Turkish Coup Attempt: तुर्की में इन दिनों राजनीतिक उथल-पुथल अपने चरम पर है। राष्ट्रपति रेचेप तैयप एर्दोगान की सरकार पर विपक्ष को दबाने के लिए न्यायपालिका के इस्तेमाल का गंभीर आरोप लग रहा है। विवाद की शुरुआत इस्तांबुल की एक अदालत के उस फैसले से हुई, जिसमें मुख्य विपक्षी पार्टी रिपब्लिकन पीपुल्स पार्टी (CHP) की 2023 की स्थानीय चुनावों में मिली जीत को रद्द कर दिया गया।
यह फैसला आने के बाद देश की सियासी फिज़ा गर्म हो गई है। विरोध की लहर पूरे तुर्की में फैल चुकी है, और हालात इतने तनावपूर्ण हो गए हैं कि सरकार ने पूरे देश में इंटरनेट सेवा पर प्रतिबंध लगा दिया है।
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क्यों बढ़ा बवाल? Turkish Coup Attempt
इस्तांबुल की अदालत ने CHP की जीत को रद्द करने के पीछे आंतरिक चुनावों में कथित अनियमितताओं का हवाला दिया है। अदालत का कहना है कि पार्टी प्रतिनिधियों के चयन के दौरान पैसे के लेन-देन के आरोप सामने आए थे। लेकिन इस फैसले को विपक्ष ‘साजिश’ करार दे रहा है।
गौरतलब है कि इस्तांबुल सिर्फ तुर्की का सबसे बड़ा शहर ही नहीं, बल्कि देश की आर्थिक राजधानी भी है। इसी शहर से CHP की मजबूत पकड़ ने हालिया चुनावों में एर्दोगान की पार्टी को बड़ा झटका दिया था। ऐसे में अदालत का फैसला सिर्फ कानूनी नहीं, बल्कि राजनीतिक रूप से भी बेहद अहम माना जा रहा है।
विपक्ष का आरोप: ‘हमें खत्म करना चाहते हैं’
CHP के प्रमुख ओजगुर ओज़ेल ने कोर्ट के फैसले की कड़ी आलोचना की है। उन्होंने इसे सीधा-सीधा सत्ता की ओर से “विपक्ष को खत्म करने की कोशिश” बताया। फाइनेंशियल टाइम्स से बातचीत में ओज़ेल ने कहा,
“वे उस पार्टी पर कब्जा करना चाहते हैं जिसने पिछला चुनाव जीता था और जो तुर्की गणराज्य की संस्थापक पार्टी है। हम एक सत्तावादी सरकार के सामने हैं और अब विरोध ही एकमात्र रास्ता बचा है।”
पूरे देश में विरोध, इंटरनेट बंद
CHP ने फैसले के विरोध में देशव्यापी जनआंदोलन का ऐलान किया। रविवार को पार्टी समर्थकों ने इस्तांबुल मुख्यालय के बाहर भारी संख्या में प्रदर्शन किया। पुलिस ने इलाके की घेराबंदी कर दी और विरोध को दबाने के लिए चिली स्प्रे का भी इस्तेमाल किया।
स्थिति तनावपूर्ण होती देख देशभर में इंटरनेट सेवा बाधित कर दी गई। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स और न्यूज वेबसाइट्स तक पहुंचना भी मुश्किल हो गया है।
क्या तुर्की ‘रूस मॉडल’ की ओर बढ़ रहा है?
सरकार की ओर से सफाई दी गई है कि तुर्की की न्यायपालिका स्वतंत्र है और फैसले में किसी तरह का राजनीतिक हस्तक्षेप नहीं हुआ है। लेकिन विपक्ष और राजनीतिक विश्लेषक इसे मानने को तैयार नहीं हैं।
उनका मानना है कि एर्दोगान ‘रूस स्टाइल’ प्रबंधित लोकतंत्र की ओर बढ़ रहे हैं, जहां विपक्ष मौजूद तो होता है, लेकिन असल सत्ता एक ही पार्टी के पास होती है। आलोचकों ने इसे “लीगल कूप” यानी कानूनी तख्तापलट तक कह दिया है।