बेंगलुरु। भारत के मार्स ऑर्बिटर मिशन (एमओएम) यानी मंगलयान ने अपनी कक्षा में सोमवार को एक हजार दिन पूरे कर लिए। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने एमओएम की महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष परियोजना के तहत पांच नवंबर 2013 को दो बजकर 38 मिनट पर मंगलयान का आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) सी-25 द्वारा सफल प्रक्षेपण किया था। चौबीस सितंबर 2014 को मंगलयान अपने पहले प्रयास में इस ग्रह की कक्षा में स्थापित हो गया।
इसरो ने कहा कि मंगलयान का प्रदर्शन उम्मीद से कहीं बेहतर रहा है। मंगलयान को छह महीने तक काम करने के लिहाज से तैयार किया गया है लेकिन वो पिछले एक हजार दिन से अपनी कक्षा में चक्कर लगा रहा है। बता दें कि पृथ्वी के एक हजार दिन मंगल ग्रह के 973.25 दिन के बराबर होते हैं। इस दौरान मंगलयान ने इस ग्रह के 388 चक्कर लगाए हैं। साथ ही इसरो ने बताया कि 24 सितंबर 2016 तक मंगलयान के रंगीन कैमरे ने 715 तस्वीरें भेजी हैं।
मिशन में 450 करोड़ रूपए की लागत
इस मिशन की कुल लागत 450 करोड़ रुपए यानि करीब 6 करोड़ 90 लाख डॉलर है। मंगलयान का उद्देश्य भारत के रॉकेट प्रक्षेपण प्रणाली, अंतरिक्ष यान के निर्माण और संचालन क्षमताओं का प्रदर्शन करने के लिए है। विशेष रूप से मिशन का प्राथमिक उद्देश्य ग्रहों के बीच के लिए मिशन के संचालन, उपग्रह डिजाइन, योजना और प्रबंधन के लिए आवश्यक तकनीक का विकास करना है। जबकि इस यान का द्वितीयक उद्देश्य मंगल ग्रह की सतह का स्वदेशी वैज्ञानिक उपकरणों का उपयोग कर विशेषताओं का पता लगाना है।
मिशन का मुख्य उद्देश्य
– कक्षा और दृष्टिकोण गणनाओं के विश्लेषण के लिए बल मॉडल और एल्गोरिदम का विकास।
– सभी चरणों में नेविगेशन।
– मिशन के सभी चरणों में अंतरिक्ष यान का रखरखाव।
– बिजली, संचार, थर्मल और पेलोड संचालन की आवश्यकताओं को पूरा करना।
– आपात स्थितियों को संभालने के लिए स्वायत्त सुविधाओं को शामिल करना।
– मंगल ग्रह की सतह की आकृति, स्थलाकृति और खनिज का अध्ययन करके विशेषताएं पता लगाना।
– सुदूर संवेदन तकनीक का उपयोग कर मंगल ग्रह का माहौल के घटक सहित मीथेन और कार्बन डाइऑक्साइड का अध्ययन करना।
– मंगल ग्रह के ऊपरी वायुमंडल पर सौर हवा, विकिरण और बाह्य अंतरिक्ष के गतिशीलता का अध्ययन।