नई दिल्ली : साइबर क्राइम को नियंत्रित करने के लिए सरकार ने आतंकवाद से संबंधित और भड़काऊ सामग्री वाली तकरीबन 9,800 वेबाइट्स और 46,000 ट्विटर एकाउंट को ब्लॉक करा दिया है। सरकारी एजेंसियों की अगली लिस्ट में ड्रग, हथियार, चरमपंथी विचारों के प्रचार-प्रसार, आतंकवादियों की भर्ती, दूसरे आतंकवादी समूहों से संपर्क रखने आदि गतिविधियों में संलिप्त साइटों पर शिकंजा कसना है।
वर्चुअल वर्ल्ड में कई मोर्चों पर उभर रही चुनौतियों से निपटने के मकसद से यह अभियान चलाया जा रहा है। इसके तहत डेटा चोरी, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सुरक्षा उल्लंघन, फेक न्यूज के प्रसार, मॉब लिंचिंग जैसे मेसेंजर सेवाओं की भूमिका और कश्मीर घाटी में आतंकवादी संगठनों द्वारा सोशल मीडिया के बढ़ते इस्तेमाल के बाद इस दिशा में काम किया जा रहा है।
इसके लिए सरकार सोशल मीडिया की निगरानी, एजेंसियों द्वारा विकसित टूल को राज्य पुलिस के साथ साझा करने, आईटी काडर के निर्माण, साइबर वॉर रूम आदि के लिए डोमेन एक्सपर्ट्स की नियुक्ति आदि पर विचार कर रहा है। इसके लिए साइबर कम्युनिकेशन, मॉनिटरिंग और एनालिसिस सेंटर बनाने पर भी विचार किया जा रहा है।
कहा जा रहा है कि इसके लिए दिल्ली पुलिस दिल्ली टेक्निकल यूनिवर्सिटी के एक पूर्व प्रोफेसर को चीफ टेक्निकल ऑफिसर के पद पर नियुक्त किया है। इस सिलसिले में यह भी पता चला है कि सुरक्षा एजेंसियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अनुरोध किया है कि साइबर प्लेटफॉर्म की निगरानी और नियमन पर अंतराष्ट्रीय करार, द्विपक्षीय समझौतों और विश्व स्तर पर जानी-मानी इंडस्ट्रीज के साथ एमओयू किया जाए।
सूत्रों के मुताबिक, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल की अगुवाई वाले राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय (एनसीएसएस) के सामने भी यह मुद्दा उठाया गया है। गृह मंत्रालय पहले ही प्रमुख सर्विस प्रोवाइडर्स के सर्वरों के स्थानीयकरण और अलग क्लाउड की तैनाती के मुद्दा पर सक्रिय हो चुका है।
जानकारी दे दें कि भारत में 120 करोड़ टेलीफोन उपभोक्ता हैं, जबकि इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या 42 करोड़ है। जबकि 28 करोड़ लोग मोबाइल के जरिये इंटरनेट का प्रयोग कर रहे हैं। जबकि इस मामले में कानूनी जरूरतों को लेकर भारतीय सुरक्षा एजेंसियां समय से काफी पीछे चल रहीं हैं।