Dhurandhar Real story: कराची के दिल में बसा लियारी… एक ऐसा इलाका जिसकी पहचान जितनी रंगीन है, उतनी ही खून-खराबे से भरी भी। हाल ही में रिलीज हुई फिल्म ‘धुरंधर’ ने इसी लियारी को केंद्र में रखकर गैंगवार, पुलिस ऑपरेशन और भारतीय खुफिया एजेंसियों की दखल को बड़े पर्दे पर दिखाया है। सोशल मीडिया पर फिल्म की काफी चर्चा है, लेकिन असली कहानी फिल्म से कहीं ज्यादा गहरी, कड़वी और चौंकाने वाली है।
लियारी को समझना मतलब कराची का सबसे घनी आबादी वाला वह चेहरा देखना, जो एक तरफ मुक्केबाज़ और फुटबॉल खिलाड़ियों को जन्म देता है और दूसरी तरफ ड्रग माफिया, हथियारों और गैंगस्टरों के बीच फंसा रहता है। एक ऐसा इलाका जिसे किसी समय ‘कराची का जंगली पश्चिम’ और ‘मिनी ब्राजील’ कहा जाता था।
लियारी की दो पहचान मां भी, माफिया भी (Dhurandhar Real story)
कराची के स्थानीय लोग लियारी को शहर की ‘मां’ कहते हैं, क्योंकि यह सबसे पुरानी बस्तियों में से एक है। यहां मजदूर, ट्रक ड्राइवर, बॉक्सर और फुटबॉलर्स की बड़ी तादाद है। पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (PPP) का मजबूत वोट बैंक भी यहीं से आता है। लेकिन पाकिस्तान के बाकी हिस्सों के लिए लियारी की पहचान बिल्कुल अलग रही गैंगवार, खून-खराबा, ड्रग रैकेट, उगाही और हथियारों से भरी गलियां।
1960 के दशक में यहां हशीश तस्करी ने अपराध की जड़ें बोईं। काला नाग, दादा और शेरू जैसे नाम उसी दौर से आगे आए। शुरुआती दौर में ये गैंग चाकू, छोटे हथियार और लोकल ड्रग धंधे तक सीमित थे। लेकिन 1990 के दशक में कहानी पूरी तरह बदल गई।
जब ‘बाबू डाकू’ ने पढ़ाई छोड़ अपराध की राह पकड़ी
1990 के दशक में, ल्यारी की गैंग की दुनिया में एक नया चेहरा सामने आया: इकबाल, उर्फ़ “बाबू डाकू”, जिसने फ़िज़िक्स में मास्टर डिग्री के साथ, क्रिमिनल दुनिया का एक बड़ा प्लेयर बन गया। उसने ड्रग रैकेट, हथियारों की तस्करी और दूसरे क्राइम का एक बड़ा नेटवर्क बनाया। पैरालाइज़्ड होने के बाद ही उसे पुलिस ने पकड़ा।
लियारी का असली ‘किंग’ रहमान डकैत
लियारी गैंगवार का सबसे डरावना नाम सरदार अब्दुल रहमान बलूच, जिसे रहमान डकैत कहा जाता था। कम उम्र में अपराध में उतरा रहमान, 2000 के दशक तक लियारी का असली ‘किंग’ बन गया। उसकी कहानी में एक डरावना मोड़ तब आया जब उसकी मां की हत्या हुई और उसके बाद वह और भी क्रूर और निर्दयी हो गया।
लेकिन उसका दूसरा चेहरा भी था जैसे गरीबों के लिए क्लीनिक, फुटबॉल टूर्नामेंट फंड करना, बच्चों की पढ़ाई में मदद और छोटे-मोटे स्कूलों को पैसा देना। यही वजह है कि लियारी की कुछ आबादी उसे “रॉबिनहुड” की तरह देखती थी।
पीपुल्स अमन कमेटी
2008 में रहमान ने पीपुल्स अमन कमेटी (PAC) बनाई। यह संगठन इतना शक्तिशाली हुआ कि लियारी में यह एक वैकल्पिक सरकार जैसा चलने लगा। PPP के कई स्थानीय नेताओं का समर्थन होने से PAC को राजनीतिक संरक्षण भी मिला।
बाप की मौत का बदला लेने निकला ‘शहंशाह’
लियारी गैंग की कहानी उजैर बलूच के बिना अधूरी है। उजैर के पिता मामा फैज को 2003 में अरशद पप्पू गैंग ने अगवा कर मार दिया था। इंसाफ न मिलने पर उजैर अपने चचेरे भाई रहमान के गैंग में शामिल हो गया और पप्पू-लालू गैंग के खिलाफ खूनी युद्ध छेड़ दिया। यह दुश्मनी कराची के इतिहास का सबसे खतरनाक शहरी संघर्ष माना जाता है सैकड़ों लोग मारे गए, अनगिनत जख्मी हुए। लियारी में गोलीबारी होना दैनिक घटना बन गई थी।
PAC ने कराची की प्यास पर कब्जा कर लिया
कराची में पानी की किल्लत हमेशा बड़ी समस्या रही है। PAC ने इस कमी को ‘कमाई’ का जरिया बना लिया। उसने पाइपलाइन के नाजुक पॉइंट्स पर कब्जा कर लिया, अवैध हाइड्रेंट चलाना शुरू कर दिया और टैंकर के जरिए महंगे दामों पर पानी बेचना शुरू कर दिया। कहते हैं PAC के दफ्तरों के बाहर PPP के झंडे लगे रहते थे, जिसकी वजह से पुलिस हाथ नहीं डाल पाती थी।
रहमान डकैत vs SSP असलम
एक तरफ रहमान डकैत की बढ़ती ताकत थी, दूसरी तरफ SSP चौधरी असलम खान CID का वो अधिकारी जिसकी पहचान थी बिना डरे एनकाउंटर करना और गैंगस्टरों को सीधा चुनौती देना। दोनों के बीच लंबे समय तक खेल चलता रहा और 9 अगस्त 2009 को पुलिस ने रहमान के एनकाउंटर में मारे जाने की घोषणा कर दी। हालांकि कई लोग इसे वास्तविक एनकाउंटर नहीं मानते, लेकिन रहमान की मौत लियारी की कहानी का टर्निंग पॉइंट साबित हुई।
2012 में लियारी की सड़कें रणभूमि बनीं
रहमान की मौत के बाद गैंगों का बिखरा नेटवर्क और ज्यादा हिंसक हो गया। मार्च 2013 में अरशद पप्पू की हत्या ने आग में घी डाल दिया। इसके बाद सिंध सरकार ने अप्रैल 2012 में बड़ा पुलिस ऑपरेशन चलाया ऑपरेशन लियारी। हजारों पुलिसकर्मी, बख्तरबंद गाड़ियां और RPG और भारी हथियारों से लैस गैंग करीब 10 दिनों तक सड़कें युद्धभूमि बनी रहीं। भारी विरोध, राजनीतिक दबाव और लगातार बढ़ती मौतों के बाद ऑपरेशन रोकना पड़ा।
उजैर बना बड़ा कैदी
2016-17 में सेना ने ऑपरेशन शुरू किया और उजैर बलूच को गिरफ्तार कर सैन्य अदालत में पेश किया गया। 2020 में उसे जासूसी के आरोपों में 12 साल की सजा हुई। उसके साथ ही PAC का राजनीतिक संरक्षण भी खत्म हो गया।
आज का लियारी
आज लियारी में पुराने फुटबॉल मैदान फिर से आबाद हो रहे हैं, बच्चे स्कूल जा रहे हैं, सांस्कृतिक कार्यक्रम लौट रहे हैं। लेकिन लोग अभी भी उस दौर को याद करते हैं जहां कभी भी गोली चल सकती थी, जहां गैंगस्टर इलाके की किस्मत तय करते थे, और जहां पुलिस की हर एंट्री युद्ध साबित होती थी।
धुरंधर फिल्म कहानी से ज्यादा हकीकत
फिल्म धुरंधर में जो दिखाया गया है, वह लियारी की पूरी कहानी नहीं है असलियत इससे कहीं ज्यादा गहरी, हिंसक और राजनीतिक है। फिल्म ने एक बार फिर उस इलाके की याद दिला दी है जहां अपराध ने राजनीति का हाथ थामा, गैंगस्टर ‘नेता’ बन गए और पानी जैसी बुनियादी जरूरत भी हथियार बन गई।
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