POK Protest Update: पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ इस वक्त तगड़े राजनीतिक और सामाजिक दबाव में हैं। वजह? पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (POK) में शुरू हुए एक जबरदस्त जनविरोध ने पूरे देश की सियासी ज़मीन हिला दी है। बात अब सिर्फ प्रदर्शन की नहीं रही, बल्कि सवाल सीधे-सीधे शहबाज सरकार की साख, स्थिरता और भविष्य पर उठ रहे हैं।
और पढ़ें: US Shutdown 2025: अमेरिका में फेडरल शटडाउन, सरकारी कामकाज ठप, इमिग्रेंट्स पर बढ़ी चिंता
पीओके से शुरू हुआ जनआंदोलन- POK Protest Update
सब कुछ शुरू हुआ अवामी एक्शन कमेटी के नेतृत्व में हुए पीओके के प्रदर्शनों से। मुजफ्फराबाद और रावलकोट जैसे इलाकों में हजारों लोग सड़कों पर उतर आए। जनता ने सिर्फ महंगाई और बेरोजगारी के खिलाफ आवाज नहीं उठाई, बल्कि खुलकर पाकिस्तान की फौज और सरकार के खिलाफ नारेबाजी की। सरकारी इमारतों के बाहर प्रदर्शनकारियों की भीड़ जुटी और देखते ही देखते माहौल बेकाबू हो गया।
पहले तो सरकार ने हमेशा की तरह ताकत से निपटने की कोशिश की। सेना को भेजा गया, गोलियां चलाई गईं और 15 से ज़्यादा लोगों की जान चली गई। लेकिन हालात तब पलटे जब प्रदर्शनकारी हिंसा पर उतर आए और फौज पर ही हमला बोल दिया। फौज के जवान भी घायल हुए और कई जगहों पर 172 पुलिसकर्मी अस्पताल में भर्ती कराए गए। जवाब में सरकार को पीछे हटना पड़ा।
अब बातचीत की बात
स्थिति बिगड़ती देख शहबाज शरीफ को बैकफुट पर आना पड़ा। उन्होंने तुरंत बातचीत का ऑफर दिया और कहा कि सरकार कश्मीरी भाइयों की समस्याओं को गंभीरता से ले रही है। उन्होंने ये भी दावा किया कि राहत सहायता भेजी जा रही है और प्रदर्शनकारियों की बात सुनी जाएगी।
इसके बाद सरकार ने बातचीत की एक टीम मुजफ्फराबाद भेजी, जिसमें केंद्रीय मंत्री सरदार यूसुफ, अहसान इकबाल, राना सनाउल्लाह, मसूद खान और कमर जमान कैरा शामिल हैं। प्रधानमंत्री खुद इस प्रक्रिया की निगरानी कर रहे हैं। लेकिन जनता अब सिर्फ आश्वासनों से मानने के मूड में नहीं दिख रही।
प्रदर्शन के पीछे की मांगें
प्रदर्शनकारियों की मांगें साफ हैं –
- शरणार्थियों के लिए आरक्षित 12 सीटों को खत्म किया जाए,
- अमीरों को मिलने वाले विशेषाधिकार रद्द किए जाएं।
इन मांगों के पीछे ये भावना है कि सरकार पीओके के लोगों को दूसरे दर्जे का नागरिक मानती है। लेकिन अगर ये मांगे मानी जाती हैं, तो पाकिस्तान की सत्ता पर इसका बड़ा असर पड़ सकता है, क्योंकि इन्हीं राजनीतिक चालों से वहां की हुकूमत अब तक बनी रही है।
मामला अब सिर्फ पीओके तक नहीं
इस बार समस्या सिर्फ पीओके तक सीमित नहीं रही। लाहौर, कराची, इस्लामाबाद और पेशावर जैसे बड़े शहरों में भी प्रदर्शन तेज हो गए हैं। लोग सिर्फ कश्मीर को लेकर नहीं, बल्कि बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी, प्रशासनिक भ्रष्टाचार और कानून व्यवस्था से परेशान हैं।
ट्रेड यूनियन से लेकर स्टूडेंट ग्रुप्स तक, हर कोई सड़कों पर है।
सरकार ने पुलिस को अलर्ट पर रखा है, लेकिन साफ है कि अगर प्रदर्शन और तेज हुए, तो हालात काबू से बाहर जा सकते हैं।
क्या दोहराया जाएगा हसीना-ओली वाला इतिहास?
राजनीतिक विश्लेषक साफ कह रहे हैं – पाकिस्तान की स्थिति अब बांग्लादेश और नेपाल जैसी हो सकती है, जहां जनता के भारी विरोध के बाद शेख हसीना और केपी ओली जैसे नेताओं को सत्ता छोड़नी पड़ी। अगर शहबाज शरीफ जल्द कोई संतुलित समाधान नहीं निकाल पाए, तो उनके लिए सत्ता में बने रहना मुश्किल हो सकता है।
सरकार की रणनीति: सहमति और संयम
फिलहाल सरकार की रणनीति यही है कि बात को संवाद के जरिए सुलझाया जाए। प्रधानमंत्री ने कानून-व्यवस्था से जुड़े अधिकारियों को सख्त निर्देश दिए हैं कि कोई भी कार्रवाई प्रदर्शनकारियों के खिलाफ कठोर न हो और आम जनता के गुस्से को शांत करने की कोशिश की जाए।
लेकिन असली चुनौती ये है कि क्या जनता अब सरकार पर भरोसा करने को तैयार है?
दबाव में शरीफ सरकार
सोशल मीडिया पर भी सरकार के खिलाफ जबरदस्त विरोध देखने को मिल रहा है। लोग शहबाज शरीफ से जवाब मांग रहे हैं। ऐसे में सवाल ये है कि क्या ये सरकार इस गुस्से को झेल पाएगी?
फिलहाल, देश के हालात बेहद नाजुक हैं। प्रदर्शन अगर लंबे समय तक चले, तो ये सिर्फ सरकार ही नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम के लिए खतरे की घंटी बन सकते हैं।
अब देखना यही है कि शहबाज शरीफ सिर्फ शब्दों से हालात संभालते हैं या कोई ठोस कदम भी उठाते हैं – क्योंकि जनता अब चुप बैठने के मूड में नहीं दिख रही।