सरहिंद, फतेहगढ़ साहिब में हैं ये पांच मुख्य गुरुद्वारे, जिनका ऐतिहासिक घटना से है संबंध

सरहिंद फतेहगढ़ साहिब
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गुरुद्वारा सिखों की आस्था का प्रतीक है और गुरुद्वारा ऐसी जगह जहाँ हर धर्म  के लोग आ सकते हैं और अरदास कर सकते हैं. भारत में जितने भी गुरुदवारे हैं उनका अपना ही एक इतिहास और महत्व रहा है और ये इतिहास और महत्व सिख धर्म के संतों और गुरुओं से जुड़ा हुआ है. वहीं आज इस पोस्ट के जरिए हम आपको सरहिंद से लेकर फतेहगढ़ साहिब तक, पंजाब के सभी गुरुद्वारों के बारे में बताने जा रहे हैं.

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शहीदों की भूमि है सरहिंद, फतेहगढ़ साहिब

सरहिंद, फतेहगढ़ साहिब को “शहीदों की भूमि” कहा जाता है ये जगह है जहाँ पर सिखों के दसवें गुरु सिख गुरु गोबिंद सिंह जी के दो युवा पुत्रों को मार दिया गया. 17 वीं शताब्दी में मुगल सम्राट औरंगजेब की तानाशाही के तहत वजीर खान ने  गुरु गोबिंद सिंह (10 वें सिख गुरु) के दो युवा पुत्रों (बाबा फतेह सिंह और बाबा जोरावर सिंह) को दीवारों में जिंदा चिन्नवा दिया गया वहीं सिख अनुयायी बाबा बंदा सिंह बहादुर ने सरहिंद पर आक्रमण किया और वर्ष 1710 में वज़ीर खान की हत्या कर दी.

सरहिंद, फतेहगढ़ साहिब में हैं मुख्य पांच गुरुद्वारे

सरहिंद, फतेहगढ़ साहिब में मुख्य पांच गुरुद्वारे हैं जिनक नाम गुरुद्वारा श्री फतेहगढ़ साहिब, गुरुद्वारा ठंडा बुर्ज, गुरुद्वारा शहीदगंज साहिब, गुरुद्वारा बीबनगढ़ साहिब, गुरुद्वारा ज्योति सरूप साहिब,ये गुरुद्वारे मुख्य गुरुद्वारा श्री फतेहगढ़ साहिब से आस-पास ही हैं.

गुरुद्वारा ठंडा बुर्ज

वहीं गुरुद्वारा ठंडा बुर्ज श्री फतेहगढ़ साहिब के मुख्य गुरुद्वारे के परिसर में है य वो स्थान हैं जहाँ पर 1704 के दिसंबर में माता गुज्जर कौर और साहबजादे को कैदी के रूप में रखा गया था. यहाँ पर गुज्जर कौर और साहबजादे उन्हें भूख और अत्यधिक ठंड सहने के लिए मजबूर किया गया था.

गुरुद्वारा शहीदगंज साहिब

गुरुद्वारा शहीदगंज साहिब ये वो गुरुद्वारा है जहाँ पर 14 मई, 1710 को, बाबा बंदा सिंह बहादुर जी ने चपड़चिड़ी की लड़ाई लड़ी और सरहिंद पर विजय प्राप्त की. वहीं यह वो जगह है जहाँ इस युद्ध के 6000 सिख योद्धाओं के शवों का अंतिम संस्कार किया गया था.

गुरुद्वारा बीबनगढ़ साहिब

गुरुद्वारा बीबनगढ़ साहिब ये वको जगह हैं जहाँ पर मुगलों ने गुरु जी के पुत्रों और उनकी मां के पवित्र शरीर को गहरे जंगल में फेंक दिया जहां खतरनाक जानवर रहते थे. यहां एक शेर ने इन 3 शवों को अन्य जानवरों से 48 घंटे तक सुरक्षित रखा था. वहीं तब दीवान टोडर मल और अन्य सिखों ने यहां पहुंचकर शवों को लिया. यहां से वे इन पवित्र निकायों को गुरुद्वारा ज्योति सरूप ले गए जहां उनका अंतिम संस्कार किया गया.

गुरुद्वारा ज्योति सरूप साहिब

गुरुद्वारा ज्योति सरूप साहिब यह गुरुद्वारा मुख्य गुरुद्वारा श्री फतेहगढ़ साहिब से 1 दूर है और ये वो जगह है जिसे  ज्योति सरूप साहिब गुरु गोबिंद सिंह जी के माता गुजरी जी और छोटे साहिबजादों की याद में बनाया गया था.यहाँ पर माता गुजरी जी, साहिबजादा बाबा जोरावर सिंह जी और साहिबजादा बाबा फतेह सिंह जी को अंतिम संस्कार किया गया था और इस जगह को सोने के सिक्कों देकर खरीदा गया था.

सरहिंद से लेकर फतेहगढ़ साहिब तक ये सभी गुरूद्वारे ऐतिहासिक घटना से संबंध रखते हैं और इस वजह से इन सभी गुरुद्वारों का सिख धर्म के बलिदान के लिए याद किया जाता है.

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