Vaishno Devi Pindi: मां वैष्णो देवी का मंदिर, जम्मू-कश्मीर के हसीन वादियों में स्थित एक पवित्र स्थल है, जहां लाखों श्रद्धालु अपनी आस्था और श्रद्धा से आते हैं। यह मंदिर उधमपुर जिले के कटरा से लगभग 12 किलोमीटर दूर त्रिकूटा पर्वत पर स्थित है। मां के दर्शन के लिए भक्त कठिन पहाड़ी रास्तों को पार करते हैं, और एक अद्भुत आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त करते हैं। हालांकि, क्या आप जानते हैं कि वैष्णो देवी के मंदिर में तीन पिंडियाँ क्यों स्थित हैं और इनका रहस्य क्या है? आइए जानते हैं इस रहस्यमयी कथा के बारे में।
मां वैष्णो देवी से जुड़ी पौराणिक कथा- Vaishno Devi Pindi
माता वैष्णो देवी के अवतरण और मंदिर की स्थापना से जुड़ी एक दिलचस्प पौराणिक कथा है। एक बार श्रीधर नामक भक्त ने नवरात्रि के दौरान कन्याओं का पूजन आयोजित किया। इस पूजा के दौरान मां वैष्णो देवी ने कन्या रूप में स्वयं को प्रकट किया और पूजा के बाद सभी कन्याएं वहां से चली गईं, लेकिन मां वहीं रुकी रहीं। उन्होंने श्रीधर से कहा, “पूरे गांव को भंडारे का निमंत्रण दे आओ।” श्रीधर को यह कठिन कार्य लगा, क्योंकि वह गरीब थे और इतने सारे लोगों के लिए भोजन का प्रबंध कैसे करेंगे, यह उनके लिए एक चुनौती थी। लेकिन मां के आदेश पर उन्होंने गांव के सभी लोगों के साथ गुरु गोरखनाथ और बाबा भैरवनाथ को भी आमंत्रित कर लिया।
भैरवनाथ का अपमान और मां का त्रिकूटा पर्वत की ओर उड़ना
जब भंडारा शुरू हुआ, तो कन्या रूपी मां एक दिव्य पात्र से सभी को भोजन परोस रही थीं। जब भैरवनाथ की बारी आई, तो उसने वैष्णव भोजन के बजाय मांसाहार और मदिरा की मांग की। मां ने उसे समझाया कि यह ब्राह्मण के घर का भोजन है, लेकिन भैरवनाथ अपनी जिद पर अड़ा रहा। जब उसने मां का अपमान किया और उन्हें पकड़ने की कोशिश की, तो माता ने वायु रूप धारण किया और त्रिकूटा पर्वत की ओर उड़ चलीं। भैरवनाथ उनका पीछा करने लगा।
अर्धक्वारी गुफा और हनुमानजी का पराक्रम
मां ने त्रिकूटा पर्वत पहुंचकर अर्धक्वारी गुफा में नौ महीने तक ध्यान किया। इस दौरान उन्होंने हनुमानजी को बुलाया और भैरवनाथ से युद्ध करने को कहा। हनुमानजी ने भैरवनाथ को रोकने के लिए युद्ध किया, और इस दौरान मां ने अपने धनुष से बाण चलाकर एक जलधारा प्रकट की, जिसे आज “बाणगंगा” के नाम से जाना जाता है।
भैरवनाथ का अंत और मोक्ष
जब भैरवनाथ हनुमानजी से युद्ध में हार गया, तो मां ने महाकाली का रूप धारण कर उसका वध कर दिया। भैरवनाथ का सिर त्रिकूट पर्वत की भैरव घाटी में गिरा, जहां आज भैरवनाथ का मंदिर स्थित है। मरने के समय भैरवनाथ ने मां से क्षमा याचना की, और मां ने उसे न केवल मोक्ष दिया, बल्कि यह भी कहा, “जो भी मेरे दर्शन करने आएगा, उसे भैरवनाथ के मंदिर के दर्शन भी करने होंगे, तभी उसकी यात्रा पूर्ण होगी।” यही कारण है कि आज भी भक्तों को वैष्णो देवी के दर्शन के बाद भैरवनाथ के मंदिर जाना पड़ता है।
मां वैष्णो देवी की तीन पिंडियों का रहस्य
मां वैष्णो देवी ने भैरवनाथ के वध के बाद तीन पिंडियों सहित एक चट्टान का रूप धारण किया और ध्यानमग्न हो गईं। तभी श्रीधर को एक स्वप्न आया, जिसमें त्रिकूटा पर्वत और तीन पिंडियों का दर्शन हुआ। श्रीधर ने इन पिंडियों को खोज निकाला और मां के आदेशानुसार उनकी पूजा शुरू की। इन तीन पिंडियों को आदिशक्ति के तीन रूपों का प्रतीक माना जाता है, जो हैं:
- महासरस्वती – विद्या और ज्ञान की देवी
- महालक्ष्मी – धन और समृद्धि की देवी
- महाकाली – शक्ति और पराक्रम की देवी
इन पिंडियों की पूजा करते समय भक्तों को इन तीनों शक्तियों के प्रति श्रद्धा और भक्ति का अहसास होता है।