Top Gurudwaras in Maharashtra: मराठों की धरती पर गूंजती है अरदास, जानें महाराष्ट्र के 10 गुरुद्वारों की अनकही कहानी

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Top Gurudwaras in Maharashtra
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Top Gurudwaras in Maharashtra: महाराष्ट्र को अक्सर मराठा वीरता, ऐतिहासिक किलों और सांस्कृतिक विविधता के लिए जाना जाता है, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि यह राज्य सिख धर्म के अनुयायियों के लिए भी एक पवित्र भूमि के रूप में जाना जाता है। यहां मौजूद कई ऐतिहासिक और आध्यात्मिक गुरुद्वारे न केवल धर्म के प्रतीक हैं, बल्कि भाईचारे, सेवा और आंतरिक शांति की मिसाल भी पेश करते हैं। इन गुरुद्वारों में सिर्फ सिख ही नहीं, बल्कि सभी धर्मों के लोग श्रद्धा और आस्था के साथ आते हैं। आइए महाराष्ट्र के कुछ प्रमुख गुरुद्वारों की बात करते हैं, जो सिख परंपरा, इतिहास और संस्कृति को आज भी जीवंत रखते हैं।

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हज़ूर साहिब: नांदेड़ की आत्मा- Top Gurudwaras in Maharashtra

महाराष्ट्र के गुरुद्वारों की बात हो और हज़ूर साहिब का नाम न लिया जाए, ऐसा हो ही नहीं सकता। नांदेड़ के हर्ष नगर में स्थित यह गुरुद्वारा गुरु गोबिंद सिंह जी की याद में बनाया गया था। यहीं 1708 में उनकी अंतिम क्रिया हुई थी और अंगीठा साहिब नामक स्थान पर उनका स्मारक बना हुआ है। इसकी खास बात है इसका सोने से मढ़ा गुंबद और तांबे का कलश, जो इसे दूर से ही एक अलग पहचान देता है। यहां दर्शन के लिए सालभर संगत आती है, लेकिन अक्टूबर से मार्च के बीच भीड़ कुछ ज्यादा होती है।

गुरुद्वारा नग़ीना घाट – सफेद संगमरमर की शांति में लिपटा विश्वास

वज़ीराबाद में स्थित गुरुद्वारा नग़ीना घाट अपने सुंदर सफेद संगमरमर के ढांचे और शांत वातावरण के लिए जाना जाता है। इसका निर्माण राजा गुलाब सिंह सेठी की विधवा ने शुरू करवाया था और यह 1968 में पूरा हुआ। यह गुरुद्वारा अपने पहले तल पर एक छोटे से कक्ष में गुरु ग्रंथ साहिब की स्थापना के लिए प्रसिद्ध है, जहां एक सफेद संगमरमर की पालकी (पलकी साहिब) के नीचे पवित्र ग्रंथ विराजमान हैं। यह स्थान अपने सादगी भरे सौंदर्य और आध्यात्मिक ऊर्जा के लिए संगत को बहुत आकर्षित करता है। यहां साल भर दर्शन की सुविधा रहती है, लेकिन नवंबर से जनवरी के बीच यहां आना सबसे बेहतर समय माना जाता है।

यहां तक पहुंचना भी बेहद आसान है, यहां पहुँचने के लिए सियालकोट नजदीकी शहर है जहां से सड़क मार्ग से गुरुद्वारे तक पहुंचा जा सकता है। रेलवे से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए नजदीकी स्टेशन नेरल है, जबकि हवाई यात्रा करने वालों के लिए वज़ीराबाद एयरपोर्ट सबसे पास है। गांधी नगर बस स्टैंड भी पास ही स्थित है। अगर आप आसपास थोड़ा घूमना चाहें तो फन दुन्या थीम पार्क, कलापूल और रणबिरेश्वर मंदिर जैसी जगहें आपके सफर को और यादगार बना सकती हैं।

गुरुद्वारा बांदा घाट – एक संत से योद्धा बनने की प्रेरक कहानी

गुरुद्वारा बांदा घाट, वज़ीराबाद में स्थित है और इसका महत्व उस महान योद्धा को समर्पित है जो कभी भई माधो दास बैरागी के नाम से जाने जाते थे। बाद में गुरु गोबिंद सिंह जी के आशीर्वाद से वे बाबा बंदा सिंह बहादुर बने और सिख धर्म की रक्षा के लिए संघर्षरत रहे। यह गुरुद्वारा उनकी बहादुरी, बलिदान और आस्था का प्रतीक है। यहां का शांत वातावरण और ऐतिहासिक ऊर्जा श्रद्धालुओं को भीतर तक छू जाती है।

यह स्थान पूरे साल खुला रहता है, लेकिन फरवरी से अप्रैल के बीच यहां आकर दर्शन करना विशेष रूप से अच्छा माना जाता है, जब मौसम भी अनुकूल रहता है। यात्रा की सुविधा के लिहाज से यह भी सियालकोट से सड़क मार्ग द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है। नेरल रेलवे स्टेशन और वज़ीराबाद एयरपोर्ट यहां के नजदीकी ट्रांजिट प्वाइंट्स हैं। वहीं गांधी नगर बस स्टैंड से भी यह स्थान अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। दर्शन के बाद, आप मनार डैम, विसावा गार्डन या गांधी प्रतिमा जैसे स्थानों की सैर कर सकते हैं जो पास ही स्थित हैं और कुछ पल प्रकृति के साथ बिताने का अच्छा अवसर देते हैं।

गुरुद्वारा शिकार घाट – जहां शिकार बना एक आत्मिक अनुभव

वज़ीराबाद का ही एक और महत्वपूर्ण स्थल है गुरुद्वारा शिकार घाट। इस गुरुद्वारे से एक दिलचस्प लोककथा जुड़ी है – कहा जाता है कि गुरु गोबिंद सिंह जी ने यहां एक खरगोश का शिकार किया था, जिसे वे अपने पुराने साथी भाई मौला करार का पुनर्जन्म मानते थे। यह घटना इस स्थल को और भी खास बनाती है क्योंकि यह हमें गुरु साहिब की दूरदर्शिता और आध्यात्मिक दृष्टिकोण की झलक देती है।

यह गुरुद्वारा भी साल के 12 महीने 24 घंटे खुला रहता है, लेकिन अक्टूबर से नवंबर का समय दर्शन के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है। यहां पहुंचने के लिए सियालकोट से सड़क मार्ग सबसे बेहतर विकल्प है। नेरल रेलवे स्टेशन, वज़ीराबाद एयरपोर्ट और गांधी नगर बस स्टैंड पास के मुख्य ट्रांजिट पॉइंट्स हैं। गुरुद्वारे के पास के दर्शनीय स्थलों में शिव टेम्पल हिल्स, कलापूल और रणबिरेश्वर मंदिर शामिल हैं, जो आपके यात्रा अनुभव को और भी समृद्ध बना सकते हैं।

 ब्राह्मनवाड़ा: माता साहिब कौर और गुरु जी की सेवा भूमि

ब्राह्मनवाड़ा में स्थित गुरुद्वारा हीरा घाट साहिब वह स्थान है जहां गुरु गोबिंद सिंह जी ने पहली बार नांदेड़ में डेरा डाला था। कहा जाता है कि यहीं पर बहादुर शाह ने उन्हें एक कीमती हीरा भेंट किया था। पास ही बना गुरुद्वारा श्री माता साहिब गुरु गोबिंद सिंह जी की पत्नी माता साहिब कौर की याद में बनाया गया है, जिन्होंने यहां लंगर की सेवा संभाली थी। दोनों स्थानों का वातावरण बेहद शांत और दिव्य महसूस होता है।

अमरावती का मालटेकड़ी साहिब: गुरु नानक जी की पदयात्रा का पड़ाव

1512 में श्रीलंका की यात्रा के दौरान, गुरु नानक देव जी अमरावती में गुरुद्वारा मालटेकड़ी साहिब पर रुके थे। यहां उनकी मुलाकात लाकड़ शाह फकीर से हुई थी जो देख और चल नहीं सकते थे। यह गुरुद्वारा सिख इतिहास में उस करुणा और इंसानियत की भावना को दर्शाता है जिसे गुरु नानक देव जी ने हमेशा अपनाया।

गनिपुरा का संगत साहिब: जहां संगत ने दिया था ढाल का दान

गुरुद्वारा श्री संगत साहिब, गनिपुरा में स्थित है और इसकी जड़ें काफी पुरानी मानी जाती हैं। कहा जाता है कि यहां सिख संगत गुरु नानक देव जी के समय से ही मौजूद थी। एक ऐतिहासिक घटना के मुताबिक यहां 300 सैनिकों को एक ढाल बतौर धन भेंट में दी गई थी।

बसमत नगर का दमदमा साहिब: प्रकृति की गोद में आठ दिन

गुरु गोबिंद सिंह जी 1708 में जब नांदेड़ की ओर जा रहे थे, तब उन्होंने गुरुद्वारा श्री दमदमा साहिब, बसमत नगर में आठ दिन का विश्राम लिया। चारों तरफ फैली हरियाली और शांति ने उन्हें यहां रुकने को प्रेरित किया। इस दौरान कई संगत उनके दर्शन के लिए यहां पहुंचे और उनका आशीर्वाद प्राप्त किया।

नानकसर साहिब, पांगरी: जहां नौ दिन तक चली साधना

गुरुद्वारा श्री नानकसर साहिब, पांगरी में स्थित है और इसका महत्व इसलिए है क्योंकि यहां गुरु नानक देव जी ने एक बेर के पेड़ के नीचे नौ दिन और नौ घंटे ध्यान साधना की थी। यह स्थान आज भी उसी सादगी और पवित्रता को संजोए हुए है।

गुरुद्वारा श्री रतनगढ़ साहिब वाडेपुरी

वाडेपुरी में स्थित गुरुद्वारा श्री रतनगढ़ साहिब सिख संगत के लिए भावनात्मक रूप से बहुत खास जगह है। ऐसा कहा जाता है कि जब गुरु गोबिंद सिंह जी के दिवंगत होने की खबर फैली, तो लोग दुखी और दिशाहीन हो गए। तब गुरु जी ने उन्हें आशीर्वाद देकर समझाया कि वे उनकी शिक्षाओं को अपनाएं और सिख धर्म के रास्ते पर अडिग रहें। इसी संदेश को यह गुरुद्वारा आज भी जीवित रखे हुए है।

यह स्थल सालभर, 24 घंटे खुला रहता है, लेकिन अक्टूबर से मार्च के बीच आने का समय सबसे अच्छा माना जाता है। यहां पहुंचने के लिए वाडेपुर शहर से सड़क मार्ग आसान है। नजदीकी स्टेशन हज़ूर साहिब नांदेड़, और एयरपोर्ट श्री गुरु गोबिंद सिंह जी एयरपोर्ट है। पास में माता गुजरी जी विसावा गार्डन, कंधार किला और कलेश्वर मंदिर भी दर्शनीय स्थल हैं।

यात्रा की योजना बना रहे हैं? तो ये बातें ध्यान रखें

इन सभी गुरुद्वारों की यात्रा के लिए अक्टूबर से मार्च का समय सबसे अच्छा माना जाता है। अधिकतर स्थानों तक सड़क मार्ग से पहुंचा जा सकता है, और नजदीक ही रेलवे स्टेशन व एयरपोर्ट भी मौजूद हैं। हर गुरुद्वारे के पास कुछ दर्शनीय स्थल भी हैं, जहां आप प्राकृतिक सुंदरता और स्थानीय संस्कृति का अनुभव कर सकते हैं। सबसे अच्छी बात ये है कि अधिकतर गुरुद्वारे 24 घंटे खुले रहते हैं और श्रद्धालुओं के लिए लंगर सेवा भी उपलब्ध होती है।

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