Mount Everest Name Story: कैसे एक अंग्रेज के नाम पर रखा गया माउंट एवरेस्ट का नाम, जानें इसकी खोज की कहानी

Mount Everest Name Story george everest
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Mount Everest Name Story: हर साल 29 मई को पूरी दुनिया अंतर्राष्ट्रीय एवरेस्ट दिवस मनाती है। यह दिन न्यूजीलैंड के सर एडमंड हिलेरी और शेरपा तेनजिंग नोर्गे की याद में मनाया जाता है, जिन्होंने 29 मई 1953 को पहली बार माउंट एवरेस्ट को फतह किया था। उस समय यह पर्वत पीक-15 के नाम से जाना जाता था, जिसका आधिकारिक नाम 1865 में रखा गया था। हालांकि, माउंट एवरेस्ट का नाम सर जार्ज एवरेस्ट के नाम पर पड़ा, जो इस चोटी से जुड़े दिलचस्प इतिहास का हिस्सा है।

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जार्ज एवरेस्ट कौन थे? (Mount Everest Name Story)

सर जार्ज एवरेस्ट ब्रिटेन के वेल्स के निवासी थे। उनका जन्म 4 जुलाई 1790 को हुआ था। वे एक गणितज्ञ और भूविज्ञानी थे और 1830 से 1843 तक भारत के सर्वेयर जनरल के पद पर रहे। भारत में उनका योगदान अतुलनीय रहा, क्योंकि उन्होंने पूरे देश का सर्वेक्षण वैज्ञानिक तरीके से किया। उन्होंने सर्वेक्षण की तकनीकों में कई महत्वपूर्ण सुधार किए, जिनकी वजह से भारत के नक्शे की सटीकता विश्वस्तरीय बनी।

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माउंट एवरेस्ट का नामकरण और विवाद

पहले इस पर्वत को पीक-15 के नाम से जाना जाता था। नेपाल के लोग इसे ‘सागर माथा’ और तिब्बती लोग ‘चोमोलुंगमा’ कहते हैं। जब सर जार्ज एवरेस्ट के अधीन काम करने वाले सर्वेयर ने इस चोटी का नाम उनके नाम पर रखने का प्रस्ताव दिया, तो एवरेस्ट ने इसका विरोध किया। उनका मानना था कि इस चोटी का नाम स्थानीय लोगों की भाषा और सुविधा के अनुसार रखा जाना चाहिए। लेकिन उनके बाद के सर्वेयर सर एंड्रयू ने 1856 में इस नामकरण का प्रस्ताव रखा, जिसे 1865 में रॉयल जियोग्राफिकल सोसायटी ने आधिकारिक रूप से स्वीकार कर लिया।

सर जार्ज एवरेस्ट का माउंट एवरेस्ट से कोई व्यक्तिगत संबंध नहीं

इस सबसे ऊंची पर्वत चोटी का नाम सर जार्ज एवरेस्ट के नाम पर तो पड़ा, लेकिन वे कभी नेपाल नहीं गए और न ही इस पर्वत पर चढ़ाई की कोशिश की। उनकी उपलब्धि भारत में किए गए सर्वेक्षण और मापन की सटीकता का परिणाम थी, जिसने इस चोटी को दुनिया की सबसे ऊंची माना। वे एक परफेक्शनिस्ट थे, जो हर गणना और माप को बार-बार जांचते थे। उन्होंने भारत में मेरिडियन आर्क सर्वे के तहत लगभग 2400 किलोमीटर का सर्वेक्षण किया, जिसकी सटीकता आज भी आधुनिक तकनीकों के साथ तुलनीय है।

माउंट एवरेस्ट की खोज की कहानी

19वीं सदी में भारत में त्रिकोणमिति सर्वे का कार्य चल रहा था, जिसमें पता चला कि भारत-तिब्बत सीमा पर एक अज्ञात पर्वत चोटी है जो सबसे ऊंची है। इसे पीक-15 कहा गया। भारतीय गणितज्ञ राधानाथ सिकदर ने 1852 में इस चोटी की ऊंचाई 8840 मीटर मापी। हालांकि, ब्रिटिश प्रशासन ने उनके माप को ज्यादा महत्व नहीं दिया।

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एवरेस्ट हाउस: मसूरी में जार्ज एवरेस्ट का घर

भारत में अपने कार्यकाल के दौरान सर जार्ज एवरेस्ट का मसूरी से गहरा लगाव था। उन्होंने मसूरी के हाथीपांव इलाके में अपना घर बनाया, जिसे आज ‘जार्ज एवरेस्ट हाउस’ के नाम से जाना जाता है। यह जगह हिमालय की चोटियों को निहारने के लिए प्रसिद्ध है और अब पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है।

अंतर्राष्ट्रीय एवरेस्ट दिवस की शुरुआत

सर एडमंड हिलेरी का निधन 11 जनवरी 2008 को हुआ। उसी वर्ष नेपाल सरकार ने 29 मई को हर साल अंतर्राष्ट्रीय एवरेस्ट दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया। इस दिन नेपाल में सरकारी और निजी स्तर पर कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिनमें माउंट एवरेस्ट की विजय की याद और पर्वतारोहण के महत्व को सम्मानित किया जाता है।

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