दर्द निवारक दवा सेरिडॉन सहित चार दवाओं की बिक्री पर से सुप्रीम कोर्ट ने पाबंदी हटा ली है। यह दवाएं अब दुबारा दुकानों पर उपलब्ध होंगी। सुप्रीम कोर्ट ने इन दवाओं की बिक्री पर लगी रोक सोमवार को हटा ली है। न्यायमूर्ति रोहिंग्टन एफ नरीमन की अध्यक्षता वाली दो सदस्यीय पीठ ने यह निर्णय दिया है। पाबंदी हटाई गई दवाओं में सेरिडॉन, पिरिटॉन, डार्ट और एक अन्य दवा शामिल है। बता दें कि केंद्र सरकार ने इस महीने ही तीन सौ से ज्यादा दवाओं पर प्रतिबंध लगाया था। लेकिन कुछ दवा निर्माताओं और फार्मा एसोसिएशन की याचिका पर पीठ ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। जबकि अन्य कंपनियों द्वारा याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने राहत देने से फिलहाल इनकार कर दिया है।
बता दें कि स्वास्थ्य मंत्रालय ने 7 सितंबर को 328 दवाइयों पर प्रतिबंध लगाया था। पाबंदी पर दवा कंपनियों ने कहा है कि कंपनी 11 सालों से दवा बना और बेच रही हैं, लेकिन उन्हें ड्रग्स टेक्निकल एडवाइजरी बोर्ड की रिपोर्ट आज तक मुहैया नहीं कराई गई। इसी के आधार पर यह प्रतिबंध लगाए गए। जानकारी हो कि दिल्ली हाईकोर्ट ने भी दो दवाओं पर लगे प्रतिबंध को हटा लिया है।
दरअसल इस पाबंदी के दायरे से बाहर रहने के लिए कई फार्मा कंपनियां कोर्ट के सामने सफाई पेश कर रही हैं। इसके तहत विक्स एक्शन-500, डी-कोल्ड टोटल समेत कई कंपनियां इस प्रयास में हैं कि उनके उत्पाद प्रतिबंधित दवाओं की सूची से बाहर आ सकें। इसके लिए कंपनियां भारत सरकार की स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से जारी अधिसूचना का हवाला दे रही हैं।
बता दें कि देश में धरल्ले से बिक रही दवाओं पर नकेल कसते हुए स्वास्थ्य मंत्रालय ने 328 दवायों पर बैन लगा दिया था। स्वास्थ्य मंत्रालय यह निर्णय देश के सर्वोच्च ड्रग एडवाइजरी बॉडी की एक उप-समिति की सिफारिश को मानते हुए ली। सरकार ने जिन दवाओं पर प्रतिबंध लगाया है उनमें वो दवाएं हैं जो जल्द आराम पाने के लिए मेडिकल दुकानों से बिना पर्चे के खरीद लेते हैं। तकनीकी सलाहकार बोर्ड की सिफारिश के बाद मंत्रालय ने इन पर प्रतिबंध लगाया है।
विभाग के अधिकारियों ने बताया कि ड्रग्स टेक्निकल एडवाइजरी बोर्ड ने सिफारिश की है कि 328 एफडीसी दवाओं में निहित सामग्री के लिए कोई चिकित्सकीय औचित्य नहीं है और इससे सेहत पर बुरा असर हो सकता है। इसके बाद स्वास्थ्य मंत्रालय ने ये निर्णय लिया है। बड़े सार्वजनिक हित को ध्यान में रखते हुए दवाओं और प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 की धारा 26 ए के तहत कार्रवाई की गई है।
दिल्ली के दवा नियंत्रक अधिकारी डॉ. अतुल नासा ने कहा कि सरकार द्वारा संयोजन दवाओं पर प्रतिबंध लगाने के लिए यह एक अच्छा कदम है। इससे पहले, मार्च 2010 में सरकार ने एफडीसी की 344 श्रेणियों को प्रतिबंधित करने के लिए अधिसूचना लाई थी। लेकिन इस निर्णय के खिलाफ अदालत में विभिन्न निर्माताओं ने चुनौती दे दी थी। दरअसल 15 दिसंबर, 2017 के फैसले में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुपालन में इस मामले की जांच ड्रग्स एंड प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 की धारा 5 के तहत गठित दवा तकनीकी सलाहकार बोर्ड द्वारा की गई थी। जिसने इन पर अपनी रिपोर्ट केंद्र सरकार को बढ़ाई थी।
सरकार के इस कदम से एबॉट सहित पीरामल, मैक्लिऑड्स, सिप्ला और ल्यूपिन जैसी घरेलू दवा निर्माताओं के अलावा भी कई कंपनियां प्रभावित होने वाली हैं। यह भी संभावना है कि सरकार के इस फैसले के खिलाफ दवा कंपनियां कोर्ट तक जाएं। इस बैन से देश के 1 लाख करोड़ रुपये के दवा बाजार में करीब 2 प्रतिशत अर्थात 2,000 करोड़ रुपये पर प्रभाव दिखेगा।