Vladimir Putin News: कहते हैं वक्त से बड़ा कोई नहीं होता। समय कब किस दिशा में करवट ले ले, कोई अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। भारत और रूस के बीच भगवद्गीता को लेकर कभी खड़ा हुआ विवाद इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। जिस ग्रंथ को रूस में 2011 में ‘उग्रवादी साहित्य’ बताकर बैन करने की मांग हुई थी, वही गीता आज रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के हाथों में सम्मान के साथ सुशोभित हुई वो भी भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा आधिकारिक तौर पर भेंट के तौर पर।
पुतिन इस समय भारत दौरे पर हैं। बुधवार को पीएम मोदी ने 7, लोक कल्याण मार्ग स्थित अपने आवास पर उनका स्वागत किया और उन्हें भगवद्गीता की रूसी भाषा में अनुवादित प्रति उपहार स्वरूप दी। यह सिर्फ एक गिफ्ट नहीं था, बल्कि उन 15 साल पुरानी यादों का ऐसा उल्टा फ्लैशबैक था, जिसने दोनों देशों के रिश्तों में कभी हलचल पैदा की थी।
15 साल पुरानी विवादित कहानी (Vladimir Putin News)
साल 2011 में रूस के साइबेरिया प्रांत के टॉम्स्क शहर में गीता से जुड़ा एक मामला अदालत में पहुंचा था। विवाद किस बारे में था? दरअसल, इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर कृष्णा कॉन्शसनेस (इस्कॉन) द्वारा प्रकाशित ‘भगवद्गीता ऐज इट इज’ के रूसी अनुवाद को लेकर कुछ प्रॉसिक्यूटर्स का दावा था कि इसमें ऐसी बातें हैं, जो सामाजिक वैमनस्य बढ़ा सकती हैं। इसलिए इसे ‘उग्रवादी साहित्य’ घोषित कर दिया जाए।
अगर अदालत यह मांग मान लेती, तो गीता का यह अनुवाद हिटलर की कुख्यात ‘मेन कैम्फ’ वाली कैटेगरी में जा पहुंचता। यह बात भारत सहित दुनिया के हिंदू समुदाय को बेहद आहत करने वाली थी।
रूस की फेडरल सिक्योरिटी सर्विस ने भी इस किताब को लेकर जांच की थी। उस समय की रूसी सरकार मामले को लेकर रक्षात्मक मुद्रा में थी, लेकिन विवाद इतना बढ़ गया कि बात सीधे भारत और रूस के कूटनीतिक रिश्तों तक पहुंच गई।
भारत में बवाल और आखिरकार जीत
गीता को लेकर छिड़े विवाद ने भारत में राजनीतिक हलचल मचा दी थी। संसद में जोरदार हंगामा हुआ, कई सांसदों ने इसे धार्मिक अस्मिता से जोड़कर रूस के प्रति कड़ा विरोध दर्ज कराया। तत्कालीन विदेश मंत्री एस.एम. कृष्णा ने रूस के राजदूत से इस मुद्दे पर सीधे बात की। कई शहरों में विरोध-प्रदर्शन हुए। दुनिया भर में हिंदू समुदाय ने इस निर्णय का विरोध किया।
फिर 28 दिसंबर 2011 का दिन आया, जब टॉम्स्क की अदालत ने गीता को बैन करने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी। अदालत ने माना कि पुस्तक में ऐसा कोई भी कंटेंट नहीं है जिसे ‘उग्रवादी’ कहा जा सके। इस फैसले के साथ ही गीता का सम्मान सुरक्षित रहा और विवाद पर विराम लग गया।
हालांकि, उस समय रूस के विदेश मंत्रालय ने यह जरूर कहा था कि असल जांच ‘गीता के टेक्स्ट’ की नहीं, बल्कि उस पर लिखी गई कमेंट्री को लेकर हो रही है। फिर भी भारत की कूटनीतिक जीत साफ दिख रही थी।
समय बदला और तस्वीर भी बदल गई
वक्त धीरे-धीरे आगे बढ़ा और 2025 तक आते-आते परिदृश्य पूरी तरह बदल चुका था। 15 साल पहले जिस गीता को रूस के एक हिस्से में संदेह की नजर से देखा गया था, वही किताब आज भारत-रूस दोस्ती की नई कहानी लिख रही है। प्रधानमंत्री मोदी ने पुतिन को गीता की रूसी अनुवादित प्रति भेंट की और पुतिन ने भी इसे सम्मानपूर्वक स्वीकार किया। यह दृश्य बताता है कि कैसे समय और कूटनीति मिलकर देशों के बीच रिश्तों को नए अर्थ दे देती हैं।
गीता विवाद से पुतिन को गिफ्ट तक
साल 2011 में रूस में भगवद्गीता ‘ऐज इट इज’ को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हुआ था, जब टॉम्स्क के प्रॉसिक्यूटर्स ने इसे एक्सट्रीमिस्ट साहित्य बताते हुए बैन करने की मांग कर दी थी। हालांकि बाद में अदालत ने यह याचिका खारिज कर दी और स्पष्ट किया कि गीता में ऐसा कोई उग्रवादी कंटेंट नहीं है। उस समय भारत का रुख बेहद सख्त रहा संसद में हंगामा हुआ, सड़क पर विरोध-प्रदर्शन हुए और सरकार ने रूस पर कूटनीतिक दबाव भी बनाया ताकि गीता पर कोई आंच न आए।
स्थिति इतनी गंभीर थी कि अगर याचिका मान ली जाती, तो गीता को हिटलर की ‘Mein Kampf’ जैसी प्रतिबंधित किताबों की कैटेगरी में डाल दिया जाता। लेकिन समय के साथ सब बदल गया। 2025 में पुतिन की भारत यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें इसी गीता की रूसी भाषा वाली प्रति सम्मानपूर्वक भेंट की। यह न सिर्फ विवाद के खत्म होने का संकेत था, बल्कि इस बात का भी प्रमाण कि भारत और रूस के रिश्ते समय की कसौटी पर और मजबूत होकर उभरे हैं, और जो मुद्दे कभी तनातनी का कारण बने थे, वे आज सांस्कृतिक कूटनीति का हिस्सा बन चुके हैं।









