Assam News: क्या कोई सरकार वाकई में एक कॉरपोरेट कंपनी को पूरा ज़िला सौंप सकती है? असम में हाल ही में लिया गया एक फैसला कुछ ऐसा ही संकेत देता है। राज्य सरकार ने अदानी समूह को करीब 3,000 बीघा ज़मीन देने का जो निर्णय लिया है, उसने ना सिर्फ जनता को चौंकाया है, बल्कि अदालत को भी हैरान कर दिया है।
हाई कोर्ट के जज ने तीखी टिप्पणी करते हुए पूछा — “क्या ये कोई मज़ाक है? आप पूरा ज़िला दे रहे हैं?” अब सवाल सिर्फ ज़मीन का नहीं रहा, बल्कि इस सौदे ने जनविश्वास, लोकतांत्रिक प्रक्रिया और नीति की पारदर्शिता पर गहरी बहस छेड़ दी है।
असम की राजनीति में एक बार फिर विकास की परिभाषा को लेकर घमासान मच गया है — और इस बार जनता, अदालत और सरकार तीनों आमने-सामने हैं।
‘विकास’ की आड़ में कॉरपोरेट को सौगात? (Assam News)
मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा की अगुवाई में राज्य सरकार ने जिस तरह सार्वजनिक ज़मीन को एक कॉरपोरेट समूह को सौंपा है, उससे यह सवाल उठ रहा है कि क्या अब ‘विकास’ का मतलब कुछ चुनिंदा अरबपतियों की सेवा करना रह गया है?
This will blow your mind 🤯🔥
Assam BJP Govt gave 3,000 bigha (81 million sqft) to Adani to build a cement factory 🤯
Even the HC Judge got shocked — “Is this a joke? Are you giving an entire district?”
Himanta needs to go to jail, his end is coming 🔥 pic.twitter.com/8WgifsLItO
— Ankit Mayank (@mr_mayank) August 17, 2025
जहां एक तरफ़ असम के किसान ज़मीन के मालिकाना हक़ के लिए सालों से लड़ रहे हैं, युवा रोज़गार की तलाश में भटक रहे हैं, और छोटे कारोबारी मुद्दों और महंगाई से जूझ रहे हैं — वहीं दूसरी तरफ़ अरबों की संपत्ति रखने वाले कॉरपोरेट समूहों को बिना ज़्यादा पूछताछ के ज़मीनें सौंप दी जा रही हैं।
अदानी के लिए सीमेंट, जनता के लिए वादे?
असम को औद्योगिक विकास की ज़रूरत है — इसमें कोई दो राय नहीं। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह विकास समानता, पारदर्शिता और सहमति के बगैर किया जाना चाहिए?
ये सुनकर आपके होश उड़ जाएँगे कि,
असम की भाजपा सरकार ने अडानी को सीमेंट फैक्ट्री बनाने के लिए 3,000 बीघा (81 मिलियन वर्ग फुट) ज़मीन दे दी।
यहाँ तक कि ये सुनकर हाईकोर्ट के जज भी हैरान रह गए — “क्या ये मज़ाक है? क्या आप पूरा ज़िला दे रहे हैं?”
हेमंता का अंत निकट है ये अपनी… pic.twitter.com/dmep6HqiiX
— Dr. Sheetal yadav (@Sheetal2242) August 18, 2025
सरमा सरकार के मॉडल में विकास का मतलब प्रतीत होता है — कुछ कॉरपोरेट घरानों को लाभ पहुँचाना। एक तरफ अदानी के लिए सीमेंट प्लांट, पॉवर प्रोजेक्ट्स, तो दूसरी तरफ जनता के लिए अधूरे वादे। इससे साफ है कि सरकारी प्राथमिकताएं किस ओर झुकी हुई हैं।
कोकराझार में दूसरा विवाद: पर्यावरण और अधिकारों की अनदेखी
यह विवाद सिर्फ ज़मीन देने तक सीमित नहीं है। असम के कोकराझार जिले के परबतझोड़ा इलाके में भी अदानी थर्मल पावर प्रोजेक्ट को लेकर विरोध तेज़ है।
यहां भी 3,400 बीघा ज़मीन बिना स्थानीय लोगों से राय लिए अदानी समूह को देने की बात सामने आई है। ग्रामीणों का आरोप है कि इस प्रोजेक्ट से उनकी आजीविका, पर्यावरण और उनके संवैधानिक अधिकारों पर सीधा असर पड़ेगा।
तीन महीनों से लगातार ग्रामीण विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। उन्होंने रैलियां निकाली हैं, धरने दिए हैं और साफ कहा है — विकास चाहिए, लेकिन उनकी ज़मीन और हक़ पर नहीं।
यह ज़मीन पगलिजोड़ा प्रोटेक्टेड रिज़र्व फॉरेस्ट का हिस्सा है, जो पर्यावरण कानूनों के तहत संरक्षित है। हैरानी की बात यह है कि अप्रैल 2025 में खुद सरकार ने इस ज़मीन को वन अधिकार अधिनियम, 2006 के तहत आदिवासी समुदायों को मान्यता दी थी। मगर उसी ज़मीन को अब अदानी को सौंपने की तैयारी कर ली गई है।
सरकारी चिट्ठी और कानूनी सवाल
एक आधिकारिक पत्र (दिनांक 19 अप्रैल 2025, संख्या BTC/LR/803/2025/18) के अनुसार, ज़मीन के हस्तांतरण की प्रक्रिया पूरी कर ली गई। लेकिन इसमें न तो वन मंत्रालय की मंज़ूरी ली गई, न ही पर्यावरण से जुड़े नियमों का पालन किया गया।
अगर यह बात सच है, तो यह सिर्फ एक प्रशासनिक चूक नहीं, बल्कि कानून का सीधा उल्लंघन है — जो ना केवल वन संरक्षण कानून को तोड़ता है, बल्कि आदिवासी समुदायों के अधिकारों को भी खत्म करता है।
जनता का गुस्सा और राजनीतिक नुकसान
राज्य में अब यह मुद्दा सिर्फ एक्टिविस्ट्स तक सीमित नहीं रहा। गांव-गांव में नाराज़गी बढ़ रही है। अदालत की सख्त टिप्पणी ने इस मुद्दे को वैधता भी दे दी है।
हिमंता बिस्वा सरमा, जो कभी बीजेपी के लिए पूर्वोत्तर का सबसे मज़बूत चेहरा माने जाते थे, अब एक ऐसे नेता के रूप में देखे जा रहे हैं जो कॉरपोरेट के आगे झुके हुए हैं।
लोग पूछने लगे हैं — क्या यह सिर्फ एक सौदा था या फिर जनता के साथ धोखा?
लोकतंत्र बनाम लालच: आगे क्या?
इस पूरे विवाद ने एक अहम सवाल खड़ा कर दिया है: क्या असम में विकास के नाम पर लोकतांत्रिक मर्यादाएं खत्म हो रही हैं?
अगर सरकारें जनता की ज़मीन, जंगल और संसाधन बिना सहमति के कॉरपोरेट को सौंप दें, तो फिर आम आदमी कहां जाएगा?
अदालत, कार्यकर्ता और आम लोग अब आवाज़ उठा रहे हैं। सवाल सिर्फ एक ज़मीन सौंपने का नहीं है — सवाल है भरोसे का, अधिकारों का, और उस भविष्य का जिसे राज्य सरकार ‘विकास’ के नाम पर तय कर रही है।