हुए रथ के पास आया और उसने कहा कि वह रथ को आगे बढ़ा सकता है। उसे देखकर श्रद्धालुओं ने सोचा कि यह बूढ़ा व्यक्ति कमजोर होगा, लेकिन उसकी आवाज में एक अद्भुत शक्ति थी। वह बिना कुछ कहे उंगली से मजार की ओर इशारा करने लगा। उसी क्षण श्रद्धालुओं ने ‘जय जगन्नाथ’ और ‘जय भक्त सालबेग’ का जयघोष किया और उसी समय रथ के पहिये स्वतः घूमने लगे। यह घटना अब एक परंपरा बन चुकी है, जहाँ रथयात्रा के दौरान सालबेग की मजार पर रुकना अनिवार्य हो गया है।
सालबेग का इतिहास और भक्ति
यह घटना मुगलों के शासनकाल के समय की है, जब भारत में मुस्लिम और हिंदू धर्म के बीच समन्वय की कई मिसालें देखने को मिली थीं। सालबेग, जिनका जन्म एक मुस्लिम परिवार में हुआ था, ने अपनी माँ से भगवान जगन्नाथ की भक्ति के बारे में सुना और एक दिन पुरी पहुंच गए। वह मंदिर में प्रवेश करने की कोशिश करते हैं, लेकिन उन्हें यह कहते हुए रोक लिया गया कि वह गैर-हिंदू हैं। निराश होकर सालबेग ने फैसला किया कि वह बाहर रहकर भगवान का भजन करेंगे।
सालबेग की सच्ची भक्ति ने भगवान जगन्नाथ को प्रभावित किया, और भगवान ने उसे सपने में दर्शन दिए। यह घटना सालबेग के जीवन में एक मोड़ थी, और उसे भगवान से आशीर्वाद प्राप्त हुआ। उसकी भक्ति ने भगवान जगन्नाथ को इस हद तक प्रभावित किया कि भगवान ने कहा कि रथ यात्रा अब बिना सालबेग की मजार के सामने रुके आगे नहीं बढ़ेगी।
सालबेग की मजार का महत्व
आज भी जब भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा पुरी से शुरू होती है, तो रथ हमेशा सालबेग की मजार के सामने रुकता है। यह एक परंपरा बन चुकी है, जो न केवल ओडिशा में, बल्कि भारत और विदेशों में भी प्रसिद्ध है। सालबेग की भक्ति ने हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्मों के बीच एकता और भाईचारे का संदेश दिया है।
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