Ballia News: 540 रुपये की नौकरी से 35 साल की जंग तक… अब चुना राय की मांग सुनकर प्रशासन भी हैरान

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Ballia News: बलिया के पटखौली गांव में रहने वाले नवीन कुमार राय उर्फ़ चुना राय की जिंदगी किसी फिल्म की कहानी से कम नहीं लगती। 540 रुपये की छोटी-सी नौकरी से शुरू हुई उनकी जिंदगी अचानक एक ऐसे मोड़ पर पहुँच गई, जिसने उन्हें 35 साल तक कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगाने पर मजबूर कर दिया। लेकिन असली हैरानी तो तब होती है, जब इस लंबी कानूनी लड़ाई के बाद चुना राय एक ऐसी मांग लेकर सामने आते हैं, जिसे सुनकर प्रशासन से लेकर आम लोग तक दंग रह जाते हैं। आइये आपको बताते हैं कि पूरा मामला क्या है।

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वन विभाग में शुरुआत और संघर्ष (Ballia News)

नवीन कुमार राय ने 1986 में वन विभाग में मेट्रोल की नौकरी शुरू की थी, जिसमें उन्हें मात्र ₹540 प्रति माह वेतन मिलता था। शुरुआत में यह नौकरी सामान्य थी, लेकिन 1990 में वन विभाग के कर्मचारियों के मुद्दों को लेकर आंदोलन में भाग लेने के बाद उनके जीवन का रुख बदल गया। विभाग ने चार लोगों पर एफआईआर दर्ज की, जिसमें नवीन को मुख्य आरोपी बनाया गया। बाकि तीन साथियों को चार्जशीट भी नहीं दी गई, जिससे नवीन अकेले अदालत के चक्कर काटते रहे।

17 साल तक उनके खिलाफ वारंट जारी रहे और कई बार अदालत में तारीखें छूटी। एक दिन अदालत ने नाराज होकर उन्हें एक दिन के लिए जेल भेजा। नवीन इसे हंसते हुए “सरकारी छुट्टी” कहते हैं, लेकिन उनके लिए यह संघर्ष का एक लंबा पड़ाव था।

बाइज्जत बरी और वन दरोगा बनने की राह

अख़िरकार 35 साल की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद अदालत ने नवीन को बाइज्जत बरी कर दिया। इसके बाद वन विभाग के पुराने वादे के अनुसार, उन्हें वन दरोगा बनने का अधिकार था। बरी होने के बाद नवीन सीधे डीएफओ के पास पहुंचे और अपनी नियुक्ति के लिए डीएम कार्यालय तक का रास्ता तय किया।

35 साल के संघर्ष की अनोखी मांग

नवीन कुमार राय की मांग ने सबको चौंका दिया। वे चाहते हैं कि उनके 35 साल के संघर्ष का मुआवजा चार हिस्सों में बांटा जाए।

  1. देशभक्ति के लिए: पाकिस्तान-भारत की लड़ाई में शहीद हुए 26 जवानों के परिवारों को 25% हिस्सा।
  2. धार्मिक कार्यों के लिए: अयोध्या के राम मंदिर और विभिन्न गुरुद्वारों में योगदान के लिए 25% हिस्सा।
  3. गौ-सेवा के लिए: सड़क किनारे मरे पड़े गौ माता की विधिपूर्वक समाधि के लिए 25% हिस्सा।
  4. व्यक्तिगत उपयोग के लिए: शेष 25% हिस्सा उनके भाई को।

साथ ही, नवीन चाहते हैं कि उन्हें पेंशनर बनाया जाए ताकि वे अपनी वृद्ध माता-पिता की सेवा कर सकें।

संदेश समाज और प्रशासन के लिए

नवीन की कहानी केवल एक व्यक्ति की कानूनी लड़ाई नहीं है, बल्कि यह समाज और प्रशासन के लिए भी संदेश देती है। उनका संघर्ष यह दिखाता है कि न्याय पाने के लिए धैर्य और हिम्मत की जरूरत होती है। साथ ही उनकी मांग यह दर्शाती है कि वे अपने जीवन का फल सिर्फ खुद के लिए नहीं, बल्कि देश, धर्म और समाज के हित में इस्तेमाल करना चाहते हैं।

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