भोपाल : भोपाल गैस त्रासदी जिसमें कई जिंदगियों ने देखते ही देखते दम तोड़ दिया। ये अब तक की विश्व की सबसे भयावह और दर्दनाक ओद्योगिक त्रासदी थी जिसमें काली रात में जानें चली गयी और सुबह लोगों को रुलाती हुई आयी।
इस गैस कांड ने भोपाल के लोगों को ऐसा घाव दिया जो 34 साल बाद भी ताजा है। 34 साल पहले जो हुआ वो आज भी लोगों की जहन में है। 2 दिसंबर, 1984 की रात को भोपाल में यूनियन कार्बाइड की फैक्टरी से निकली करीब 30 टन गैस जहरीली मिथाइल आइसोसाइनेट ने हजारों-हजार लोगों को मौत की नींद सुला दी। वो काली रात और उसके बाद की सुबह जैसे सबको खा जाने वाली हो।
3 दिसंबर की सुबह यूनियन कार्बाइड के प्लांट नंबर ‘सी’ में हुए रिसाव से कई हजार लोगों की जान गयी। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि इस दुर्घटना के कुछ ही घंटों के भीतर ही 3 हजार लोग की मौत हो गयी और गैरसरकारी आंकड़े मरने वालों की इस संख्या के करीब 3 गुना ज्यादा बताते हैं।
अब भी जारी हैं त्रासदी के दुष्प्रभाव
इतने सालों बाद बी गैस के संपर्क में आने वाले कई लोगों के पैदा हुए बच्चे शारीरिक और मानसिक रूप से अक्षम है। मौके पर तो हजारों की मौत हुई वहीं आज जो भी जिंदा बचे हैं वो कैंसर से पीड़ित हैं। वहीं यहां के लोग इतने सालों से एक लड़ाई भी जारी रखी है और ये लड़ाई है साइट को साफ कराने की लेकिन रिपोर्ट बताते हैं कि 2001 में मिशिगन स्थित डॉव केमिकल के यूनियन कार्बाइड पर कब्जा करने के बाद कार्य धीरे हो गया।
मानवाधिकार समूह के मुताबिक हजारों टन खतरनाक अपशिष्ट भूमिगत दफनाया गया है और ये भी सरकार ने स्वीकारा कि क्षेत्र दूषित है। स्वास्थ्य को लेकर हालात कुछ ऐसे हैं कि भोपाल गैस कांड के बाद सरकार की ओर से बनाए गए गैस राहत विभाग में हर माह दर्जन भर कैंसर के इलाज के लिए आर्थिक सहायता की मांग की जाती है।
मुआवजे के वादे साबित हुए खोखले
इतने सालों बाद भी मुआवजा बस दिखावा ही है। घटना की इस बरसी भी सवाल वहीं का वहीं है कि आखिर दोषी को सजा दिलाने और पीड़ितों को अतिरिक्त मुआवजा दिलाने के तमाम वादे कब पूरे किए जाएंगे। ऐसा लगता है कि प्लांट अपशिष्टों के साथ ही वादों को भी दफन कर दिया गया। मुआवजे के वादे इतने दशक बाद भी खोखले साबित हुए।
यूनियन कार्बाइड कारखाने का मालिकाना अधिकार अमेरिका की कंपनी के पास है जिसकी वजह गैस पीड़ितों के मुआवजे की मांग डॉलर के वर्तमान मूल्य पर किए जाने की मांग की जाती रही है। हालांकि, इस याचिका में दिए गए निर्देश अब भी सरकारी फाइलों की सिर्फ शोभा बढ़ा रहे हैं। इसके लिए साल 2010 में एक पिटिशन सुप्रीम कोर्ट में दायर की गयी जिसमें 7728 करोड़ रुपए के मुआवजे की मांग उठायी गयी। कंपनी से साल 1989 में जो समझौते हुए थे उसमें 705 करोड़ रुपए मिले हैं। सरकार का तर्क है कि गैस कांड से प्रभावित और मृतकों की संख्या बढ़ी है जिसकी वजह से मुआवजे में भी बढ़ोत्तरी की जाए।