जानिए नाम और मंत्र का जाप कैसे करना चाहिए? होठों को हिलाकर या जीभ से

Learn to chant names and mantras correctly
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साधना में जाप का विशेष महत्व है। माना जाता है कि जाप से साधक का मन शुद्ध और बाह्य विकारों से मुक्त होता है। नाम जप से हर समस्या का समाधान होने के साथ-साथ साधक का हर कार्य भी सिद्ध होता है। कुछ लोग मंत्र जाप पूरी श्रद्धा और पूरी सावधानी के साथ और पूरी विधि का पालन करते हुए करते हैं और कुछ लोग दूसरों को देखकर ही कोई भी मंत्र जपने लगते हैं। हालांकि ये गलत है क्योंकि किसी भी मंत्र का जाप करते समय मंत्र का उच्चारण कैसे करना है, किस स्वर में मंत्रों का उच्चारण करना है ताकि मंत्र जाप का लाभ अधिकतम हो सके, यह जानना बहुत जरूरी है। इसलिए आज हम आपको बताएंगे कि किस तरह के मंत्रों का जाप कैसे करना है।

मंत्र जप के समय होठों के हिलने, श्वास तथा स्वर के निस्सरण के आधार पर शास्त्रों ने मंत्र जप को तीन वर्गों में विभाजित किया है।

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वाचिक जप

जिस प्रकार भगवान का भजन और आरती ऊंची आवाज में की जाती है, उसी प्रकार मंत्रों का जाप भी ऊंची आवाज में करना वर्जित है। शास्त्रों में कहा गया है कि मंत्रों का जाप करते समय आवाज बाहर नहीं आनी चाहिए। जाप करते समय मंत्रों का उच्चारण इस प्रकार करना चाहिए कि ध्वनि जाप करने वाले के कानों तक पहुंचती रहे, इसे वाचिक जाप कहते हैं। साथ ही, मौखिक जप से अधिक इंद्रियां सक्रिय हो सकती हैं तथा श्रवण और शारीरिक अनुभव के माध्यम से ध्यान केंद्रित करने में मदद मिल सकती है।

उपांशु जप

मंत्र जप की इस विधि में मंत्र की ध्वनि मुख से नहीं निकलती, बल्कि जप करते समय साधक की जीभ और होंठ हिलते रहने चाहिए। उपांशु जप में यदि कोई अन्य व्यक्ति साधक के होठों को देखे तो उसे वे हिलते हुए दिखाई देते हैं, लेकिन वह कोई शब्द नहीं सुन सकता।

मानस जप

मंत्र जप की इस विधि में जप करने वाले व्यक्ति के होंठ और जीभ नहीं हिलते; व्यक्ति केवल अपने मन में मंत्र का ध्यान करता है। इस अवस्था में जप करने वाले व्यक्ति को देखकर यह नहीं कहा जा सकता कि वह कोई मंत्र जप रहा है। होंठ और जीभ हिलाए बिना मंत्र जप की प्रभावशीलता को मौन या मानसिक जप के रूप में भी जाना जाता है। मन ही मन मंत्र जपने से ध्यान और एकाग्रता में सुधार हो सकता है, क्योंकि मंत्र को आंतरिक रूप से दोहराने के लिए मानसिक प्रयास की आवश्यकता होती है। हालांकि ये जप व्यक्ति की मान्यताओं, प्रथाओं और अनुभवों के आधार पर भिन्न हो सकती है। कई आध्यात्मिक परंपराओं में, मौखिक और मानसिक जप दोनों को अद्वितीय लाभों के साथ शक्तिशाली अभ्यास माना जाता है।

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