Bangladesh Teesta Water Protest: भारत और बांग्लादेश के बीच दशकों पुराना तीस्ता नदी विवाद एक बार फिर सुर्खियों में है। लेकिन इस बार हालात पहले से कहीं ज्यादा जटिल हैं, क्योंकि अब इस विवाद में चीन की एंट्री हो गई है। बांग्लादेश के उत्तरी इलाकों में लोग सड़कों पर उतर आए हैं छात्र, किसान और स्थानीय नागरिक ‘वॉटर जस्टिस फॉर तीस्ता’ के नारे लगा रहे हैं। इन प्रदर्शनों में चीन के समर्थन वाला “तीस्ता मास्टर प्लान” अब चर्चा का नया केंद्र बन गया है।
प्रदर्शनकारियों का कहना है कि यह योजना खेती, सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण के लिए जरूरी है, क्योंकि उत्तरी बांग्लादेश के कई इलाके लंबे समय से सूखे और बेरोजगारी की मार झेल रहे हैं। लेकिन भारत को डर है कि इस योजना के पीछे चीन की रणनीतिक चाल छिपी है, जो सीधे उसकी सुरक्षा पर असर डाल सकती है।
तीस्ता नदी: दोनों देशों की जीवनरेखा- Bangladesh Teesta Water Protest
तीस्ता नदी लगभग 414 किलोमीटर लंबी है। यह सिक्किम से निकलकर पश्चिम बंगाल से होती हुई बांग्लादेश के रंगपुर डिवीजन में प्रवेश करती है। दोनों देशों के लाखों किसान इसी नदी के पानी पर निर्भर हैं।
Grand rally organized by BNP demanding immediate implementation of the Teesta Mega Project to save northern Bangladesh from drought and protect the livelihoods of millions affected by upstream water withdrawal by neighbouring country. pic.twitter.com/gQ4ftJFGxy
— Nasir Uddin Nasir (@NasirUddin64681) October 17, 2025
1983 में भारत और बांग्लादेश के बीच नदी के पानी के बंटवारे पर एक अस्थायी समझौता हुआ था, लेकिन वह कभी लागू नहीं हुआ। बाद में 2011 में एक नया समझौता लगभग तैयार था, लेकिन पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के विरोध के बाद मामला ठंडे बस्ते में चला गया।
तब से बांग्लादेश का आरोप है कि भारत सूखे के मौसम में पर्याप्त पानी नहीं छोड़ता, जबकि मानसून में ज्यादा पानी छोड़े जाने से उनके इलाके में बाढ़ आ जाती है। यही असंतुलन अब वहां के लोगों के गुस्से और आंदोलन की वजह बन गया है।
चीन का तीस्ता मास्टर प्लान — भारत की रणनीतिक ‘गर्दन’ के करीब
मार्च 2025 में बांग्लादेश के चीफ एडवाइजर मुहम्मद यूनुस ने बीजिंग जाकर चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात की थी। इसी दौरान चीन ने 2.1 अरब डॉलर के निवेश के साथ “तीस्ता मास्टर प्लान” पर काम करने का प्रस्ताव दिया।
इस योजना के तहत नदी की खुदाई, बांध और तटबंध (एंबैंकमेंट) बनाना, बाढ़ नियंत्रण और आसपास नए टाउनशिप विकसित करने की योजना है। ये सब चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का हिस्सा हैं।
भारत की चिंता की असली वजह यह है कि यह पूरा इलाका लालमनीरहाट जिले के पास है, जो भारत के सिलीगुड़ी कॉरिडोर — जिसे “चिकन नेक” कहा जाता है — से बेहद करीब है। यही संकरा इलाका भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों को देश के बाकी हिस्सों से जोड़ता है और इसकी चौड़ाई मात्र 20–22 किलोमीटर है। अगर चीन यहां अपनी मौजूदगी बढ़ाता है, तो भारत के लिए यह सैन्य और खुफिया दोनों दृष्टि से खतरा बन सकता है।
बांग्लादेश में बढ़ता ‘वॉटर जस्टिस’ आंदोलन
19 अक्टूबर को चिटगांव यूनिवर्सिटी के छात्रों ने मशाल जुलूस निकालकर ‘वॉटर जस्टिस फॉर तीस्ता’ के नारे लगाए। प्रदर्शनकारियों का कहना था कि चीन समर्थित परियोजना उत्तरी बांग्लादेश के लिए जीवनरेखा साबित होगी। इस आंदोलन को विपक्षी पार्टी BNP (बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी) का भी खुला समर्थन मिला है। BNP ने कहा है कि अगर वह सत्ता में आई, तो तीस्ता मास्टर प्लान को हर हाल में लागू करेगी।
भारत की चुप्पी और बढ़ती रणनीतिक चुनौती
भारत सरकार ने अब तक इस मुद्दे पर कोई औपचारिक बयान नहीं दिया है। हालांकि रणनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर चीन इस क्षेत्र में इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करता है, तो वह भारत की सुरक्षा और निगरानी प्रणाली पर असर डाल सकता है।
भारत पहले से ही चीन के तिब्बत में बन रहे हाइड्रो प्रोजेक्ट्स को लेकर चिंतित है, जो ब्रह्मपुत्र नदी के प्रवाह को प्रभावित कर सकते हैं। अब जब गंगा जल समझौता (1996) भी 2026 में समाप्त होने वाला है, तो भारत और बांग्लादेश के बीच जल साझेदारी पर नए संवाद की जरूरत और बढ़ गई है।
