Donald Trump: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं, लेकिन जिस तरह से वह खुद की तारीफ करते हैं, वो उन्हें और ज्यादा चर्चा में ला देता है। ये सिर्फ सामान्य आत्मविश्वास नहीं है, बल्कि एक हद तक जाकर खुद को महान साबित करने की चाहत है और यही वजह है कि ट्रंप को लेकर “Narcissism” यानी अति आत्ममुग्धता की चर्चा लगातार होती रही है। आइये इसे विस्तार से समझते हैं
और पढ़ें: India at UNGA: टूटे रनवे और जले हैंगर को जीत बता रहे हैं शहबाज, UN में भारत ने कर दी बोलती बंद
खुद की तारीफ में ट्रंप की दिलचस्पी या ज़रूरत से ज़्यादा भूख? Donald Trump
डोनाल्ड ट्रंप वो नेता हैं जो सार्वजनिक रूप से अपनी तारीफ करने में बिल्कुल भी नहीं झिझकते। वह कई बार खुद को “जीनियस” और “मेंटली स्टेबल” यानी मानसिक रूप से संतुलित बता चुके हैं। 2018 में उन्होंने एक बयान में कहा था, “मैं एक बेहद सफल बिजनेसमैन से टॉप टीवी स्टार बना और फिर पहली ही कोशिश में अमेरिका का राष्ट्रपति बन गया। अगर यह जीनियस नहीं है, तो और क्या है?” और फिर उन्होंने खुद को एक “स्टेबल जीनियस” तक कह दिया।
नोबेल की चाह और “Recognition Hunger”
ट्रंप ने न सिर्फ बार-बार अपनी तारीफ की, बल्कि वो खुद के लिए नोबेल शांति पुरस्कार की मांग भी कर चुके हैं। ये बात कोई एक-दो बार नहीं, बल्कि कई मौकों पर सामने आई है। उन्होंने ये दावा किया कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध को रुकवाया था, और इसी आधार पर उन्हें नोबेल मिलना चाहिए। हालांकि भारत और पाकिस्तान दोनों ही पक्षों ने उनके इस दावे को नकार दिया।
जब कोई नेता खुद के लिए खुलेआम पुरस्कार की मांग करे, तो मनोविज्ञान की दुनिया में इसे Recognition-hunger और Narcissism के तौर पर देखा जाता है। यानी वो स्थिति, जब इंसान को हर वक्त तारीफ और मान्यता की तलब बनी रहती है।
मानसिक स्थिति और नार्सिसिज्म क्या होता है?
नार्सिसिज्म यानी अति आत्ममुग्धता, एक ऐसा स्वभाव होता है जिसमें इंसान खुद को जरूरत से ज्यादा अहमियत देता है। उसे लगता है कि वो सबसे ऊपर है, उसे हर समय तारीफ मिलनी चाहिए, और वह दूसरों की भावनाओं को ज्यादा तवज्जो नहीं देता। जब यह गुण किसी इंसान के काम, रिश्तों या सामाजिक व्यवहार में गड़बड़ी पैदा करने लगे, तो इसे Narcissistic Personality Disorder (NPD) कहा जाता है।
ट्रंप का व्यवहार कई बार इसी दिशा में जाता दिखा है। आलोचना को वह ‘फेक न्यूज’ या ‘धोखा’ कहकर खारिज कर देते हैं। उनके लिए जो तारीफ करे, वही सही है। ट्रंप अक्सर अपनी रैलियों और भाषणों में खुद को “सर्वश्रेष्ठ राष्ट्रपति” और “विश्व का शांतिदूत” कहने से नहीं चूकते।
एक्सपर्ट्स की नजर में ट्रंप का व्यक्तित्व
अमेरिका और दुनिया भर के कई मनोवैज्ञानिक ट्रंप के रवैये को नार्सिसिस्टिक बताते हैं। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर हॉवर्ड गार्डनर से लेकर क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट जॉर्ज साइमन तक, कई विशेषज्ञों ने ट्रंप को NPD का “क्लासिक केस” कहा है।
2017 में आई एक चर्चित किताब “The Dangerous Case of Donald Trump” में 27 मनोचिकित्सकों और एक्सपर्ट्स ने ट्रंप को अमेरिकी लोकतंत्र के लिए एक “स्पष्ट और वर्तमान खतरा” बताया था। इस किताब में उन्हें एक अराजक, स्वार्थी और अप्रत्याशित निर्णय लेने वाला नेता बताया गया है, जिसकी मानसिक स्थिति अमेरिका के लिए खतरनाक हो सकती है।
ट्रंप की अपील सिर्फ उनके समर्थकों में नहीं है, बल्कि वह खुद भी अपने ही सबसे बड़े फैन हैं। उन्होंने हाल ही में ओवल ऑफिस में बैठते हुए अपने कोट पर F-35 फाइटर जेट का लोगो तक लगा लिया जैसे वो ये जताना चाह रहे हों कि ताकत और महानता सिर्फ उनके साथ जुड़ी हुई है।
क्या यह व्यवहार बीमारी है?
हालांकि, इस पर सभी एक्सपर्ट्स का एकमत नहीं है। मशहूर मनोचिकित्सक और DSM-5 गाइडलाइन के लेखक एलन फ्रांसेस मानते हैं कि ट्रंप को मानसिक रोगी कहना सही नहीं होगा। उनका मानना है कि ट्रंप का यह व्यवहार एक रणनीति भी हो सकता है। वह कहते हैं, “बुरा व्यवहार हमेशा मानसिक बीमारी नहीं होता।” उन्होंने ट्रंप को “क्रेजी लाइक अ फॉक्स” यानी जानबूझकर उग्र और चालाक बताया है।
उनका तर्क है कि ट्रंप के आत्मकेंद्रित और दिखावटी स्वभाव ने उन्हें सफलता दिलाई है न कि परेशानी। इसलिए इसे मानसिक बीमारी कहना जल्दबाजी होगी।
ट्रंप और सहानुभूति की कमी
ट्रंप की भाषा और बयान अक्सर यह दर्शाते हैं कि उन्हें दूसरों की भावनाओं की ज्यादा परवाह नहीं है। चाहे वो प्रवासियों को “एलियन” कहना हो या गाज़ा को ‘सी फेसिंग प्रॉपर्टी’ कहकर विवाद खड़ा करना, उनके शब्दों में सहानुभूति की भारी कमी दिखती है।
