Beti Bachao Yojana Fund Misused: केंद्र सरकार की प्रमुख योजना ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ (BBBP) को लेकर संसद की एक समिति की रिपोर्ट में कई महत्वपूर्ण बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित किया गया है। इस रिपोर्ट में खासतौर पर 2016 से 2019 के बीच योजना के लिए आवंटित 446.72 करोड़ रुपये में से 78.91 प्रतिशत राशि सिर्फ मीडिया प्रचार पर खर्च होने का जिक्र किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार, हालांकि मीडिया अभियान को योजना के उद्देश्य को फैलाने के लिए आवश्यक माना जाता है, लेकिन समिति का मानना है कि योजना के उद्देश्यों को संतुलित करने की आवश्यकता है।
रिपोर्ट में तत्कालीन महिला सशक्तिकरण पर संसद समिति की अध्यक्ष, भाजपा सांसद हीना विजयकुमार गवित ने इस बात पर जोर दिया था कि “मीडिया प्रचार को जरूरी समझते हुए, यह उतना ही महत्वपूर्ण है कि योजना के उद्देश्य का सही दिशा में पालन हो।” इस रिपोर्ट को साल 2021 में संसद में प्रस्तुत किया गया था।
बीबीबीपी योजना का उद्देश्य और सरकार की भूमिका- Beti Bachao Yojana Fund Misused
बीबीबीपी योजना सरकार की सबसे महत्वपूर्ण पहलों में से एक है जिसका उद्देश्य पिछड़े क्षेत्रों में बाल लिंगानुपात में सुधार और लड़कियों की शिक्षा सुनिश्चित करना है। समिति ने इस योजना के लिए खर्च को लेकर सरकार से पुनः विचार करने की सलाह दी है और कहा है कि सरकार को अब विज्ञापन पर खर्च करने के बजाय, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रीय हस्तक्षेपों पर खर्च को बढ़ाना चाहिए।
जिस देश को प्रधानमंत्री की जगह प्रचारमंत्री मिला हो, जिस देश में सत्ताधारी पार्टी के नेता बेटियों के अत्याचारी निकलते हो और जिन्हें सरकारी बचाव कवच मिला हो उस देश में बेटी बचाव फंड का लगभग 79% विज्ञापनों पर खर्च हो तो आश्चर्य क्यों होगा? चुल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए इन्हें। pic.twitter.com/gsOunVBSAS
— Nattasha Sharrma नत्ताशा शर्मा🇮🇳 (@natasshasharrma) July 6, 2025
मीडिया पर अधिक खर्च और राज्यों की प्रदर्शन में कमी
समिति ने उल्लेख किया कि 2014-15 से लेकर 2019-20 तक इस योजना के लिए कुल बजट आवंटन 848 करोड़ रुपये था। इस अवधि में 622.48 करोड़ रुपये राज्यों को जारी किए गए, लेकिन समिति के अनुसार, राज्यों द्वारा केवल 25.13 प्रतिशत धन, यानी 156.46 करोड़ रुपये ही खर्च किए गए। यह प्रदर्शन योजना के कार्यान्वयन में गंभीर कमी को दर्शाता है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि 2016-17 में नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) ने भी इस योजना के कार्यान्वयन और राज्यों द्वारा सीमित खर्च पर आलोचना की थी।
केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्रालय की भूमिका
समिति ने महिला और बाल विकास मंत्रालय से इस मुद्दे पर राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से बात करने और बीबीबीपी के फंड्स का सही तरीके से उपयोग सुनिश्चित करने की सिफारिश की है। इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि बाल लिंगानुपात में निरंतर गिरावट को लेकर गंभीर चिंता जताई गई है। 1961 से लेकर 2011 तक, बाल लिंगानुपात में गिरावट आई है, जो 1961 में 976 था, 2001 में 927 और 2011 में 918 तक पहुँच गया। हालांकि, समिति ने यह भी बताया कि राज्यों में निरंतर प्रयासों के बाद अब सकारात्मक परिणाम देखने को मिल रहे हैं।
सकारात्मक परिणाम और आने वाली चुनौतियाँ
रिपोर्ट में हाल ही में प्रकाशित ‘सैंपल रजिस्ट्रेशन सर्वे (SRS) 2018’ के आंकड़ों का जिक्र किया गया, जिसमें जन्म के समय लिंग अनुपात में 3 अंकों की वृद्धि दिखाई गई है। 2015-17 के मुकाबले 2016-18 में यह आंकड़ा 896 से बढ़कर 899 हो गया है। हालांकि, समिति ने इसे एक सकारात्मक संकेत माना, लेकिन यह भी कहा कि WHO के अनुसार, 952 महिलाओं के मुकाबले 1000 पुरुषों का लिंग अनुपात प्राप्त करने के लिए अभी लंबा रास्ता तय करना बाकी है।
बीबीबीपी योजना के माध्यम से सरकार ने लड़कियों की शिक्षा और बाल लिंगानुपात में सुधार के लिए कई प्रयास किए हैं, लेकिन रिपोर्ट से यह स्पष्ट है कि अभी भी कई चुनौतियाँ बाकी हैं। खासकर मीडिया पर किए गए खर्च और राज्यों के प्रदर्शन में सुधार की आवश्यकता है। सरकार को अब इस योजना में अधिक प्रभावी बदलाव और समर्पित प्रयासों के लिए नीति को पुनः संरचित करने की आवश्यकता है।