गुरु नानक देव जी से एक मुलाकात ने बदल दिया था गुरु अंगद देव जी का जीवन

Guru Angad Dev Ji
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Guru Angad Dev facts : 21 अप्रैल 2023 को सिखों के दुसरे गुरू अंगद देव की जयंती मनाई जा रही है. जहाँ सिख धर्म के पहले गुरु नानक देव जी थे और उनके जन्म के बाद से ही सिख धर्म की स्थापना हुई और तो वहीं गुरु नानक देव जी के बाद अंगद देव जी सिखों के दूसरे गुरु बने. वहीं इस पोस्ट के जरिये हम आपको अंगद देव जी के बारे में बताने जा रहे हैं साथ ही इस बात की जानकारी भी देने जा रहे हैं कि गुरु नानक देव जी से एक मुलाकात के बाद कैसे  अंगद देव जी का जीवन बदल दिया था.

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जानिए कौन थे गुरु अंगद देव जी 

गुरु अंगद देव जी का जन्म फिरोजपुर, पंजाब में 31 मार्च, 1504 को हुआ था. अंगद देव जी को ‘लहणा जी’ के नाम से भी जाना जाता है. अंगद देव जी पंजाबी लिपि ‘गुरुमुखी’ के जन्मदाता हैं और लगभग सात साल तक अंगद देव जी गुरु नानक देव के साथ रहे और गुरु नानक देव जी ने अपने दोनों पुत्रों को छोड़कर अंगद देव जी को अपना उत्तराधिकारी बनाया गया.

गुरु नानक जी भक्ति से हुए प्रभावित 

कहा जाता है कि गुरु नानक जी अंगद देव की भक्ति और आध्यात्मिक योग्यता से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उन्हें  अपना अंग मना और अंगद नाम दिया था.  गुरु अंगद देव सृजनात्मक व्यक्तित्व और आध्यात्मिक क्रियाशीलता थी जिससे पहले वे एक सच्चे सिख बने और फिर एक महान गुरु बने. उन्हें खडूर निवासी भाई जोधा सिंह से गुरु दर्शन की प्रेरणा मिली. एक बार उन्होंने गुरु नानक जी का एक गीत एक सिख भाई को गाते हुए सुन लिया.  इसके बाद उन्होंने गुरु नानक देव जी से मिलने का मन बनाया और कहते हैं कि गुरु नानक जी से पहली मुलाकात में ही गुरु अंगद जी ने सिख धर्म में परिवर्तित होकर कतारपुर में रहने लगे. वहीं इन्होंने ही गुरुमुखी की रचना की और गुरु नानक देव की जीवनी लिखी थी.

7 परीक्षा देकर बने सिखों के दूसरे गुरु

वहीं, गुरु बनने के लिए नानक देव जी (Guru Angad Dev facts) ने उनकी 7 परीक्षाएं ली थी.  सिख धर्म और गुरु के प्रति उनकी आस्था देखकर गुरु नानक जी ने उन्हें दूसरे नानक की उपाधि दी और गुरु अंगद का नाम दिया.  तब से वे सिखों के दूसरे गुरु कहलाएं.  नानक देव जी के निधन के बाद गुरु अंगद देन ने नानक के उपदेशों को आगे बढ़ाने का काम किया और गुरु अंगद साहब के नेतृत्व में ही लंगर की व्यवस्था का प्रचार हुआ.

वहीं सिखों के तीसरे गुरु, गुरु अमर दास जी ने एक बार अपनी पुत्रवधू से गुरु नानक देव जी द्वारा रचित एक ‘शबद’ सुना.  उसे सुनकर वे इतने प्रभावित हुए कि पुत्रवधू से गुरु अंगद देव जी का पता पूछकर तुरंत उनके गुरु चरणों में आ बिराजे.  उन्होंने 61 वर्ष की आयु में अपने से 25 वर्ष छोटे और रिश्ते में समधी लगने वाले गुरु अंगद देव जी को गुरु बना लिया और लगातार 11 वर्षों तक एकनिष्ठ भाव से गुरु सेवा की.

Guru Amar Das ji को गुरु गद्दी’ सौंप किया शरीर का त्याग 

सिखों के दूसरे गुरु अंगद देव जी ने उनकी सेवा और समर्पण से प्रसन्न होकर एवं उन्हें सभी प्रकार से योग्य जानकर ‘गुरु गद्दी’ सौंप दी.  इस प्रकार वे गुरु अमर दास जी उनके उत्तराधिकारी और सिखों के तीसरे गुरु बन गए और 29 मार्च 1552 को गुरु अंगद देव जी ने अपना शरीर त्याग दिया.

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