नई दिल्ली। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 42 साल पहले देश में आपातकाल लागू करने को लोकतांत्रिक संस्थानों पर प्रहार बताते हुए रविवार के दिन कहा कि तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी ने सत्ता पर काबिज रहने के लिए आपातकाल लगाया था।
जेटली ने अपने लेख ‘आपातकाल: 42 साल पहले ’ में लिखा है कि 25 जून 1975 की रात एमरजेंसी लगाने का कारण भले ही देश में कानून-व्यवस्था की खतरनाक स्थिति बताया गया था, लेकिन इसका असली कारण यह था कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए इंदिरा गांधी को सत्ता से बेदखल करने का आदेश दिया था। जबकि उच्चतम न्यायालय ने इस आदेश पर सशर्त स्थगनादेश लगाया था। इसके बावजूद भी इंदिरा गांधी किसी भी तरह से सत्ता में बने रहना चाहती थीं, इसलिए उन्होंने देश को आपातकाल में धकेल दिया।
जेटली ने दल और नेताओं पर कसे तंज
जेटली ने उस समय आपातकाल का समर्थन करने वाले दलों और उनके नेताओं पर तंज कसते हुए कहा है कि अब यह रिवाज बन गया है कि कोई भी कह देता है कि ‘देश में अघोषित आपातकाल’ लागू है। लेकिन इन लोगों और दलों को एमरजेंसी के दौरान अपनी भूमिका के बारे में आत्मचिंतन करना चाहिए। इन लोगों को अपने आप से सवाल करना चाहिए कि ‘ उन 19 महीनों के दौरान मैं कहां था और इस मुद्दे पर मेरा सार्वजनिक रुख क्या था।’ इनमें से अधिकतर तो एमरजेंसी का समर्थन कर रहे थे। जिससे किसी भी विरोध प्रदर्शन में शिरकत नहीं की।
इमरजेंसी से लोकतांत्रिक संस्थानों पर किया गया हमला
उन्होंने कहा कि एमरजेंसी के कारण न केवल सभी लोकतांत्रिक संस्थानों पर हमला किया गया बल्कि इससे एक व्यक्ति की तानाशाही स्थापित हो गयी थी और समाज में भय का माहौल बन गया था। एमरजेंसी लगाने के तुरंत बाद सबसे पहला काम राजनीतिक विरोधियों को हिरासत में लेने का आदेश किया गया। इसके बाद जिला मजिस्ट्रेटों और कलेक्टरों को खाली फॉर्म दिये गये थे जिससे वे हजारों की संख्या में नेताओं और कार्यकर्ताओं को बंदी बना सकें। किसी की गिरफ्तारी का कोई कारण नहीं बताया गया था और पुलिस स्टेशनों को सभी के विरुद्ध एक ही तरह की प्राथमिकी दर्ज करने की सलाह दी गयी थी।
देश में पूरी तानाशाही हुई स्थापित
जेटली ने कहा कि विपक्ष की सभी गतिविधियों को दबा दिया गया था और मीडिया में सरकारी प्रचार के अलावा कुछ प्रचारित नहीं किया जाता था। भारत के संविधान और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के प्रावधानों को पूर्व प्रभाव से संशोधित कर दिया गया था। जिससे वे सभी आधार निरस्त हो जाएं, जिनके चलते इंदिरा गांधी के चुनाव को रद्द किया गया था। इसके बाद संसद के दोनों सदनों के ज्यादातर विपक्षी सदस्य जेलों में बंद थे। इससे बहुमत में आई सरकार को संविधान में संशोधन करने का मौका मिल गया। जिससे कुछ राज्यों की विपक्षी सरकारों को भी बर्खास्त कर दिया गया और देश में पूरी तरह से तानाशाही स्थापित हो गयी थी।