Ayodhya Deepotsav: अयोध्या में रिकॉर्ड तोड़ रोशनी, पर कुम्हारों की जिंदगी में अंधेरा! कौन लेगा इन दीयों की जिम्मेदारी?

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Ayodhya Deepotsav: अयोध्या इन दिनों दीपोत्सव की जगमगाहट में नहाई हुई है। सरयू नदी के किनारे राम की पैड़ी पर लाखों दीयों को बिछाया गया। इस बार दीपोत्सव में 29 लाख दीये जलाने की तैयारी थी, जिनमें से 26 लाख 11 हजार 101 दीये एक साथ जलाकर अयोध्या अपना पिछला रिकॉर्ड तोड़ने जा रही है। डॉ. राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय के 30 हजार से ज्यादा वॉलंटियर्स “जय श्रीराम” का उद्घोष करते हुए पैड़ी के 56 घाटों पर दीये सजाए गए।
19 अक्टूबर को इन दीयों में तेल और बाती डाली जाएगी, और दीपोत्सव की रात अयोध्या सोने सी दमक उठेगी।

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लेकिन इस भव्य रोशनी के बीच एक गांव ऐसा भी है, जहां अंधेरा पहले से ज्यादा गहरा महसूस हो रहा है। ये है जयसिंहपुर गांव, जो राम की पैड़ी से महज 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। वही गांव, जहां के कुम्हारों के हाथों से हर साल अयोध्या दीपोत्सव के दीये तैयार होते थे। मगर इस बार पहली बार ऐसा हुआ है कि उन्हें यह ऑर्डर नहीं मिला।

लखनऊ की कंपनी को मिला टेंडर, कुम्हारों की उम्मीदें टूटीं- Ayodhya Deepotsav

इस साल दीपोत्सव के लिए अयोध्या प्रशासन ने जुलाई 2025 में टेंडर जारी किया। दीयों की सप्लाई का ठेका लखनऊ की प्रतिभा प्रेस को मिला। नगर आयुक्त जयंत कुमार के मुताबिक, “प्रतिभा प्रेस ने हमें 10 गांवों की लिस्ट दी है, जिनसे उन्होंने दीये खरीदे हैं। ये गांव अयोध्या के आसपास ही हैं सालारपुर, सोहावल, दर्शननगर, जयसिंहपुर, बड़ा गांव, मटरीनगर, सनेथू, कुम्हारन का पुरवा, रूदौली और भरतकुंड।”

कागजों में तो जयसिंहपुर का नाम भी इस सूची में शामिल है, लेकिन हकीकत इससे बिल्कुल अलग है। जब दैनिक भास्कर टीम जयसिंहपुर पहुंची, तो वहां सन्नाटा था। चाक, जो पिछले साल दिन-रात घूमते थे, इस बार धूल खा रहे हैं।

“पिछले साल 50 हजार दीये दिए थे, इस बार कोई पूछने नहीं आया”

गांव के कुम्हार रविंद्र कुमार पिछले कई सालों से दीपोत्सव के लिए दीये बनाते आ रहे हैं। वे बताते हैं,
“पिछले साल हमने 50 हजार दीये दिए थे। पूरा गांव काम में लगा था महिलाएं दीये सुखा रही थीं, बच्चे पैक कर रहे थे। उस वक्त मुख्यमंत्री ने हमें सम्मानित किया था, ई-चाक दिए थे। लेकिन इस बार हमें कोई ऑर्डर ही नहीं मिला। दो महीने से तैयारी कर रहे थे, मिट्टी और तेल भी खरीद लिया था, अब समझ नहीं आ रहा दिवाली कैसे मनाएंगे।”

रविंद्र के घर में अब भी दीयों के गत्ते पड़े हैं, जो जलने से पहले ही ठंडे पड़ गए।

“दो दिन पहले आया सिर्फ 10 हजार दीयों का ऑर्डर”

थोड़ा आगे जाने पर बृज किशोर मिले, जो कहते हैं, “हमसे सिर्फ 10 हजार दीये खरीदे गए हैं। पहले हर साल 40-50 हजार दीयों का ऑर्डर मिलता था। इस बार भी हमने पहले से ज्यादा बना लिए थे, पर सिर्फ कुछ हजार ही उठाए गए। बच्चे और महिलाएं अब भी उम्मीद में हैं कि शायद कुछ और काम मिल जाए।”

“मिट्टी एडवांस में खरीदी थी, पर कोई पूछने नहीं आया”

गांव की महिला कुम्हार शकुंतला देवी की आंखों में उदासी साफ झलकती है। वो कहती हैं,
“हर साल दीपोत्सव से पहले हम मिट्टी खरीदते हैं, चाक ठीक करवाते हैं। इस बार भी सब किया, सोचा कि काम मिलेगा, पर कोई पूछने नहीं आया। फिर भी मिट्टी तैयार रखी है, क्या पता आखिरी वक्त पर कोई बुला ले।”

उनकी बातें बताते हैं कि इन दीयों में सिर्फ मिट्टी नहीं, बल्कि उम्मीद और आत्मसम्मान भी गढ़ा जाता है।

“एक आयोजन से निकलता था पूरे साल का खर्च”

गांव के बुजुर्ग कुम्हार राम आसरे बताते हैं, “दीपोत्सव हमारे लिए सिर्फ त्योहार नहीं, जिंदगी का सहारा है। इससे पूरे साल का खर्च निकल आता था। घर की मरम्मत, बच्चों की पढ़ाई—सब कुछ इसी से चलता था। इस बार कोई काम नहीं मिला, तो नुकसान बहुत बड़ा है।”

वो आगे जोड़ते हैं,
“लोग सोचते हैं दीये बनाना आसान है, पर इसमें बहुत मेहनत है। पहले मिट्टी खेत या नदी किनारे से लाते हैं, फिर उसे गूंथते हैं, चाक पर आकार देते हैं, धूप में सुखाते हैं और भट्टी में पकाते हैं। दो दिन का काम है, और अगर मौसम खराब हो जाए तो सारा माल खराब हो जाता है।”

“हमने 50 हजार दीये बना लिए, लेकिन कोई लेने नहीं आया”

कुम्हार राम किशोर के घर पर करीब 50 हजार तैयार दीये पड़े हैं। वे कहते हैं,
“दीपोत्सव के लिए जो दीये बनते हैं, वो खास होते हैं इनमें करीब 30 ML तेल आता है। ये बड़े साइज के होते हैं और प्रशासन की अनुमति से ही बनाए जाते हैं। इस बार किसी ने ऑर्डर नहीं दिया, तो अब ये बड़े दीये बाजार में बिक भी नहीं रहे हैं।”

अधिकारी बोले—“कंपनी ने गांवों से ही खरीदे हैं दीये”

जब प्रशासन से इस बारे में पूछा गया, तो नगर आयुक्त जयंत कुमार ने बताया,
“इस बार दीयों की जिम्मेदारी लखनऊ की प्रतिभा प्रेस को दी गई थी। उन्होंने 10 गांवों के कुम्हारों से मीटिंग की थी और वही सप्लाई कर रहे हैं। हमने उनसे जो लिस्ट मांगी थी, उसमें जयसिंहपुर सहित कई गांव शामिल हैं।”

हालांकि, कुम्हारों का कहना है कि उनसे सिर्फ कुछ औपचारिक दीये लिए गए हैं, जबकि बाकी गांवों से पहले जैसा ऑर्डर नहीं मिला।

गांव के बुजुर्ग कहते हैं,
“हमारे हाथों के बनाए दीये रामजी के नाम जलते थे, यही गर्व था। अब जब वो दीये किसी कंपनी से आ रहे हैं, तो लगता है जैसे हमारी पहचान भी मिट रही है।”

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