What is Reciprocal Tariff: ट्रंप की रेसिप्रोकल टैरिफ नीति! भारत-अमेरिका व्यापारिक रिश्तों में नया मोड़, जानें इससे जुड़ा इतिहास

What is Reciprocal Tariff india
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What is Reciprocal Tariff: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 2 अप्रैल 2025 से भारत पर रेसिप्रोकल टैरिफ (Reciprocal Tariff) लागू करने की घोषणा की है। उनका तर्क है कि भारत अमेरिकी उत्पादों पर 100% से अधिक टैक्स लगाता है, जबकि अमेरिका ने भारतीय उत्पादों पर अपेक्षाकृत कम शुल्क लगाया है। इस नीति के लागू होने के बाद, अमेरिका अब भारतीय उत्पादों पर वही कर लगाएगा, जो भारत अमेरिकी सामानों पर लगाता है। इससे दोनों देशों के व्यापारिक समीकरण प्रभावित हो सकते हैं और भारत के लिए नए आर्थिक मोर्चे खुल सकते हैं।

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क्या है रेसिप्रोकल टैरिफ नीति? (What is Reciprocal Tariff)

“रेसिप्रोकल” का अर्थ “जैसे को तैसा” होता है। इस नीति के तहत, यदि कोई देश दूसरे देश के उत्पादों पर अधिक शुल्क लगाता है, तो जवाब में वह देश भी इसी अनुपात में शुल्क बढ़ा सकता है। यह व्यापारिक संतुलन बनाए रखने और स्थानीय उद्योगों की रक्षा के लिए एक रणनीतिक कदम होता है।

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रेसिप्रोकल टैरिफ के प्रमुख उद्देश्य:

  1. व्यापार संतुलन बनाए रखना:
    • यह सुनिश्चित करता है कि किसी एक देश को अनुचित व्यापारिक लाभ न मिले।
  2. स्थानीय उद्योगों को संरक्षण:
    • विदेशी उत्पादों की कीमत बढ़ने से घरेलू उत्पादों की मांग बढ़ सकती है।
  3. व्यापारिक वार्ता का दबाव:
    • कई बार, इस तरह की नीतियां कूटनीतिक वार्ताओं को मजबूती देने के लिए अपनाई जाती हैं।

क्या होंगे भारत पर असर?

– स्वदेशी उत्पादों की बिक्री बढ़ सकती है: जब अमेरिकी बाजार में भारतीय उत्पाद महंगे होंगे, तो भारत में घरेलू उत्पादों की मांग बढ़ सकती है।

–  व्यापार वार्ता का अवसर: भारत को अमेरिका के साथ नई व्यापारिक संधियों पर चर्चा करने का मौका मिल सकता है।

संभावित नुकसान:

इससे भारतीय निर्यातकों को मुनाफे में गिरावट का सामना करना पड़ सकता है। दोनों देशों के बीच व्यापार युद्ध (Trade War) जैसी स्थिति बन सकती है। अमेरिकी कंपनियों के लिए भारतीय कच्चे माल की कीमतें बढ़ सकती हैं, जिससे उत्पादन लागत प्रभावित हो सकती है।

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भारत-अमेरिका व्यापार पर संभावित प्रभाव

अमेरिका भारत का एक बड़ा व्यापारिक साझेदार है और दोनों देशों के बीच सालाना अरबों डॉलर का व्यापार होता है। यदि यह नीति लागू होती है, तो इससे उन भारतीय कंपनियों को नुकसान हो सकता है जो अमेरिका में बड़े पैमाने पर निर्यात करती हैं।

विशेषज्ञों का मानना है कि भारत सरकार इस चुनौती से निपटने के लिए कूटनीतिक प्रयास कर सकती है। व्यापारिक वार्ता के जरिए टैरिफ कम करने के समझौते किए जा सकते हैं, जिससे दोनों देशों के बीच व्यापारिक रिश्ते संतुलित रह सकें।

अमेरिका में बढ़ सकती हैं भारतीय उत्पादों की कीमतें

विशेषज्ञों का कहना है कि रेसिप्रोकल टैरिफ लागू होने के बाद, भारतीय वस्त्र, ऑटोमोबाइल पार्ट्स, स्टील, दवा और आईटी उत्पाद महंगे हो सकते हैं।

इसके अलावा, भारतीय कंपनियों के लिए अमेरिकी बाजार में प्रतिस्पर्धा करना कठिन हो सकता है। हालांकि, इस चुनौती से निपटने के लिए भारत सरकार व्यापारिक वार्ताओं के जरिए एक नई रणनीति बना सकती है।

रेसिप्रोकल टैरिफ के नुकसान

1860 में ब्रिटेन और फ्रांस के बीच कोबडेन-शेवेलियर संधि हुई। इस संधि के तहत दोनों देशों ने आपसी सहमति से अपनी टैरिफ दरों को कम किया, जिससे व्यापार को बढ़ावा मिला। यह पहला बड़ा समझौता था जिसने द्विपक्षीय व्यापार को विनियमित करने के लिए पारस्परिक टैरिफ नीति को अपनाया। 19वीं सदी के अंत में अमेरिका और यूरोप के बीच व्यापार संधियों में भी इस नीति को लागू किया गया था। 1930 में, अमेरिका ने “स्मूट-हॉले टैरिफ एक्ट” लागू किया। जिससे वैश्विक व्यापार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा और महामंदी (Great Depression) में वृद्धि हुई थी।

महामंदी के दौरान, अमेरिकी सरकार ने घरेलू उद्योगों की रक्षा के लिए विदेशी उत्पादों पर उच्च टैरिफ लगाए। जवाब में, यूरोपीय देशों ने भी अमेरिकी उत्पादों पर भारी टैरिफ लगाए, जिससे अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में गिरावट आई। नतीजतन, वैश्विक अर्थव्यवस्था और भी मंदी में चली गई। हाल ही में ट्रम्प प्रशासन ने चीन, यूरोपीय संघ और अन्य देशों पर टैरिफ लगाया, जिसके जवाब में उन देशों ने भी अमेरिकी वस्तुओं पर कर लगाया।

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