Ashoka University Professor Post: अशोका यूनिवर्सिटी के सहायक प्रोफेसर अली खान महमूदबाद के फेसबुक पोस्ट से जुड़े मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को सुनवाई की और एक बार फिर विशेष जांच टीम (SIT) को कड़ी फटकार लगाई। कोर्ट ने कहा कि SIT अपनी जांच का दायरा बेवजह बढ़ा रही है, जबकि जांच केवल अली खान महमूदबाद के खिलाफ दर्ज दो एफआईआर तक ही सीमित रहनी चाहिए। यह मामला महमूदबाद के फेसबुक पोस्ट से जुड़ा हुआ है, जिसमें उन्होंने कुछ विवादास्पद टिप्पणी की थी।
एसआईटी की कार्रवाई पर सुप्रीम कोर्ट की कड़ी टिप्पणी- Ashoka University Professor Post
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस सूर्यकांत और जॉयमाला बागची की बेंच ने टिप्पणी करते हुए कहा, “एसआईटी स्पष्ट रूप से खुद को गुमराह क्यों कर रही है? यह कह सकते हैं कि महमूदबाद का पोस्ट एक राय है और यह कोई अपराध नहीं है।” अदालत ने साफ तौर पर यह निर्देश दिया कि SIT की जांच सिर्फ दो फेसबुक पोस्ट, एक पहलगाम आतंकी हमले और दूसरा ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर की जाए। अदालत का मानना था कि जांच को अनावश्यक रूप से बढ़ाना या अन्य मुद्दों में लाना मामले की दिशा को गुमराह कर सकता है।
अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल की दलील और अदालत का रुख
इस मामले में अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (ASG) एस.वी. राजू ने SIT को जांच पूरी करने के लिए दो महीने का समय देने का अनुरोध किया, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया। जस्टिस कांत ने इस पर कहा, “SIT कह सकती है कि इस एफआईआर में कुछ भी नहीं है, लेकिन हम अन्य मुद्दों की जांच कर रहे हैं। इसके लिए दो महीने क्यों? यह मामला अब बंद हो सकता है।” इसके बाद जस्टिस कांत ने चुटकी लेते हुए कहा, “आपको डिक्शनरी की जरूरत है, महमूदबाद की नहीं।” यह टिप्पणी महमूदबाद के फेसबुक पोस्ट के अर्थ और भाषा की व्याख्या से संबंधित थी, जिसमें उन्होंने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ और भारत के आतंकवाद विरोधी युद्ध की प्रशंसा की थी।
महमूदबाद के खिलाफ एफआईआर और अदालत का आदेश
महमूदबाद के खिलाफ दो एफआईआर दर्ज की गई थीं। पहली एफआईआर योगेश जाठेरी की शिकायत पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की धाराओं के तहत दर्ज की गई थी, जिसमें नफरत फैलाने और राष्ट्रीय एकता के खिलाफ आरोप लगाए गए थे। दूसरी एफआईआर हरियाणा महिला आयोग की अध्यक्ष रेनू भाटिया की शिकायत के आधार पर दर्ज की गई थी, जिसमें सार्वजनिक उपद्रव और अपमानजनक बयान देने के आरोप थे। इन मामलों में महमूदबाद को गिरफ्तार कर न्यायिक हिरासत में भेजा गया था।
सुप्रीम कोर्ट की अंतरिम आदेश और SIT की जांच
सुप्रीम कोर्ट ने महमूदबाद की गिरफ्तारी पर अंतरिम रोक जारी रखी और उन्हें जांच में सहयोग करने का आदेश दिया। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि महमूदबाद को फिर से पूछताछ के लिए बुलाने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि उन्होंने पहले ही जांच में सहयोग किया था। अदालत ने यह भी कहा कि महमूदबाद को लेख और सोशल मीडिया पोस्ट लिखने की स्वतंत्रता है, बशर्ते वह किसी अन्य लंबित मामले को प्रभावित नहीं कर रहे हों।
फेसबुक पोस्ट का विवाद और उसके परिणाम
महमूदबाद ने अपने फेसबुक पोस्ट में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद की आलोचना की थी और भारतीय सेना की कर्नल सोफिया कुरैशी को मिली सराहना पर भी टिप्पणी की थी। इसके साथ ही, उन्होंने भारत में दक्षिणपंथी समर्थकों से मॉब लिंचिंग के खिलाफ आवाज उठाने की अपील की थी। इन्हीं टिप्पणियों के कारण उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की गईं। उनका यह पोस्ट विवाद का कारण बना और इसके बाद यह मामला कानूनी लड़ाई में बदल गया।
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