KGB Secret missions: रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को दुनिया एक शक्तिशाली नेता के रूप में जानती है, लेकिन उनकी असली शुरुआत राजनीति से नहीं, बल्कि खुफिया एजेंसी KGB से हुई थी। आमतौर पर जहां नेता किसी राजनीतिक पृष्ठभूमि या बड़े परिवारों से आते हैं, वहीं पुतिन सीधे जासूसी की दुनिया से रूस की सबसे ऊंची कुर्सी तक पहुंचे। KGB में उनका करियर ऐसा था कि आज भी उस एजेंसी के कई मिशन रहस्य और रोमांच से भरे किस्सों की तरह सुनाए जाते हैं। इन्हीं मिशनों में से एक है अमेरिका की मिसाइल चोरी, जो जितनी खतरनाक लगती है, उसका असल तरीका उतना ही अप्रत्याशित और लगभग मज़ाकिया है।
शीत युद्ध का तनाव और KGB के गुप्त मिशन (KGB Secret missions)
शीत युद्ध के दौरान सोवियत संघ और अमेरिका एक दूसरे को मात देने में लगे थे। यह वह दौर था जब दोनों देशों में हर छोटी-बड़ी तकनीक, हथियार और सैन्य जानकारी को लेकर जबरदस्त जासूसी चल रही थी। कनाडाई वेबसाइट “यूरैशियन टाइम्स” की रिपोर्ट बताती है कि KGB ने इस समय पश्चिमी देशों की एडवांस्ड सैन्य तकनीक हासिल करने के लिए कई अंडरकवर मिशन चलाए। इन्हीं में एक ऑपरेशनल AIM‑9X साइडवाइंडर मिसाइल को चुराने का मिशन शामिल था, जिसे अमेरिका अपने सबसे भरोसेमंद एयर-टू-एयर हथियारों में गिनता था।
जर्मन नागरिक बने KGB के गुप्त साथी
यह कहानी और दिलचस्प तब हो जाती है जब पता चलता है कि मिशन में KGB को मदद मिली तीन जर्मन नागरिकों से मैनफ्रेड रैमिंगर, जोसेफ लिनोव्स्की और वुल्फ-डाइटहार्ड क्नोपे। बताया जाता है कि ये लोग जर्मनी की सख्त नीतियों से परेशान थे और रूस की मदद करने के लिए तैयार हो गए।
22 अक्टूबर 1967 की शाम इन तीनों ने घने कोहरे का फायदा उठाते हुए क्नोपे के सैन्य पास की मदद से पश्चिमी जर्मनी के न्यूबर्ग एयर बेस में प्रवेश किया। यह लगभग किसी हॉलीवुड फिल्म का सीन जैसा था धुंध, भारी सुरक्षा और एक गुप्त मिशन।
जब भारी मिसाइल को ठेले पर लादकर निकाला गया
मिशन का सबसे हैरान करने वाला हिस्सा वह था जब मिसाइल चोरी की असल प्रक्रिया शुरू हुई। तीनों ने पहले गोला-बारूद डिपो में AIM‑9 मिसाइल को ढूंढा और फिर उसे एक साधारण हाथ ठेले पर लाद दिया। घने कोहरे की वजह से उन्हें रनवे पर चलते हुए कोई देख ही नहीं पाया। सोचिए एक हाई-टेक अमेरिकी मिसाइल, लाखों डॉलर की तकनीक, और उसे ले जाया जा रहा था एक मामूली ठेले पर धकेलते हुए। बेस के बाहर मर्सिडीज सेडान पहले से खड़ी थी, जो इस चोरी में “एस्केप व्हीकल” की भूमिका निभाने वाली थी।
कार में मिसाइल नहीं आई, तो तोड़ दिए शीशे
जब मिसाइल कार में फिट नहीं हुई, तो मिशन और क्रिएटिव हो गया। कार के शीशे तोड़ दिए गए और मिसाइल का एक हिस्सा बाहर की ओर लटकता रहा। ताकि यह न लगे कि कार में कोई हथियार लदा है, बाहर निकले हिस्से पर कपड़ा बांधा गया। सड़क पर निकलते समय ट्रैफिक नियमों का भी पूरा ध्यान रखा गया। मिसाइल के बाहर वाले हिस्से पर लाल कपड़ा बांधा गया ताकि दूसरे ड्राइवरों को पता चले कि किसी बड़े सामान को लेकर जाया जा रहा है और दुर्घटना न हो।
मिसाइल मॉस्को पहुंची, पुर्जे अलग होकर
रैमिंगर मिसाइल को सुरक्षित अपने ठिकाने पर ले गए। वहां इसके हिस्सों को अलग-अलग किया गया, पैक किया गया और फिर धीरे-धीरे मॉस्को भेज दिया गया। माना जाता है कि सोवियत विशेषज्ञों ने इस तकनीक का इस्तेमाल अपने हथियारों को समझने और आगे बढ़ाने में किया।









