Artillery Regiment Indian Army: भारत की सेना दुनिया की सबसे बड़ी और सबसे ताकतवर सेनाओं में से एक मानी जाती है, और इसकी ताकत उसकी बहादुर रेजीमेंट्स से आती है। ये रेजीमेंट्स न केवल भारतीय सीमाओं की रक्षा करती हैं, बल्कि युद्ध के मैदान में दुश्मनों को हराने में भी अग्रणी भूमिका निभाती हैं। भारतीय सेना की आर्टिलरी रेजिमेंट इन ताकतवर रेजीमेंट्स में से एक है, जिसे युद्ध के निर्णायक अंग के रूप में जाना जाता है। आर्टिलरी रेजिमेंट की गोलाबारी भारतीय सेना की इन्फेंट्री को युद्ध के मैदान में सफलता दिलाने में सहायक होती है।
आर्टिलरी रेजिमेंट का इतिहास और विकास- Artillery Regiment Indian Army
भारतीय आर्टिलरी रेजिमेंट की नींव ब्रिटिश काल में पड़ी थी। इसकी शुरुआत 2.5 इंच की गन से हुई, लेकिन समय के साथ इस रेजिमेंट ने अत्याधुनिक हथियारों से लैस होने का सफर तय किया। 28 सितंबर 1827 को बॉम्बे प्रेसीडेंसी के तहत 5 माउंटेन बैटरी के गठन से भारतीय आर्टिलरी रेजिमेंट का आधिकारिक रूप से प्रारंभ हुआ। आज यह दिन ‘गनर्स डे’ के रूप में मनाया जाता है, जो आर्टिलरी रेजिमेंट के इतिहास और उसकी परंपराओं को सम्मानित करता है।
आर्टिलरी रेजिमेंट के गठन के शुरुआती दिन
आर्टिलरी रेजिमेंट की शुरुआत अंग्रेजों द्वारा की गई थी। 1668 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपनी दो तोपखाने की कंपनियां बॉम्बे में स्थापित की। इसके बाद अन्य प्रेसीडेंसी में भी इसी प्रकार की तोपखाने की कंपनियां गठित की गईं। हालांकि, अंग्रेजों ने भारतीय सैनिकों को तोपखाने में सीधे तौर पर शामिल करने की अनुमति नहीं दी। इसके बजाय, उन्हें केवल सहायक भूमिका में रखा गया, जिनसे बाद में गोलंदाजों का निर्माण हुआ। यह गोलंदाज भविष्य में भारतीय तोपखाना यूनिट्स की रीढ़ बने और 1857 के विद्रोह में भी इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही।
मुगलकाल में भी तोपों का महत्व
भारत में तोपखाने के प्रयोग की शुरुआत मुगल सम्राट बाबर से मानी जाती है, जिन्होंने 1526 की पानीपत की लड़ाई में तोपों का इस्तेमाल किया था। इस लड़ाई में बाबर ने इब्राहिम लोदी को हराया था। इससे पहले भी भारत में तोपों का उपयोग विभिन्न राज्यीय संघर्षों में किया जाता था, जैसे बहमनी और गुजरात सल्तनत में।
आधुनिक आर्टिलरी रेजिमेंट की संरचना
आज भारतीय आर्टिलरी रेजिमेंट दो प्रमुख भागों में बांटी जाती है। पहला, जो भारी हथियारों जैसे तोप, मोर्टार, रॉकेट और मिसाइल्स से लैस है। दूसरा, जो सर्विलांस, रडार, ड्रोन और आधुनिक नियंत्रण प्रणालियों से युक्त है। यह संरचना रेजिमेंट की आधुनिक युद्ध क्षमता को बढ़ाती है और उसे किसी भी प्रकार की चुनौतियों का सामना करने के लिए सक्षम बनाती है।
आर्टिलरी रेजिमेंट का योगदान
भारतीय आर्टिलरी रेजिमेंट ने न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी अपनी ताकत का परिचय दिया है। इस रेजिमेंट ने श्रीलंका में IPKF मिशन, कांगो, सोमालिया, और सिएरा लियोन में UN पीसकीपिंग ऑपरेशन्स में भाग लिया है। इसके अलावा, 1988 में मालदीव में तख्तापलट की कोशिश को विफल करने में भी इस रेजिमेंट की महत्वपूर्ण भूमिका रही।
आर्टिलरी रेजिमेंट को युद्ध में इसके योगदान के लिए अनेक सम्मान प्राप्त हुए हैं, जिनमें एक विक्टोरिया क्रॉस, एक अशोक चक्र, सात महावीर चक्र, 95 वीर चक्र, 12 शौर्य चक्र और 227 सेना पदक शामिल हैं। यह सम्मान इस रेजिमेंट की वीरता और बहादुरी को प्रमाणित करता है।