Who is Avalokiteshvara: तिब्बती बौद्ध धर्म के सर्वोच्च धर्म गुरु दलाई लामा ने हाल ही में अपना 90वां जन्मदिन मनाया। इस अवसर पर उनका जन्मदिन भले ही खुशी का कारण बना, लेकिन वह विवादों के घेरे में भी रहा। दलाई लामा के जन्मदिन का मुख्य विवाद उनके पद के उत्तराधिकार को लेकर था। इस विवाद ने एक बार फिर चीन और तिब्बत के बीच के राजनीतिक तनाव को बढ़ा दिया, जब चीन ने अगला दलाई लामा चुनने के मामले में अपनी मर्जी जताई। चीन ने स्पष्ट तौर पर कहा कि अगले दलाई लामा को चीन की मान्यता प्राप्त होनी चाहिए, लेकिन दलाई लामा ने इस पर कड़ी आपत्ति जताते हुए इसे खारिज कर दिया।
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दलाई लामा का संदेश: 30-40 साल और सेवा का वचन- Who is Avalokiteshvara
90 साल के हो चुके दलाई लामा ने इस विवाद के बीच एक अद्भुत संदेश दिया, जिसने दुनिया का ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने कहा, “मेरे ऊपर अवलोकितेश्वर का आशीर्वाद है और मैं अगले 30-40 साल और जीवित रहूंगा। उनका आदेश है कि मैं अभी मानवता की सेवा करता रहूं।” इस बयान में दलाई लामा ने न केवल अपने जीवन के विस्तार की बात की, बल्कि यह भी कहा कि उनके ऊपर अवलोकितेश्वर की कृपा है, जो उन्हें लंबे समय तक सेवा करने का आशीर्वाद देते हैं। यह बयान न केवल तिब्बत के बौद्ध धर्म में उनकी अहमियत को दर्शाता है, बल्कि मानवता के प्रति उनकी अडिग प्रतिबद्धता को भी साफ करता है।
अवलोकितेश्वर कौन हैं?
अवलोकितेश्वर बौद्ध धर्म के सबसे प्रमुख देवताओं में से एक हैं। उन्हें “करुणा के मूर्त रूप” के तौर पर पूजा जाता है। बौद्ध परंपरा में अवलोकितेश्वर का महत्व विशेष रूप से उनके करुणामयी स्वभाव और बोधिसत्व के रूप में है। बोधिसत्व वह होते हैं जिन्होंने अपने व्यक्तिगत निर्वाण को स्थगित कर दिया होता है, ताकि वे अन्य प्राणियों को जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति दिलाने के लिए काम कर सकें। अवलोकितेश्वर का नाम संस्कृत शब्द “अवलोकित” से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है “ऊपर से देखना”, यानी वह ईश्वर जो सबकुछ देखता है और सभी को करुणा देता है।
अवलोकितेश्वर की चित्रकलाएं और उनका प्रतीकवाद
अवलोकितेश्वर की चित्रकलाओं में उन्हें अक्सर शांति और ध्यान की मुद्रा में दिखाया जाता है। उनके चेहरे पर करुणा और शांति की झलक होती है। उनके हाथों में कमल और अन्य प्रतीक चिह्न होते हैं, जो उनके शांति और करुणा के रूप को दर्शाते हैं। खासकर तिब्बत, नेपाल और भारत में अवलोकितेश्वर की कई मूर्तियां और चित्र देखे जाते हैं, जिनमें उनका एक हाथ कमल के फूल पर और दूसरा हाथ वरद मुद्रा में होता है, जो शांति और आशीर्वाद का प्रतीक होता है।
अवलोकितेश्वर और हिंदू देवता शिव से समानता
अवलोकितेश्वर की कई विशेषताएँ हिंदू धर्म के देवता शिव से मिलती-जुलती हैं। अवलोकितेश्वर को एक रूप में “पद्मपाणि” कहा जाता है, जिसका अर्थ होता है “कमल हाथ में धारण करने वाला”, जो भगवान विष्णु के प्रतीक के समान है। इसके अलावा, अवलोकितेश्वर के हाथों में कमल के फूल का प्रतीक भी हिंदू देवताओं के प्रतीकों से मेल खाता है। कुछ विद्वान मानते हैं कि बौद्ध धर्म और हिंदू धर्म के बीच एक समानता रही है, जहां अवलोकितेश्वर और शिव के रूपों में कई समानताएँ मिलती हैं।
महायान बौद्ध धर्म में अवलोकितेश्वर का महत्व
महायान बौद्ध धर्म में अवलोकितेश्वर को ईश्वर के रूप में पूजा जाता है और उन्हें आदर्श बोधिसत्व माना जाता है। अवलोकितेश्वर का मंत्र “ॐ मणि पद्मे हूम” है, जो बोधिसत्व के कमल से संबंधित है और इसे ध्यान में जपते समय प्रयोग किया जाता है। यह मंत्र उनके करुणा और दया के प्रतीक के रूप में अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। अवलोकितेश्वर की पूजा का उद्देशय सभी प्राणियों को मुक्ति दिलाना है, और यह धारणा बौद्ध धर्म के अनुयायियों को एकता और सहानुभूति की भावना से जोड़ती है।
दलाई लामा और अवलोकितेश्वर के बीच संबंध
तिब्बती बौद्ध धर्म में दलाई लामा को अवलोकितेश्वर का अवतार माना जाता है। जब भी पिछले दलाई लामा का देहांत होता है, तो अवलोकितेश्वर अपना एक नया अवतार लेते हैं। यही कारण है कि तिब्बती बौद्ध धर्म में दलाई लामा के उत्तराधिकारी का चुनाव अत्यधिक महत्वपूर्ण होता है, और इसे लेकर विभिन्न प्रकार के विवाद उत्पन्न होते हैं। हाल ही में दलाई लामा ने अपने 90वें जन्मदिन के मौके पर यह स्पष्ट किया कि उनका जीवन अवलोकितेश्वर के आशीर्वाद से लंबा होगा और वह अभी भी मानवता की सेवा करते रहेंगे।
चीन और तिब्बत का राजनीतिक विवाद
चीन और तिब्बत के बीच यह विवाद अब और भी बढ़ गया है, क्योंकि चीन ने दलाई लामा के उत्तराधिकारी को लेकर अपनी मर्जी जताई है। चीन ने कहा कि अगले दलाई लामा को चीन की मान्यता प्राप्त होनी चाहिए, जबकि दलाई लामा ने इस पर साफ इनकार कर दिया। यह विवाद अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बन गया है, क्योंकि यह तिब्बत और चीन के बीच की राजनीतिक टकराहट को और बढ़ा सकता है।
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