क्यों मनाते हैं मकर संक्रांति का त्यौहार और क्या है इसकी पूजा विधि ?

क्यों मनाते हैं मकर संक्रांति का त्यौहार और क्या है इसकी पूजा विधि ?

इस वजह से मनाया जाता है मकर संक्रांति का त्यौहार ?

ये तो हम सभी जानते हैं कि भारत को त्यौहारों (festivals of india) का देश कहा जाता है और कहा भी क्यों न जाए जिस देश में साल भर में 2000 से ज्यादा तरह के त्यौहार मनाये जाते हों उसे त्योहारों का देश नहीं तो और क्या कहेंगे ? भारत में हर एक त्यौहार के पीछे कुछ न कुछ परम्पराएं जुडी होती हैं जिनका अपना एक अलग ही महत्व होता है लेकिन इनमे सिर्फ मनोरंजन की बातें ही नहीं होती बल्कि ज्ञान, प्रकृति के महत्व, और वेदों से जुड़े तमाम बातें और कहानियां होती हैं। ऐसे ही हर साल 14 से 15 जनवरी को मनाया जाने वाला त्यौहार मकर संक्रांति (Makar Sankranti) भी हैं, जिसे हिंदी कैलेंडर (Hindu calender) के अनुसार पौष के महीने में जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है तब मनाते हैं। साल भर में संक्रांति हर राशि में 12 बार आती है लेकिन कर्क और मकर में इसके प्रवेश का विशेष महत्व है सूर्य जब मकर राशि में प्रवेश करता है तब दिन बड़ा और रात छोटी होती है और ठीक इसका उल्टा होता है कर्क राशि के प्रवेश में दिन छोटा और रात बड़ी।

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क्या है इससे जुड़ी पौराणिक कथाएं और कहानियां ?

आपको महाभारत (mahabharat) के ‘भीष्म पितामह” (Bhishma Pitamah) तो याद ही होंगे, जिन्हें एक अच्छा पुत्र होने के नाते इच्छा मृत्यु का वरदान मिला था, कहा जाता है कि जब महाभारत के युद्ध में अर्जुन (Arjun) ने अपने बाणों से भीष्म पितामह के सीने को छल्ली कर उन्हें शय्या पर लिटा दिया था उस वक्त भीष्म पितामाह उत्तरायण के दिन ही अपनी आँखें बंद करने की प्रतिज्ञा ली थी वो दिन यही था जब भीष्म पितामाह को मोक्ष प्राप्ति हुई थी, हिन्दू कथाओं के अनुसार एक बार सूर्य देव अपने पुत्र शनि देव से मिलने गए थे और वो वक़्त था शनि देव (Shani dev) मकर राशि का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, इतने संघर्ष के समय में भी अपने पुत्र से मिलने की वजह से मकर संक्रांति को इतना महत्व दिया गया कि इस दिन जो भी पिता अपने पुत्र से मिलता है उसके पुत्र की समस्याएं हल हो  जाती हैं।

मकर संक्रांति का महत्व 

भारत ही नहीं पूरे विश्व भर में किसानों को अन्नदाता के रूप में देखा जाता है, मकर संक्रांति के दिन किसान भी अपनी फसल काटते हैं इसलिए यह त्यौहार किसानों के लिए भी  काफी मायने रखता है, ये त्यौहार हर साल 14 से 15 जनवरी के बीच मनाने की भी एक खास वजह है क्योंकि साल का यही वो दिन होता है जब सूर्य उत्तरायण की ओर अग्रसर होता है। हिंदू धर्म के अनुसार सूर्य अंधेरे में उजाले और ज्ञान का प्रतीक माना जाता है और ये दिन नया काम शुरू करने के लिए भी शुभ माना जाता है।

कैसे करते हैं मकर संक्रांति की पूजा

सुबह सूर्योदय से पहले उठकर, पानी में तिल मिलाकर नहाएं। इसके बाद लाल कपड़े पहनकर और दाहिने हाथ में जल लेकर, “पूरे दिन बिना नमक खाए” व्रत करने का संकल्प लें। इसके बाद व्रत के साथ मन में श्रद्धा और आर्थिक स्थिति के अनुसार दान करने का भी संकल्प लें। फिर सूर्य देव को तांबे के लोटे से शुद्ध जल चढ़ाएं। इसके बाद सूर्य मंत्र ‘ॐ हरं ह्रीं ह्रौं सह सूर्याय नमः’ का कम से कम 21 या 108 बार उच्चारण किया जाता है।

त्यौहार एक पर नाम और मान्यताएं अनेक…

भारत में त्यौहार भी अनेक  हैं और एक ही त्यौहार के नाम भी अनेक हैं साथ ही साथ मान्यताएं और मनाने के तरीके भी अलग हैं।  उत्तर प्रदेश और पश्चिमी बिहार में इसे खिचड़ी का पर्व कहते है. इस दिन पवित्र नदियों में डुबकी लगाना बहुत शुभ माना जाता है. इस अवसर में प्रयाग यानि इलाहाबाद में एक बड़ा महीनेभर का माघ मेला शुरू होता है. पश्चिम बंगाल में हर साल एक बहुत बड़े मेले का आयोजन गंगा सागर में किया जाता है. जहाँ माना जाता है कि राजा भागीरथ के साठ हजार पूर्वजों की रख को त्याग दिया गया था और गंगा नदी में नीचे के क्षेत्र डुबकी लगाई गई थी. तमिलनाडु में इसे पोंगल त्यौहार के नाम से मनाते है, जो कि किसानों के फसल काटने वाले दिन की शुरुआत के लिए मनाया जाता है. आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में मकर संक्र मामा नाम से मानते है. जिसे यहां 3 दिन का त्यौहार पोंगल के रूप में मनाते हैं.

गुजरात और राजस्थान में इसे उत्तरायण के रूप में मनाया जाता है. इस दिन गुजरात में पतंग उड़ाने की प्रतियोगिता रखी जाती है। बुंदेलखंड  में विशेष कर मध्यप्रदेश में मकर संक्रांति के त्यौहार को सकरात नाम से जाना जाता है. यह त्यौहार मध्यप्रदेश के साथ ही बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड और सिक्किम में भी मिठाइयों के साथ बहुत धूमधाम से मनाया जाता है, केरल में इस दिन लोग बड़े त्यौहार के रूप में 40 दिनों का अनुष्ठान करते है, मगही नाम से हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में यह मनाया जाता है,पंजाब में लोहड़ी नाम से इसे मनाया जाता है, जो सभी पंजाबी के लिए बहुत महत्व रखता है, असम में माघ बिहू के रूप में मनाया जाता है ,कश्मीर में शिशुर सेंक्रांत नाम से जानते है।

2023 में मकर संक्रांति का क्या है शुभ मुहूर्त ?

मकर संक्रांति 2023 का शुभ मुहूर्त 15 जनवरी 2023 सुबह 8:57 बजे तक रहेगा . जबकि पुण्य काल सुबह 7:15 बजे से 5:46 बजे तक रहेगा. दोपहर अवधि – 10 घंटे 31 मिनट) और मकर संक्रांति महा पुण्य काल सुबह 7:15 बजे शुरू होगा और रात 9:00 बजे समाप्त होगा जिसकी कुल अवधि 1 घंटा 45 मिनट रहेगी। इस दिन किये गए आपके सारे काम सफल होते हैं।

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