‘स्तन पकड़ना रेप नहीं’? Allahabad High Court के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने जताई कड़ी नाराजगी

Allahabad High Court
Source: Google

Allahabad High Court: सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक बेहद विवादित फैसले पर तीखी नाराज़गी जाहिर की। यह वही फैसला है जिसमें कहा गया था कि लड़की के निजी अंगों को पकड़ना, पायजामे का नाड़ा तोड़ना और उसे पुलिया के नीचे घसीटने की कोशिश करना रेप के प्रयास की श्रेणी में नहीं आता। इस टिप्पणी को लेकर देशभर में पहले ही भारी नाराजगी थी और अब खुद सुप्रीम कोर्ट ने इसे लेकर सख्त रुख अपना लिया है।

और पढ़ें: Dhan Kharid: किसान बेच रहे 1600 में, व्यापारी कमा रहे 2100… धान खरीद की गड़बड़ियों की खुली पोल

चीफ जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली बेंच ने साफ कहा कि इस तरह की टिप्पणियां न केवल असंवेदनशील हैं, बल्कि इनका समाज पर बहुत गलत असर पड़ता है। कोर्ट ने कहा कि ऐसी बातें पीड़िताओं को शिकायत वापस लेने या दबाव में गलत बयान देने के लिए मजबूर कर सकती हैं, जिसे “चीलिंग इफेक्ट” कहा जाता है।

हाई कोर्ट का विवादित फैसला क्या था? (Allahabad High Court)

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 19 मार्च को दिए अपने आदेश में कहा था कि आरोपी द्वारा स्तनों को पकड़ना, पायजामे की डोरी तोड़ना और पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश करना ‘अटेम्प्ट टू रेप’ नहीं माना जाएगा। इस मामले में जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा ने दो आरोपियों पर लगे आईपीसी की धारा 376 (रेप) और पॉक्सो एक्ट की धारा 18 के गंभीर आरोपों को कमजोर कर दिया।

कोर्ट ने आदेश दिया कि अब इन आरोपियों पर हल्की धाराओं आईपीसी 354(बी) और पॉक्सो एक्ट की धारा 9/10 के तहत ही मुकदमा चलेगा। इसके साथ ही तीन आरोपियों की क्रिमिनल रिवीजन पिटीशन भी स्वीकार कर ली गई थी।

फैसले के खिलाफ देशभर में विरोध

जैसे ही यह फैसला सामने आया, पूरे देश में इस पर तीखी प्रतिक्रियाएं शुरू हो गईं। कानूनी विशेषज्ञों, महिला संगठनों और कई राजनीतिक दलों ने इस फैसले को न्याय व्यवस्था पर धब्बा बताया। लोगों का कहना था कि इस तरह की सोच पीड़ितों को और कमजोर करती है।

25 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने तुरंत हाई कोर्ट के इस आदेश पर रोक लगा दी। उस समय तत्कालीन चीफ जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने साफ कहा था कि हाई कोर्ट की कुछ टिप्पणियां बेहद असंवेदनशील और अमानवीय हैं। इसके बाद केंद्र सरकार, उत्तर प्रदेश सरकार और अन्य पक्षों को नोटिस भेजकर जवाब मांगा गया।

क्या है पूरा मामला?

यह मामला उत्तर प्रदेश के कासगंज का है, जहां 10 नवंबर 2021 को एक 14 वर्षीय बच्ची के साथ छेड़छाड़ और हमले की वारदात सामने आई थी। पीड़िता अपनी मां के साथ देवरानी के घर गई थी। लौटते वक्त गांव के पवन, आकाश और अशोक से उनकी मुलाकात हुई।

पवन ने बच्ची को बाइक से छोड़ने की बात कही। रास्ते में पवन और आकाश ने उसके प्राइवेट पार्ट पकड़े। आकाश ने उसे पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश की और उसका पायजामे का नाड़ा तोड़ दिया। बच्ची की चीख सुनकर सतीश और भूरे मौके पर पहुंचे, तो आरोपियों ने देसी तमंचा दिखाकर धमकाया और भाग निकले।

पुलिस ने पवन और आकाश पर आईपीसी की धारा 376, 354, 354बी और पॉक्सो एक्ट की धारा 18 के तहत केस दर्ज किया था। वहीं अशोक पर आईपीसी की धारा 504 और 506 के तहत मुकदमा दर्ज हुआ। बाद में आरोपी हाई कोर्ट पहुंचे, जहां उन्हें बड़ी राहत मिल गई थी।

चीफ जस्टिस की सख्त चेतावनी

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस सूर्यकांत ने साफ शब्दों में कहा कि अदालतों को, खासकर हाई कोर्ट को, फैसले लिखते समय बेहद संवेदनशील होना चाहिए। ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण टिप्पणियों से हर हाल में बचना चाहिए, क्योंकि इससे पीड़ित और समाज दोनों पर बुरा असर पड़ता है।

उन्होंने यह भी संकेत दिया कि सुप्रीम कोर्ट देशभर के हाई कोर्ट के लिए गाइडलाइंस जारी कर सकता है, ताकि यौन हिंसा से जुड़े मामलों में ऐसी भाषा और टिप्पणियों से बचा जा सके जो पीड़ितों के सम्मान को ठेस पहुंचाएं।

और पढ़ें: Indian Govt on IndiGo Crisis: इंडिगो के लिए बजा अलार्म… फुल एक्शन मोड में सरकार, अब कोई कट नहीं

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here