Haq Film Release: भारतीय न्याय व्यवस्था के इतिहास में कुछ ऐसे नाम हैं, जो सिर्फ कानून की किताबों में नहीं, बल्कि लोगों के दिलों में भी दर्ज हैं। इंदौर की शाह बानो बेगम उन्हीं नामों में से एक हैं, जिनके संघर्ष ने देश में मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की लड़ाई को नई दिशा दी। साल 1985 में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले ने न सिर्फ शाह बानो को न्याय दिलाया, बल्कि तीन तलाक जैसी कुप्रथा पर भी सवाल खड़े किए। आज, उनके इसी संघर्ष की कहानी फिल्म ‘हक’ (Haq) के जरिए बड़े पर्दे पर दिखाई जाने वाली है।
एक आम जिंदगी, जो बन गई इतिहास का हिस्सा- Haq Film Release
शाह बानो का जन्म 1916 में मध्य प्रदेश के इंदौर में एक साधारण मुस्लिम परिवार में हुआ। 1932 में 16 साल की उम्र में उनकी शादी मोहम्मद अहमद खान से हुई, जो शहर के एक जाने-माने वकील थे। शाह बानो ने अपना पूरा जीवन एक गृहिणी के रूप में बिताया, पांच बच्चों की परवरिश की और पति की दूसरी शादी को भी चुपचाप स्वीकार किया। लेकिन 1978 में, जब वह 62 साल की थीं, उनके पति ने उन्हें तीन बार ‘तलाक’ कहकर घर से निकाल दिया।
तलाक के बाद अहमद खान ने सिर्फ 500 रुपए का महर दिया और कहा कि अब शाह बानो का उनसे कोई संबंध नहीं। बिना किसी आय के शाह बानो और उनके बच्चों की जिंदगी मुश्किलों में घिर गई। मगर उन्होंने हार नहीं मानी और सीआरपीसी की धारा 125 के तहत इंदौर की अदालत में गुजारा भत्ता मांगने के लिए याचिका दायर की। यह धारा सभी धर्मों की महिलाओं को भरण-पोषण का अधिकार देती है।
सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
शाह बानो का मामला धीरे-धीरे निचली अदालत से होते हुए सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया। उस समय के मुख्य न्यायाधीश वाई.वी. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में पांच जजों की बेंच ने 23 अप्रैल 1985 को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया। कोर्ट ने शाह बानो को मासिक 179.20 रुपए गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया और कहा कि “धर्म किसी को न्याय से वंचित नहीं कर सकता।” इस फैसले ने महिलाओं के अधिकारों को नया बल दिया।
हालांकि यह फैसला मुस्लिम पर्सनल लॉ के समर्थकों को नागवार गुज़रा। कई संगठनों ने इसे धर्म पर हमला बताया। विवाद इतना बढ़ा कि तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने 1986 में ‘मुस्लिम वुमन एक्ट’ पारित किया, जिसने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को कमजोर कर दिया। इसके तहत तलाकशुदा मुस्लिम महिला को सिर्फ 90 दिन की इद्दत अवधि तक भरण-पोषण का अधिकार दिया गया।
शाह बानो की लड़ाई बनी लाखों महिलाओं की आवाज़
शाह बानो ने साफ कहा था – “मैं पैसे के लिए नहीं, न्याय के लिए लड़ी हूं।” उनकी इस जिद ने देश की कई मुस्लिम महिलाओं को हिम्मत दी। शाह बानो के बाद सायरा बानो, शायरा बानो और कई अन्य महिलाओं ने तीन तलाक के खिलाफ आवाज उठाई। आखिरकार, 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिपल तलाक को असंवैधानिक घोषित किया, और 2019 में मोदी सरकार ने इसे अपराध मानने वाला कानून पारित किया। यह फैसला शाह बानो के संघर्ष की सच्ची जीत थी।
अब बड़े पर्दे पर दिखेगी ‘हक’ की कहानी
शाह बानो के इसी साहसिक सफर को अब निर्देशक सुपर्ण एस. वर्मा ने फिल्म ‘हक’ के रूप में रूपांतरित किया है। फिल्म 7 नवंबर 2025 को रिलीज हो रही है। इसमें यामी गौतम मुख्य किरदार शाजिया बानो के रूप में नजर आएंगी, जबकि इमरान हाशमी वकील अब्बास का किरदार निभा रहे हैं। यह फिल्म एक कोर्टरूम ड्रामा के रूप में शाह बानो की कानूनी और भावनात्मक लड़ाई को दर्शाएगी।
रिलीज से पहले विवादों में घिरी फिल्म
फिल्म ‘हक’ की रिलीज से ठीक पहले विवाद भी सामने आया। शाह बानो की बेटियों ने आपत्ति जताई है कि फिल्म में उनकी मां के निजी जीवन को बिना अनुमति दिखाया गया है। उन्होंने फिल्म की रिलीज पर रोक लगाने की मांग की थी। लेकिन 6 नवंबर 2025 को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने फिल्म की रिलीज पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, जिससे अब यह फिल्म तय तारीख पर सिनेमाघरों में दस्तक देगी।
