Beed Sugarcane Labourers controversy: शॉकिंग रिपोर्ट- बीड में 843 गन्ना श्रमिक महिलाओं के गर्भाशय निकाले गए, गंभीर शोषण का खुलासा

Beed Sugarcane Labourers controversy
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Beed Sugarcane Labourers controversy: महाराष्ट्र के बीड जिले से एक बेहद चिंताजनक मामला सामने आया है, जिसमें सैकड़ों महिला गन्ना श्रमिकों को शोषण और चिकित्सा उपेक्षा का सामना करना पड़ा। रिपोर्ट्स के मुताबिक, 2024 के अंत में गन्ना कटाई के लिए प्रवास से पहले इन महिलाओं को कथित तौर पर गर्भाशय-उच्छेदन (हिस्टेरेक्टोमी) करवाने पर मजबूर किया गया। यह मामला स्वास्थ्य और श्रमिक अधिकारों पर गंभीर सवाल उठाता है।

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सर्जरी की चौंकाने वाली संख्या- Beed Sugarcane Labourers controversy

एक आधिकारिक स्वास्थ्य विभाग रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में दिवाली के समय गन्ना कटाई के काम के लिए रवाना होने से पहले कुल 843 महिलाओं के गर्भाशय को शल्य चिकित्सा द्वारा हटा दिया गया था। हैरान करने वाली बात यह है कि इनमें से 477 महिलाएं 30 से 35 वर्ष की आयु वर्ग में थीं, जो युवा थीं और जिनका स्वास्थ्य बेहतर रखा जा सकता था। यह सर्जरी मुख्य रूप से निजी क्लीनिकों में की गईं, जो सूचित सहमति और चिकित्सा आवश्यकता के मामले में सवाल खड़े करते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि इन सर्जरी के अधिकांश मामले 279 निजी चिकित्सा सुविधाओं में किए गए थे, जिनमें सरकारी डॉक्टरों से अनुमति ली गई थी, लेकिन यह पूरी प्रक्रिया संदेहास्पद बनी हुई है।

क्या यह शारीरिक श्रम से बचने का तरीका था?

गर्भाशय-उच्छेदन की इतनी बड़ी संख्या और कम उम्र की महिलाओं की बड़ी हिस्सेदारी यह संकेत देती है कि ये सर्जरी शारीरिक श्रम के कठिन महीनों से बचने के लिए की जा रही थीं। गन्ना कटाई के दौरान महिलाओं को भारी शारीरिक मेहनत करनी पड़ती है और मासिक धर्म या गर्भधारण जैसी शारीरिक चुनौतियों से बचने के लिए यह सर्जरी एक तरीका बन गया। इन सर्जरी के पीछे स्वास्थ्य से अधिक सामाजिक-आर्थिक दबाव हो सकता है, क्योंकि महिलाओं को अक्सर ठेकेदारों के दबाव में आकर यह कदम उठाने के लिए मजबूर होना पड़ता है।

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स्वास्थ्य चुनौतियाँ और पीड़ित महिलाएँ

रिपोर्ट में और भी गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं सामने आईं, जो प्रवासी गन्ना श्रमिकों के बीच पाई गईं। 3,415 महिलाओं को आयरन, बी12 और फोलिक एसिड की कमी से संबंधित एनीमिया का सामना करना पड़ा। इन महिलाओं में से 73 को गंभीर एनीमिया का पता चला और उन्हें इलाज मिला। इसके अलावा, 1,523 गर्भवती महिलाएं गन्ने के खेतों में काम करती पाई गईं, जिनके लिए काम की कठिन परिस्थितियाँ और शारीरिक मेहनत अव्यावहारिक थीं। इन महिलाओं को राहत देने की कोई प्रभावी योजना नहीं थी, जिससे उनका स्वास्थ्य खतरे में पड़ गया था।

सरकारी कदम और समाज की उपेक्षा

हालांकि, इन महिलाओं को मातृत्व और शिशु देखभाल पोर्टल पर पंजीकृत किया गया है, लेकिन यह कदम बहुत देर से उठाया गया है। इससे साफ है कि सरकार और संबंधित अधिकारियों द्वारा इन श्रमिकों की देखभाल में लापरवाही बरती गई है। मातृ एवं शिशु देखभाल विभाग ने हिस्टेरेक्टोमी की उच्च संख्या को पुराने लक्षणों जैसे अत्यधिक मासिक धर्म रक्तस्राव, पेट दर्द और संक्रमण से जोड़ा है। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि इन लक्षणों का इलाज कम आक्रामक तरीकों से किया जा सकता था, जिससे सर्जरी की जरूरत नहीं होती।

सामाजिक-आर्थिक दबाव और श्रमिकों की स्थिति

स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं का मानना है कि यह सर्जरी महिलाओं पर सामाजिक-आर्थिक दबावों के कारण हुई हैं। ठेकेदारों के दबाव में महिलाएं गर्भधारण से बचने के लिए इस तरह के कड़े फैसले लेती हैं, ताकि उन्हें शारीरिक श्रम से कोई परेशानी न हो। यह मामले केवल चिकित्सा उपेक्षा का नहीं, बल्कि श्रमिकों के शोषण का भी प्रत्यक्ष प्रमाण हैं।

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