China Buying Gold: सोने की चमक इन दिनों कुछ ज्यादा ही तेज़ है। वो सिर्फ ज्वेलरी की दुकानों या शादी-ब्याह के सीज़न तक सीमित नहीं रह गई है, बल्कि अब यह देशों की आर्थिक रणनीति का अहम हिस्सा बन चुका है। एक वक्त था जब सोना सिर्फ आम लोगों के लिए ‘सुरक्षित निवेश’ माना जाता था, लेकिन अब देश भी इसे अपने विदेशी मुद्रा भंडार का अहम हिस्सा बना रहे हैं। खासतौर पर चीन की हालिया गतिविधियों ने दुनियाभर के आर्थिक विश्लेषकों का ध्यान खींचा है।
सोना अब सिर्फ गहना नहीं, आर्थिक कवच बन चुका है- China Buying Gold
2023-24 तक जो सोना 70,000 रुपये प्रति तोला के करीब था, वही 2025 में 1.25 लाख रुपये प्रति तोला से भी ऊपर पहुंच गया। डॉलर में बात करें तो एक औंस सोना करीब 3,900 डॉलर तक पहुंच गया है। लेकिन हैरानी की बात ये है कि ये तेजी सिर्फ आम लोगों की खरीदारी से नहीं आई है, बल्कि इसकी सबसे बड़ी वजह हैं दुनियाभर के सेंट्रल बैंकों की तगड़ी खरीदारी।
चीन की जबरदस्त गोल्ड स्ट्रैटेजी
चीन इस रेस में सबसे आगे है। उसका सेंट्रल बैंक पीपल्स बैंक ऑफ चाइना लगातार 11 महीने से बिना रुके सोना खरीद रहा है। जनवरी से सितंबर 2025 के बीच चीन ने करीब 39.2 टन सोना खरीदा है। अब तक चीन के पास कुल 2,298.5 टन गोल्ड का भंडार जमा हो चुका है।
मई-जून जैसे कुछ महीनों में चीन ने औसतन 2 से 5 टन सोना हर महीने खरीदा, हालांकि सितंबर में यह गिरकर सिर्फ 0.4 टन रहा। लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि चीन की रणनीति धीमी हुई है।
क्यों कर रहा है चीन इतना गोल्ड स्टॉक?
डॉलर पर निर्भरता घटाना
चीन अच्छी तरह समझता है कि अमेरिकी डॉलर पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर राज करता है। ऐसे में अगर चीन को अपनी मुद्रा को मजबूत बनाना है, तो उसे डॉलर से दूरी बनानी होगी। और इसमें सोना एक मजबूत विकल्प है क्योंकि यह किसी भी देश की करेंसी पर निर्भर नहीं करता।
रूस-यूक्रेन युद्ध ने सिखाया सबक
जब रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू हुआ, तो अमेरिका और यूरोप ने रूस की विदेशी संपत्तियों को फ्रीज कर दिया। इससे चीन और कई अन्य देशों को ये समझ में आया कि अगर उनका पैसा अमेरिकी या यूरोपीय सिस्टम में पड़ा है, तो वो कभी भी खतरे में पड़ सकता है। ऐसे में सोना एक ऐसा निवेश है, जिसे कोई जब्त नहीं कर सकता।
महंगाई और आर्थिक अनिश्चितता
दुनियाभर में बढ़ती महंगाई और आर्थिक अस्थिरता के दौर में सोना एक ऐसी चीज़ है जो अपनी कीमत बनाए रखता है। यही वजह है कि चीन इसे आर्थिक ‘सेफ्टी नेट’ की तरह इस्तेमाल कर रहा है।
मुद्रा को मजबूत बनाने की कोशिश
चीन चाहता है कि उसकी मुद्रा युआन भी डॉलर की तरह ग्लोबल पावर बने। इसके लिए वह बड़े स्तर पर सोना जमा कर रहा है ताकि उसकी करेंसी को बैक करने वाला ठोस भंडार तैयार हो सके।
भारत भी पीछे नहीं, RBI का गोल्ड कलेक्शन रिकॉर्ड स्तर पर
भारत ने भी पिछले कुछ सालों में अपने गोल्ड रिजर्व को बढ़ाने में जबरदस्त काम किया है। 8 अक्टूबर 2025 तक भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के पास 880 टन सोना जमा हो चुका है। 2015 में जहां भारत के पास सिर्फ 557.7 टन सोना था, वहीं अब इसमें 58% की बढ़ोतरी हो चुकी है।
भारत के कुल गोल्ड रिजर्व में से लगभग 512 टन सोना नागपुर और मुंबई की तिजोरियों में रखा गया है, जबकि बाकी का हिस्सा बैंक ऑफ इंग्लैंड और बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट्स जैसे विदेशी बैंकों में सुरक्षित रखा गया है। कुल विदेशी मुद्रा भंडार में सोने की हिस्सेदारी अब 11.7% पहुंच चुकी है।
गोल्ड की इस होड़ में और कौन-कौन?
केवल चीन और भारत ही नहीं, रूस, तुर्की, कज़ाख़स्तान जैसे कई अन्य देश भी सोने की जमाखोरी में लगे हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक, 2022 से हर साल दुनियाभर के सेंट्रल बैंक 1,000 टन से ज्यादा सोना खरीद रहे हैं। वजह वही – डॉलर से दूरी बनाना, वैश्विक तनाव से खुद को बचाना और आर्थिक भविष्य को सुरक्षित करना।