केंद्र के ट्रिपल तलाक बिल पर देशभर में लगातार हो रही चर्चाओं के बाद ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का रुख अब नरम होता नजर आ रहा है। बोर्ड अपना रुख नर्म करते हुए मुस्लिम पर्सनल लॉ के कोडिफिकेशन पर सहमत हो सकता है। बोर्ड विवाह की न्यूनतम उम्र के मुद्दे पर कमीशन से कह सकता है कि वह सुधारों या ‘बदलाव’ के लिए खुला रवैया रखता है, बशर्ते यह कदम इस्लाम के दायरे में उठाए जाएं।वहीं यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने की राह बनाने के लिए लॉ कमीशन ने देशभर में सलाह-मशविरे की प्रक्रिया शुरू की है। इसके तहत बोर्ड से भी राय ली जा रही है। सूत्रों ने बताया कि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड 31 जुलाई को कमीशन से मुलाकात कर सकता है। सूत्रों की मानें तो बोर्ड गोद लेने और उत्तराधिकार से जुड़े मसलों पर पर्सनल लॉ के कोडीफिकेशन पर भी तैयार हो सकता है।
विवाह की क्यास हो न्यूहनतम उम्र
बाल विवाह निरोधक कानून 2006 में कहा गया है कि विवाह के लिए लड़कियों की न्यूनतम उम्र 18 साल और लड़कों की मिनिमम एज 21 साल होनी चाहिए, वहीं इस्लामिक लॉ के अनुसार प्यूबर्टी के बाद शादी की इजाजत है। हालांकि बोर्ड यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने पर विरोध का अपना रुख दोहरा सकता है। एक सदस्यज के अनुसार, कुरान में पर्सनल लॉ का कोडिफिकेशन हो तो हमें कोई ऐतराज नहीं है। हालांकि हम यूसीसी का विरोध करते रहेंगे क्योंकि हमारा देश कई धार्मिक अस्मिताओं और संस्कृतियों वाला है, जिसका सम्मान किया जाना चाहिए।
गोद लेने पर हो विचार
पर्सनल लॉ बोर्ड के मेंबर्स के साथ मई में हुई मीटिंग में लॉ कमीशन ने इस बात पर जवाब मांगा था कि महिलाएं प्रॉपर्टी में आधा हिस्से की ही हकदार क्यों हो सकती हैं। बोर्ड का दावा है कि इस्लाम में गोल लेने का विरोध इस डर के आधार पर किया गया है कि गोद लेने वालों और गोद लिए जाने वाले बच्चे के बीच बाद में यौन संबंध बन सकते हैं। वहीं कमीशन ने यह साफ कर दिया था कि मुसलमानों में निकाह हलाला और बहुविवाह के मुद्दों की समीक्षा नहीं करेगा क्योंकि इन पर अदालत विचार कर रही है।