Pollywood Decline and Revival: पंजाबी सिनेमा, जिसे अक्सर ‘पॉलीवुड’ कहा जाता है, अपनी रंगीन संस्कृति, जीवंत संगीत और मनोरंजक कथानकों के लिए दशकों से दर्शकों के दिलों में खास जगह बनाए हुए है। लेकिन कुछ समय पहले इस उद्योग ने एक मुश्किल दौर भी देखा, जब इसकी लोकप्रियता और फिल्म निर्माण दोनों में गिरावट आई। फिर धीरे-धीरे पंजाबी सिनेमा ने खुद को नए दौर के हिसाब से ढालते हुए पुनरुत्थान किया और अब फिर से अपनी पुरानी चमक वापस पा रहा है। आइए जानें कि पंजाबी सिनेमा ने कैसे अपना सुनहरा दौर बिताया, किन कारणों से इसका पतन हुआ और कैसे यह फिर से उभर कर सामने आया।
पंजाबी सिनेमा का सुनहरा दौर- Pollywood Decline and Revival
पंजाबी सिनेमा की शुरुआत 1930 के दशक में हुई थी, जब 1935 में ‘शीला’ (जिसे ‘पिंड दी कुड़ी’ के नाम से भी जाना जाता है) पहली पंजाबी फीचर फिल्म के रूप में रिलीज हुई। 1940 और 1950 के दशक में पंजाबी फिल्मों ने ग्रामीण जीवन, सामाजिक मुद्दों और सांस्कृतिक मूल्यों को खूबसूरती से पर्दे पर पेश किया। 1970 और 1980 के दशक में ‘पुत्त जट्टां दे’, ‘चन्न परदेसी’ और ‘लौंग दा लश्कारा’ जैसी फिल्में खूब लोकप्रिय हुईं और पंजाबी सिनेमा ने देश-विदेश में खास जगह बनाई। इस दौरान धर्मेंद्र, गीता बाली, मोहम्मद रफी जैसे दिग्गज कलाकारों ने भी इसका नाम रोशन किया।
पतन के प्रमुख कारण
1980 के अंत और 1990 के दशक की शुरुआत में पंजाबी सिनेमा को कई समस्याओं का सामना करना पड़ा।
- आर्थिक तंगी और तकनीकी कमी के चलते फिल्म निर्माण की गुणवत्ता में गिरावट आई।
- पंजाब में उस समय राजनीतिक अशांति और आतंकवाद का दौर था, जिसने सिनेमा उद्योग को काफी प्रभावित किया।
- बॉलीवुड की भव्यता और बड़े बजट की फिल्मों ने पंजाबी फिल्मों के लिए दर्शकों की संख्या कम कर दी।
- कई पंजाबी फिल्में एक जैसी पुरानी कहानियों पर आधारित थीं, जिससे दर्शकों की दिलचस्पी घट गई।
पुनरुत्थान की शुरुआत
2000 के दशक के मध्य से पंजाबी सिनेमा में बदलाव के संकेत मिलने लगे। 2008 में आई फिल्म ‘हाशर’ ने नई तकनीक और आधुनिक कहानियों के साथ एक नई उम्मीद जगाई। इसके बाद 2012 में रिलीज हुई ‘जट्ट एंड जूलियट’ ने पंजाबी फिल्मों को ग्लोबल मंच पर पहचान दिलाई। इस दौर में फिल्मों की गुणवत्ता बेहतर हुई और उनकी पहुंच देश-विदेश में फैलने लगी।
पुनरुत्थान के कारक
- बेहतर तकनीक: डिजिटल फिल्मांकन, बेहतर साउंड सिस्टम और वीएफएक्स के कारण फिल्मों की प्रोडक्शन क्वालिटी बढ़ी।
- प्रवासी दर्शक: कनाडा, यूके, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में बसे पंजाबी समुदाय ने फिल्मों के दर्शक और निवेशक दोनों के रूप में योगदान दिया।
- नई प्रतिभाएं: दिलजीत दोसांझ, अमरिंदर गिल, नीरू बाजवा जैसे कलाकारों ने पंजाबी सिनेमा को नई ऊर्जा दी।
- विविध कथानक: अब फिल्में सिर्फ पारंपरिक ग्रामीण कहानियों तक सीमित नहीं, बल्कि रोमांस, कॉमेडी, बायोपिक और सामाजिक मुद्दों को भी फिल्माया जा रहा है।
- डिजिटल प्लेटफॉर्म्स: नेटफ्लिक्स, अमेजन प्राइम जैसे ओटीटी प्लेटफॉर्म्स ने पंजाबी फिल्मों को वैश्विक दर्शकों तक पहुंचाया है।
वर्तमान स्थिति और भविष्य
आज पंजाबी सिनेमा अपनी सांस्कृतिक विरासत के साथ-साथ नई तकनीकों और आधुनिक कथानकों के जरिए एक मजबूत पुनरुत्थान कर रहा है। 2022 में भारतीय सिनेमा ने कुल ₹15,000 करोड़ की कमाई की जिसमें पंजाबी फिल्मों का भी योगदान रहा। निर्माता अब पैन-इंडिया अप्रोच अपना रहे हैं, जिससे पंजाबी फिल्में हिंदी, तमिल, तेलुगु समेत कई भाषाई क्षेत्रों में लोकप्रिय हो रही हैं। हालांकि चुनौतियां अभी भी हैं, जैसे बजट की कमी और थिएटरों की संख्या सीमित होना, लेकिन पंजाबी सिनेमा के उज्जवल भविष्य के संकेत स्पष्ट हैं।