Vaishno Devi Aur Bhairav: भारत के धार्मिक इतिहास में एक अनोखी और रहस्यमय कथा है, जो वैष्णो देवी और भैरव बाबा से जुड़ी हुई है। यह कथा न केवल भगवान की कृपा की शक्ति को दर्शाती है, बल्कि मोक्ष के मार्ग पर चलने की एक महाकाव्य गाथा भी है। इस कथा में हम आपको बताएंगे कि कैसे भैरवनाथ ने अपनी गलती का अहसास किया और मां वैष्णो देवी से क्षमा मांगी, साथ ही उन्हें मोक्ष का वरदान प्राप्त हुआ।
कथा की शुरुआत – श्रीधर और वैष्णो देवी के दर्शन (Vaishno Devi Aur Bhairav)
कथा के अनुसार, कटरा से कुछ दूरी पर स्थित हंसाली गांव में एक भक्त श्रीधर रहते थे, जो मां वैष्णो देवी के परम भक्त थे। वह नि:संतान थे और नवरात्रि के दौरान कुंवारी कन्याओं को बुलाकर पूजा करते थे। एक दिन, मां वैष्णो देवी कन्या रूप में उनके बीच उपस्थित हुईं और पूजा के बाद सबको अपने घर भंडारे का निमंत्रण देने का आदेश दिया। श्रीधर ने मां की आज्ञा से गांव में भंडारा किया, जिसमें गोरखनाथ और उनके शिष्य भैरवनाथ को भी आमंत्रित किया गया। इस भंडारे में मां ने कन्या रूप धारण किया और लोगों को पकवान परोसने लगीं।
भैरवनाथ की जिद – मांस-मदिरा की मांग
भैरवनाथ, जो एक प्रसिद्ध तांत्रिक और अघोरी साधु थे, भंडारे में मां से खीर-पूड़ी के बजाय मांस और मदिरा की मांग करते हैं। जब मां ने उन्हें समझाया कि यह ब्राह्मणों का भोज है और यहाँ मांस-मदिरा नहीं परोसी जाएगी, तो भैरवनाथ ने उनकी बातों को नजरअंदाज किया और उनका हाथ पकड़ लिया। इस पर मां ने अपना हाथ छुड़ाया और त्रिकूट पर्वत की ओर चल पड़ीं। भैरवनाथ ने उनका पीछा करना शुरू कर दिया।
पवनपुत्र हनुमान का साथ
जब भैरवनाथ ने मां का पीछा किया, तो मां की रक्षा के लिए पवनपुत्र हनुमान भी उनके साथ हो गए। हनुमानजी को प्यास लगी, तो मां ने धनुष से पहाड़ पर बाण चलाकर एक जलधारा उत्पन्न की। उस जलधारा में उन्होंने अपने केश धोए, और वह जलधारा आज बाण गंगा के नाम से प्रसिद्ध है। मां फिर एक गुफा में प्रवेश कर गईं और वहां नौ महीने तक तपस्या की। हनुमानजी बाहर पहरा देने लगे। भैरवनाथ भी उनके पीछे वहां तक पहुंच गए और गुफा में प्रवेश करने की कोशिश की।
महाकाली रूप में मां का रूपांतरण
जब भैरवनाथ ने गुफा में प्रवेश किया, तो हनुमानजी ने उनसे युद्ध शुरू किया, लेकिन यह लड़ाई लंबी चली। हनुमानजी थककर निढाल हो गए। तब मां ने महाकाली का रूप धारण किया और भैरवनाथ का संहार कर दिया। भैरवनाथ का सिर कटकर भवन से लगभग 3 किलोमीटर दूर त्रिकूट पर्वत की भैरव घाटी में गिरा, जहां आज भैरव नाथ का मंदिर स्थित है। इस स्थान को अब ‘माता के भवन’ के नाम से जाना जाता है, जहां देवी के पिंडी रूप में मां महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती के दर्शन होते हैं।
भैरवनाथ की पश्चाताप और मां से क्षमा की याचना
माता का वध करने के बाद भैरवनाथ को अपनी गलती का अहसास हुआ और उसने माता से क्षमा मांगी। मां ने न केवल उसे क्षमा किया, बल्कि उसे अपने से भी ऊंचा स्थान दिया। मां ने यह माना कि भैरवनाथ मोक्ष प्राप्ति के लिए यह सब कर रहा था और उसे वरदान दिया कि उसकी पूजा भी होगी और वह जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाएगा। मां ने यह भी कहा कि उसके दर्शन तब तक पूरे नहीं होंगे, जब तक कोई मेरे बाद भैरवनाथ के दर्शन नहीं करेगा। इसके परिणामस्वरूप, लोग अब वैष्णो देवी के साथ-साथ भैरवनाथ के दर्शन भी करते हैं और उसकी पसंदीदा मांस-मदिरा चढ़ाते हैं।
भैरवनाथ की पूजा और उनके प्रतीक
किंवदंती के अनुसार, भैरवनाथ के चार हाथ होते हैं – इनमें से एक हाथ में तलवार, दूसरे हाथ में मदिरा और मांस रहता है, जबकि चौथा हाथ अभय मुद्रा में रहता है। यह रूप यह दिखाता है कि वह अब भी पूजा के योग्य हैं, और उनके साथ जुड़े हुए संस्कार अब भी जीवित हैं। कहते हैं कि यदि किसी को मां वैष्णो देवी को प्रसन्न करना हो, तो भैरवनाथ को प्रसन्न करना आवश्यक है।
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