Bagram Military Base: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एक बार फिर चर्चा में हैं, और इस बार वजह बना है अफगानिस्तान का बगराम एयरबेस। ट्रंप ने शनिवार को अपने ट्रुथ सोशल अकाउंट पर एक पोस्ट करते हुए अफगानिस्तान को खुले शब्दों में चेतावनी दी। उन्होंने कहा, “अगर अफगानिस्तान बगराम एयरबेस को अमेरिका को वापस नहीं करता है, तो बहुत बुरा होगा।” यह बयान सामने आते ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हलचल मच गई है।
दरअसल, ट्रंप की नजर लंबे समय से इस एयरबेस पर रही है। गुरुवार को ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी उन्होंने इस मुद्दे को उठाया था। ट्रंप ने कहा था, “हम बगराम को वापस लेने की कोशिश कर रहे हैं, क्योंकि वहां से एक घंटे की दूरी पर चीन अपने परमाणु हथियार बना रहा है।”
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क्यों है बगराम एयरबेस इतना खास? Bagram Military Base
बगराम एयरबेस अफगानिस्तान की राजधानी काबुल से करीब 40 किलोमीटर उत्तर में स्थित है। 1950 के दशक में इसे सोवियत संघ और अमेरिका की मदद से बनाया गया था, लेकिन 2001 के 9/11 हमलों के बाद अमेरिका ने इसे अपने सबसे बड़े सैन्य अड्डे के रूप में विकसित किया।
यहां अमेरिका के लड़ाकू विमान, ड्रोन, हेलिकॉप्टर ऑपरेट होते थे, और आतंकवाद विरोधी अभियानों का संचालन यहीं से होता था। यहां बर्गर किंग और पिज्जा हट जैसे अमेरिकी रेस्टोरेंट भी थे, साथ ही एक बड़ा डिटेंशन सेंटर भी था, जिसे “बगराम जेल” कहा जाता था।
2021 में जब जो बाइडेन के नेतृत्व में अमेरिकी सेना ने अफगानिस्तान से वापसी की, तब तालिबान ने इस बेस पर कब्जा कर लिया और अमेरिका समर्थित काबुल सरकार भी गिरा दी गई।
ट्रंप का साफ संदेश: बेस चाहिए, नहीं तो…
शनिवार को जब ट्रंप से पूछा गया कि क्या वह बगराम एयरबेस पर दोबारा कब्जे के लिए सेना भेज सकते हैं, तो उन्होंने सीधे जवाब देने से बचते हुए कहा, “हम इस बारे में बात नहीं करेंगे। लेकिन अगर उन्होंने बेस नहीं दिया, तो आप देखेंगे कि मैं क्या करता हूं।”
इस बयान के बाद अफगानिस्तान सरकार की ओर से कड़ा रिएक्शन आया है।
तालिबान का जवाब- “हम अमेरिकी सेना को वापस नहीं आने देंगे”
तालिबान के विदेश मंत्रालय के अधिकारी जाकिर जलाल ने ट्रंप की धमकी को सिरे से खारिज कर दिया। उन्होंने X (पूर्व ट्विटर) पर लिखा कि अफगानिस्तान में अमेरिकी सैन्य उपस्थिति को किसी भी हाल में मंजूर नहीं किया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि दोनों देशों को आपसी सम्मान के आधार पर आर्थिक और राजनीतिक रिश्ते कायम करने चाहिए, लेकिन इसमें सैन्य हस्तक्षेप की कोई जगह नहीं है।
जलाल ने दोहा समझौते का हवाला देते हुए कहा कि अफगानिस्तान कभी भी विदेशी फौजों की मौजूदगी को स्वीकार नहीं करेगा, लेकिन व्यापार और अन्य गतिविधियों के लिए बातचीत के रास्ते खुले हैं।
चीन भी हुआ नाराज़
ट्रंप की धमकी से सिर्फ अफगानिस्तान नहीं, बल्कि चीन भी नाराज़ नजर आया। बीजिंग में मीडिया से बात करते हुए चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियान ने कहा, “हम किसी भी प्रकार के क्षेत्रीय तनाव और टकराव के खिलाफ हैं।” उन्होंने दो टूक कहा कि अफगानिस्तान का भविष्य वहां के लोगों के हाथों में होना चाहिए, न कि बाहरी ताकतों के।
बता दें, चीन ने तालिबान के सत्ता में आने के बाद सबसे पहले अफगानिस्तान के साथ राजनयिक संबंध बनाए और देश में तांबे की खदान और तेल प्रोजेक्ट्स में भारी निवेश कर रहा है।
क्या बगराम पर दोबारा कब्जा मुमकिन है?
मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो बगराम को फिर से हासिल करना अमेरिका के लिए आसान काम नहीं होगा। इसके लिए अमेरिका को करीब 10 हजार से ज्यादा सैनिक, आधुनिक एयर डिफेंस सिस्टम और भारी संसाधनों की जरूरत पड़ेगी।
यह कदम एक तरह से फिर से अफगानिस्तान पर सैन्य कार्रवाई जैसा होगा, जो कि न सिर्फ खर्चीला है बल्कि रणनीतिक तौर पर बेहद जटिल भी। इसके अलावा, सुरक्षा की भी बड़ी चुनौती होगी, क्योंकि इलाके में इस्लामिक स्टेट और अल-कायदा जैसे आतंकी संगठन एक्टिव हैं। साथ ही ईरान से मिसाइल हमले का खतरा भी मौजूद है, जैसा कि जून 2025 में कतर में अमेरिकी बेस पर हमले के दौरान देखा गया था।