खामोश भारत, बेचैन अमेरिका: मोदी-पुतिन-जिनपिंग की मुलाकात से हिल रहा QUAD का ढांचा?

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New QUAD: अमेरिका को उम्मीद थी कि दबाव डालो, धमकी दो, टैरिफ लगाओ और भारत झुक जाएगा। लेकिन हुआ ठीक उल्टा। जब से अमेरिका ने 25% बेस टैरिफ के ऊपर और 25% अतिरिक्त टैरिफ का हथियार चलाया है, भारत की तरफ से कोई जवाब नहीं आया न कोई प्रेस कॉन्फ्रेंस, न कोई खुला ऐलान। बस एक खामोशी, जो अब अमेरिका को भीतर तक झकझोर रही है। दरअसल डोनाल्ड ट्रंप को लगा था कि टैरिफ की मार से भारत घुटनों पर आ जाएगा। उन्होंने तो यहां तक कह दिया कि इतना टैरिफ लगाएंगे कि “दिमाग चकरा जाएगा”। लेकिन भारत ने उस दिमाग को चकराने ही नहीं दिया  न कोई प्रतिघात, न कोई बयानबाजी। अमेरिका को लगा था कि भारत रूसी तेल लेना बंद करेगा, लेकिन भारत ने इसे एक मौके की तरह देखा। हालात से लड़ने की बजाय हमने उन्हें अपने पक्ष में मोड़ लिया।

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खामोशी की रणनीति से अमेरिका परेशान- New QUAD

भारत ने अमेरिकी माल के लिए अपने दरवाजे बंद नहीं किए, न ही टैरिफ वॉर में उलझा। अमेरिकी मीडिया अब ट्रंप को ही कोस रही है, और देश में महंगाई, बेरोजगारी और गरीबों की हालत को लेकर चिंता बढ़ रही है। विशेषज्ञ मानते हैं कि ट्रंप के टैरिफ फैसले से अमेरिका को ज्यादा नुकसान हो रहा है, भारत को नहीं। रिपोर्ट्स की मानें तो टैरिफ का असर भारत की जीडीपी पर सिर्फ 0.1% तक ही सीमित रहेगा।

बीजिंग से पहले टोक्यो: बढ़ती कूटनीतिक सरगर्मी

अब अगले कुछ दिन वैश्विक कूटनीति के लिहाज से बेहद अहम होने वाले हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जापान और चीन की यात्रा पर हैं। 29 अगस्त को वे जापान पहुंचेंगे, जहां वे शिगेरु इशिबा से मुलाकात करेंगे। जापान और भारत के रिश्ते ऐतिहासिक हैं। 1951 में भारत एशिया का पहला देश था जिसने जापान से कूटनीतिक संबंध बनाए। पंडित नेहरू ने WWII में हुए नुकसान के लिए जापान से मुआवजा मांगने से इनकार कर दिया था क्योंकि उन्हें लगा कि रिश्ते मुआवजे से कहीं ऊपर हैं।

जापान के बाद चीन में शी जिनपिंग से मोदी की संभावित मुलाकात वाइट हाउस के लिए चिंता का कारण बन गई है। व्लादिमीर पुतिन पहले ही मोदी को अलास्का और अन्य मुद्दों पर जानकारी दे चुके हैं, और अब बीजिंग में एक और अहम मीटिंग होने जा रही है। ट्रंप की चिंता इस बात को लेकर और गहरी हो रही है कि कहीं भारत-चीन-रूस का नया समीकरण अमेरिका को ग्लोबल कूटनीति में अलग-थलग न कर दे।

क्वाड की प्रासंगिकता पर सवाल

इसी बीच, क्वाड यानी भारत, जापान, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया का समूह चीन के मुकाबले के लिए बनाया गया था। लेकिन अब ऑस्ट्रेलिया और जापान, दोनों ही ट्रंप की टैरिफ पॉलिसी से नाराज़ हैं। जापान ने वॉशिंगटन दौरा रद्द कर दिया है और ऑस्ट्रेलिया ने WTO नियमों की अनदेखी पर आपत्ति जताई है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या क्वाड का भविष्य खतरे में है?

अगर भारत, चीन, जापान और रूस एक साथ आते हैं तो नया समीकरण उभर सकता है। यह सिर्फ राजनीति नहीं बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था और सुरक्षा समीकरणों को भी प्रभावित करेगा।

भारत-चीन-रूस: आंकड़ों में तिकड़ी की ताकत

  • इन तीन देशों की संयुक्त GDP (PPP) करीब 54 ट्रिलियन डॉलर है, जो वैश्विक आर्थिक उत्पादन का एक तिहाई है
  • आबादी मिलाकर 1 अरब, यानी पूरी दुनिया की लगभग 40% जनसंख्या
  • दुनिया की 38% विदेशी मुद्रा भंडार इन्हीं तीन देशों के पास
  • 550 अरब डॉलर का संयुक्त रक्षा बजट, जो वैश्विक सैन्य खर्च का 20% है
  • तीनों देश अपनी-अपनी जगह पर सुपरपॉवर चीन मैन्युफैक्चरिंग, रूस एनर्जी, और भारत सर्विस सेक्टर में

कुल मिलाकर कहा जाए तो, ट्रंप की हर चाल उल्टी पड़ती दिख रही है। जब गेहूं रोका गया था, तब हरित क्रांति आई। जब परमाणु बम पर रोक लगी, तब भारत ने थोरियम आधारित ऊर्जा पर काम शुरू किया। और जब क्रायोजेनिक तकनीक रोकी गई, तब PSLV जैसी स्वदेशी रॉकेट तकनीक ने दुनिया को चौंका दिया। अब बारी GST और व्यापार सुधारों की है जो टैरिफ वॉर की हवा निकाल देंगे।

ट्रंप की तिलमिलाहट बताती है कि भारत की खामोशी से अमेरिका की नींव हिल रही है। आने वाले दिन वैश्विक राजनीति को एक नया आकार दे सकते हैं और इस नई तस्वीर में भारत की भूमिका पहले से कहीं ज्यादा अहम होगी।

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