Odisha Temple:ओडिशा के मंदिर सिर्फ पत्थर और ईंट की इमारतें नहीं हैं, बल्कि इतिहास, आस्था और कला का अनोखा संगम हैं। यहां कदम रखते ही लगता है जैसे हर नक्काशी, हर मूर्ति और हर स्तंभ अपने भीतर किसी रहस्य या कहानी को छुपाए हुए है। भगवान जगन्नाथ से लेकर सूर्य, शिव और देवी-देवताओं तक के ये मंदिर न केवल भक्तों के लिए आस्था का केंद्र हैं, बल्कि कला और संस्कृति के शौकीनों के लिए भी किसी खजाने से कम नहीं। इन मंदिरों की भव्यता और ऐतिहासिक महत्व आपको मंत्रमुग्ध कर देते हैं, और एक बार यहां आ जाने के बाद यह अनुभव लंबे समय तक आपके साथ रहता है। आईए आज आपको ओडिशा के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों के बारे में बताते हैं।
भगवान जगन्नाथ मंदिर- Odisha Temple
ओडिशा का प्रमुख धार्मिक केंद्र, भगवान जगन्नाथ मंदिर हिंदू धर्म के चार धामों में से एक माना जाता है। यह मंदिर भगवान विष्णु के एक स्वरूप, जगन्नाथ को समर्पित है। राजा अनंतवर्मन चोडगंगा के नेतृत्व में गंग वंश ने बारहवीं शताब्दी में इस मंदिर का निर्माण करवाया। मंदिर की भव्यता और आध्यात्मिक ऊर्जा इसे लाखों श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र बनाती है।
यह मंदिर न केवल पूजा स्थल है, बल्कि प्राकृतिक और वास्तुकला की दृष्टि से भी अद्भुत है। इसकी विशेषता यह है कि मंदिर का झंडा हवा की विपरीत दिशा में लहराता है। मंदिर परिसर में प्रतिदिन महाप्रसाद का वितरण होता है, जो भक्तों के लिए भगवान का अंतिम आशीर्वाद माना जाता है। यहां आए श्रद्धालु धार्मिक अनुष्ठानों के अलावा प्राचीन वास्तुकला और नक्काशी के अद्भुत नमूने भी देख सकते हैं।
कोणार्क सूर्य मंदिर
कोणार्क सूर्य मंदिर हिंदू देवता सूर्य को समर्पित है और इसे यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी गई है। यह मंदिर तेरहवीं शताब्दी में पूर्वी गंगा के राजा नरसिंह देव प्रथम द्वारा बनवाया गया था। इसकी भव्य दीवारें अनगिनत धार्मिक और कामुक नक्काशियों से सज्जित हैं, जो कलिंग शैली की उत्कृष्टता को दर्शाती हैं।
मंदिर की संरचना सूर्य के रथ के आकार में है और इसके पहिए समय मापने में सहायक सूर्यघड़ी की भूमिका निभाते हैं। गर्भगृह सूर्य की पहली किरणों में डूबता है और स्थानीय परंपराओं के अनुसार यहां प्रतिदिन हिंदू अनुष्ठान होते हैं। यह मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि भारतीय मुद्रा पर इसकी छवि भी दर्शाई गई है, जो इसकी सांस्कृतिक प्रतिष्ठा को बताती है।
लिंगराज मंदिर
ओडिशा का लिंगराज मंदिर भगवान शिव को समर्पित सबसे बड़े और प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। इसका निर्माण आठवीं शताब्दी में हुआ और यह शिव के विविध स्वरूपों की पूजा स्थल के रूप में जाना जाता है। मंदिर परिसर में हजारों शिवलिंग स्थापित हैं और एक भूमिगत नदी का पानी धार्मिक अनुष्ठानों के लिए उपयोग किया जाता है।
मंदिर की दीवारों पर देवी-देवताओं की नक्काशी और कलाकृतियाँ वास्तुकला प्रेमियों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं। कहा जाता है कि माता पार्वती ने गोप कन्या के रूप में इस स्थान पर दर्शन किए थे और मंदिर का निर्माण उसी कथा से प्रेरित होकर हुआ। लिंगराज मंदिर का आध्यात्मिक महत्व और वास्तुकला इसे ओडिशा के प्रमुख धार्मिक स्थलों में स्थान दिलाते हैं।
मुक्तेश्वर मंदिर
मुक्तेश्वर मंदिर, सोमवंशी वंश के राजा ययाति प्रथम द्वारा निर्मित, दसवीं शताब्दी का एक प्रमुख पर्यटन स्थल है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और इसकी स्थापत्य कला और भित्तिचित्र अद्वितीय हैं। मंदिर की सीढ़ियाँ और स्तंभों पर की गई नक्काशी उस समय की स्थापत्य कला की उत्कृष्टता दर्शाती हैं।
यह मंदिर पहाड़ी की चोटी पर स्थित है और इसे ‘मुक्ति का स्थान’ कहा जाता है। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव ने यहीं राक्षसों का वध किया था। मुक्तेश्वर मंदिर न केवल तीर्थयात्रियों के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि इतिहास और कला प्रेमियों के लिए भी आकर्षण का केंद्र है।
राजरानी मंदिर
इंद्रेश्वर के नाम से भी प्रसिद्ध यह मंदिर अपनी कामुक मूर्तियों और नक्काशी के लिए जाना जाता है। राजरानी मंदिर में किसी भी देवता की मूर्ति नहीं है, लेकिन इसकी दीवारों पर बनी नक्काशियाँ पंचरथ वास्तुकला की उत्कृष्ट मिसाल हैं। मंदिर की स्थापना 11वीं शताब्दी में हुई और यह जगन्नाथ मंदिर के अनुरूप बनाया गया।
यहां तीन दिवसीय राजरानी संगीत महोत्सव आयोजित होता है, जिसमें भारत भर के शास्त्रीय संगीतकार प्रदर्शन करते हैं। मंदिर की वास्तुकला और कलात्मक सज्जा इसे पर्यटकों और भक्तों के लिए विशेष बनाती है।
माँ समलेश्वरी मंदिर
संबलपुर में स्थित माँ समलेश्वरी मंदिर ओडिशा और आसपास के राज्यों में प्रमुख देवी का स्थान है। चौहान वंश के राजा बलराम देव ने सोलहवीं शताब्दी में इस मंदिर का निर्माण करवाया। स्थानीय लोग देवी को भव्य रूप में नवरात्रि के दौरान पूजते हैं। मंदिर की दीवारों और मूर्तियों में अद्भुत वास्तुकला और कलात्मकता देखने को मिलती है।
ब्रह्मेश्वर मंदिर
भुवनेश्वर का यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और इसकी स्थापत्य शैली लिंगायत शैली में है। एक ही पत्थर से निर्मित यह मंदिर अपनी अद्वितीयता और विशाल दीवारों की मूर्तियों के लिए जाना जाता है। इसमें भोज और नृत्य हॉल भी मौजूद है, जहां शास्त्रीय नृत्य प्रदर्शन होते हैं। मंदिर की स्थापना 11वीं शताब्दी में हुई और यह पर्यटकों के लिए सौंदर्य और आध्यात्मिक अनुभव का केंद्र है।
चौसठ योगिनी मंदिर
हीरापुर स्थित चौसठ योगिनी मंदिर 64 योगिनियों या अर्ध-देवियों के पूजा स्थल के रूप में प्रसिद्ध है। यह मंदिर लगभग 25 फुट व्यास का है और इसमें 64 छोटे आलों में मूर्तियाँ स्थापित हैं। मंदिर की संरचना और रहस्यमयी कथा इसे तीर्थयात्रियों के लिए आकर्षक बनाती है।
तारातारिणी मंदिर
भुवनेश्वर रेलवे स्टेशन से करीब 1.5 किलोमीटर दूर स्थित तारातारिणी मंदिर भगवान राम, लक्ष्मण और माता सीता को समर्पित है। दशहरा से दिवाली के दौरान यहां भक्तों की बड़ी संख्या होती है। मंदिर का खुला दृश्य और आरती की परंपरा इसे धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण बनाती है।
राम मंदिर
भुवनेश्वर का यह प्रसिद्ध मंदिर भी भगवान राम, लक्ष्मण और माता सीता को समर्पित है। यहां भक्त नवरात्रि के दौरान विशेष आरती और पूजा के लिए आते हैं। मुख्य मंदिर के साथ जुड़े छोटे मंदिर और विशाल प्रतिमाएँ इसे धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से आकर्षक बनाती हैं।
